कांग्रेस में आज राजनीतिक रूप से किसी भी मुद्दे को कैश करने वाले नेता नहीं हैं!

कांग्रेस में आज राजनीतिक रूप से किसी भी मुद्दे को कैश करने वाले नेता नहीं हैं!

उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की जो सबसे बड़ी योग्यता है वह है उनका एक कुशल वकील होना। और उसका उपयोग करके वे माहौल बना देते हैं। अब लोकसभा के अध्यक्ष के लिए आसान होगा राहुल गांधी के खिलाफ कोई कार्रवाई करना।

सोमवार 13 मार्च से बजट सत्र का दूसरा हिस्सा शुरू हो जाएगा। और इसमें सबका ध्यान सबसे ज्यादा इस पर लगा होगा कि राहुल के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है। क्या इन्दिरा गांधी की तरह उनकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी। या सरकार इन्दिरा की लोकसभा से सदस्यता रद्द करने के बाद 1980 में उनका पूरी लोकसभा पर कब्जा करे लेने को याद करके राहुल की सदस्यता रद्द करने का दुस्साहस नहीं करेगी।

लेकिन यह सब आकलन इतने आसान नहीं हैं। भाजपा के पास अपने फीडबैक होंगे। अगर वह पैनिक रिएक्शन में नहीं आई तो उसका फैसला वही होगा जो कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में फायदा नहीं दे। भाजपा और केन्द्र सरकार क्या करेगी यह समझना आसान नहीं है। उसके पास तीन आप्शन हैं कि एक, वह लोकसभा अध्यक्ष से कहे कि राहुल की सदस्यता रद्द कर दो। दो, चेतवानी देकर मामला खत्म कर दिया जाए। और तीन, कोई फैसला नहीं किया जाए मामले को लटका कर रखा जाए।

भाजपा दरअसल जिस मुद्दे पर सोच रही है वह यह है कि क्या राहुल की सदस्यता रद्द करने को कांग्रेस भुना सकती है? आमतौर पर इसकी संभावना कम दिखाई देती है। कांग्रेस में आज राजनीतिक रूप से किसी भी मुद्दे को कैश करने वाले नेता नहीं हैं। पिछले 9 सालों की सबसे बड़ी राजनीतिक जीत राहुल की यात्रा का ही वे चुनावी लाभ नहीं ले पा रहे हैं। पिछले कुछ समय में कांग्रेस को कई अच्छे मौके मिले। ईडी की सोनिया और राहुल से पूछताछ से माहौल बना। फिर जबर्दस्त सफल यात्रा। परिवार के बाहर का अध्यक्ष बनना। और अब यह राहुल पर प्रिवलेज मोशन।

इन्दिरा गांधी को तो 1977 में केवल गिरफ्तार किया गया था। और खुद इन्दिरा लेकिन खासतौर पर संजय गांधी ने उसका राजनीतिक लाभ लेते हुए जनता सरकार का तख्ता पलट दिया था। उस समय कांग्रेस के नेता भी राजनीतिक रूप से चाक चौबन्द हुआ करते थे। वे जानते थे कि राजनीति में कुछ भी अराजनीतिक नहीं होता है। आज के कांग्रेसी नेता तो इस बात में सबसे ज्यादा जान लगाए हुए हैं कि राहुल की यह पांच महीने की चार हजार किलोमीटर लंबी यात्रा राजनीतिक नहीं थी। क्या थी? यह उन्हें खुद नहीं मालूम। मगर राजनीतिक नहीं थी। इसलिए इसका चुनाव में फायदा नहीं लिया जाएगा। फिर चुनाव में किसका फायदा लिया जाएगा? यह भी पता नहीं। चुनाव का फायदा लिया जाएगा या नहीं यह भी शायद नहीं पता।

खैर तो आज के कांग्रेसियों की बात करने से कोई फायदा नहीं है वे सब सर्वोदयी बनने की राह पर जा रहे हैं। वह तो अच्छा है कि राहुल की समझ में आ गया और उन्होंने दाढ़ी कटवा ली। नहीं तो कांग्रेसी उन्हें विनोबा भावे बनवा देते। तो बात उस समय के कांग्रेसी नेताओं की हो रही थी। तब इन्दिरा के साथ कमलापति त्रिपाठी, बूटा सिंह, पीवी नरसिम्हा राव जैसे राजनीतिक समझ वाले लोग थे। तो इन्दिरा ने संजय के युवा साथियों और इन वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर राजनीतिक लड़ाई लड़ी। उस दौरान ही दो बार गिरफ्तार किया गया था। पहले 1977 में और फिर लोकसभा की सदस्यता रद्द करने के बाद 1978 में लोकसभा से।

इन्दिरा गांधी 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव जीतकर लोकसभा में आईं थीं। मगर उनके खिलाफ भी ठीक वैसा ही माहौल था जैसा आज राहुल के खिलाफ है। जनता पार्टी सरकार हर तरह से इन्दिरा गांधी का अपमान, चरित्रहनन, झूठे मामले बना रही थी। चिकमंगलूर से उनकी 80 हजार से ज्यादा वोटों की जीत से सरकार हिल गई। पैनिक रिएक्शन में उनके खिलाफ भी विशेषाधिकार का प्रस्ताव लाया गया। और उसे न केवल पास करवा कर उनकी सदस्यता रद्द की गई बल्कि साथ ही उनकी गिरफ्तारी के आदेश भी लोकसभा अध्यक्ष ने दे दिए। इन्दिरा जी को गिरफ्तार करके तिहाड़ भेज दिया गया। मगर कांग्रेसी और खासतौर पर इन्दिरा और संजय इसके राजनीतिक मायने देख रहे थे। और उन्होंने इसे अपने राजनीतिक फायदे में बदल दिया।

आज राहुल की सदस्यता पर भी खतरे की तलवार लटक रही है। उनके खिलाफ भी विशेषाधिकार हनन का मामला है। भाजपा के सांसद और मंत्री ने किया है कि प्रधानमंत्री का नाम अडानी मामले में जोड़ने की कोशिश।

सवाल फिर वहीं है कि क्या कांग्रेस इसका राजनीतिक लाभ ले पाएगी? आज की कांग्रेस में वह क्षमता दिखाई नहीं देती है। कोई भी राजनीतिक समझ वाला व्यक्ति मेन स्ट्रीम ( पार्टी के मुख्य नेताओं में) में दिखाई नहीं देता है। राहुल खुद संजय और इन्दिरा गांधी की तरह असर्टिव दिखाई नहीं देते है। टेस्ट मैच की तरह बैटिंग करते हैं। बिल्कुल सीधे बैट ( स्ट्रेट बैट) से। कहीं कोई गलती न हो जाए। बैट और पेड साथ मिलाकर। वन डे की तरह ताबड़तोड़ बैटिंग नहीं। और आज तो ट्वंटी ट्वंटी आ गया। जहां केवल जीतने के लिए ही खेला जाता है।

लालू प्रसाद यादव की इतनी उम्र हो गई, स्वास्थ्य भी खराब है मगर उन्हें मौके का फायदा उठाना आता है। उनके यहां हुई छापेमारी के बाद उनका मैसेज पूरे बिहार में और देश में भी जहां उनके चाहने वाले हैं वहां पहुंच गया कि इस जुल्म ज्यादती को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लालू जी लड़ गए। वह नहीं डरे। तेजस्वी भैया मुकाबला करेंगे। बीजेपी को हराएंगे। नरेटिव ऐसे बनाया जाता है। कांग्रेस पिट कर कोने में जाकर खड़ी हो जाती है। लड़ती हुई, आक्रामक मुद्रा में नहीं दिखती।

इसलिए राहुल की सदस्यता अगर रद्द कर दी गई तो कांग्रेस इसका फायदा ले पाएगी या नहीं कहना मुश्किल है। डर यही है कि कहीं उल्टा भाजपा ही इसका फायदा न ले ले। सबक सिखा दिया। प्रधानमंत्री का अपमान बर्दाश्त नहीं का माहौल नहीं बन जाए।

विपक्ष में एकता नहीं है। सब पर अलग अलग छापे पड़ रहे हैं। गिरफ्तारियां हो रही हैं। मगर विपक्ष कोई राजनीतिक माहौल नहीं बना पा रहा। उल्टा प्रचार यह है कि सारा विपक्ष गलत कामों में लगा हुआ है। इसलिए गिरफ्तार हो रहे हैं, छापे पड़ रहे हैं।

कांग्रेस पार्टी ने अपने बयान में कहा कि 2004 से लेकर 2014 के बीच में ईडी ने 112 छापे मारे थे, जबकि मोदी सरकार के दौरान आठ साल में इन छापों की संख्या 3010 हो गई है। कांग्रेस पार्टी के मुताबिक, मोदी सरकार में ईडी ने जिन राजनेताओं के यहां पर रेड की है या उनसे पूछताछ की है, उनमें 95 फीसदी विपक्ष के नेता हैं।

2014 से लेकर अब तक ईडी ने कांग्रेस पार्टी से जुड़े 24 नेताओं के यहां रेड डाली है। टीएमसी के 19, एनसीपी 11, शिवसेना के 8, डीएमके 6, बीजद 6, राजद 5, बीएसपी 5, सपा 5, टीडीपी 5, इनेलो 3, वाईएसआरसीपी 3, सीपीएम 2, एनसी 2, पीडीपी 2, एआईएडीएमके 1, एमएनएस 1 और एसबीएसपी 1 से जुड़े नेताओं पर जांच एजेंसी ने दस्तक दी है।

जनता को आज जो बता दो मान लेती है। वह यह तक मान गई कि बेरोजगारी, मंहगाई कोई इशु नहीं है। अडानी ने कुछ गलत नहीं किया। चीन हमसे डरा हुआ है। और अगर कोई थोड़ी बहुत समस्या है तो वह राहुल के लोकसभा में होने के कारण थी। अब उन्हें भी हटा दिया। सब ठीक हो जाएगा।

पता नहीं कांग्रेस के और विपक्ष के समझ में क्यों नहीं आ रहा कि नरेटिव (कहानी) चेंज करने की जरूरत है। बुद्धि का काम है, प्रचार का काम है। लोगों के दिमाग में घुसाने का काम है। हमें नहीं मालूम की विपक्ष के कितने नेताओं को जनता के मूड का पता है। जनता इन दिनों नफरत और विभाजन के नशे में किस कदर उलझी हुई है। उसे सिर्फ नफरत के और कुछ नहीं दिख रहा। यह तो कोई भी सामान्य मनोचिकित्सक और समाजशास्त्री बता सकता है वैसे तो बात कामन सेंस की है मगर फिऱ भी कि नफरत में झुलसते हुआ आदमी को कुछ भी दिखाई नहीं देता है। सिर्फ और सिर्फ काल्पनिक शत्रु का नाश। अपना नुकसाऩ, परिवार, बच्चों का नुकसान कुछ नहीं। देश और समाज का नुकसान दिखने का तो सवाल ही नहीं।

हालत बहुत गंभीर है। ऐसे में विपक्ष की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। सत्ता पक्ष तो जो उसे करना है कर ही रहा है। वह नहीं बदलेगा। बदलना, संभलना, समझना विपक्ष को पड़ेगा।

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Shakeel Akhtar Profile Photo
स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।