
छत्तीसगढ : ‘आदिवासी भीमा कुंजाम बस्तर के अपने घर में रात में सो रहे थे। सुरक्षा बल उनके घर पहुंचे और उन्हें उठाकर जंगल ले गए, वहाँ उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। अगले दिन अख़बारों में खबर छपी कि सुरक्षा बलों ने एक दुर्दांत माओवादी को मुठभेड़ में मार गिराया।’
कल यानि 29 जुलाई को भीमा कुंजाम के गांव वालों और उनके आस-पास के गांव के हजारों आदिवासियों ने बस्तर के सुकमा जिला के चिंतागुफा थाना का घेराव किया और डंके की चोट पर दुनिया वालों को बताया कि किस तरह से भीमा को सुरक्षा बलों ने फर्जी मुठभेड़ में मारा है। भीमा की पत्नी का कहना है कि वे पहले माओवादी गतिविधि में शामिल थे, लेकिन शादी के बाद घर में रहकर किसानी कर रहे थे।
पुलिस की झूठी कहानी के अनुसार चलिए मान लेते हैं कि भीमा माओवादी थे, तो क्या जब उन्हें गिरफ्तार किया गया, तो उन्हें कोर्ट में प्रस्तुत नहीं करना था? क्या हमारा संविधान यही कहता है कि माओवादी को जेल ना भेजकर गोली मार दी जाये? आखिर आदिवासी इलाकों में पुलिस या सुरक्षा बल कानून व संविधान का पालन क्यों नहीं करते हैं?
कांग्रेस पर लहालोट ‘प्रगतिशील’ लोगों को यह बता देना चाहता हूँ कि छत्तीसगढ़ में अभी कांग्रेस की सरकार है, जो सुरक्षा बलों के द्वारा आदिवासियों की बर्बर हत्या किये जाने पर सिर्फ चुप ही नहीं बल्कि हत्यारों के पक्ष में है। भाजपा-कांग्रेस दोनों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट व आदिवासियों पर बर्बर अत्याचार करने के मामले में मौन सहमति है, इसलिए जनसंघर्ष ही एकमात्र विकल्प है।
