हर कुछ हफ्तों में बलात्कार में शामिल नाबालिगों पर लिखना पड़ता है। अब कल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पुलिस ने तेजी से बलात्कार और हत्या का एक ऐसा मामला सुलझाया जिसमें पड़ोस के तेरह बरस के लडक़े ने आठ बरस की बच्ची से बलात्कार किया, और फिर उसका गला घोंटकर मार डाला। पुलिस जांच में किसी सीसीटीवी कैमरे में इन दोनों को साथ जाते देखा गया, और फिर छानबीन में यह लडक़ा पकड़ में आया। यह अपने परिवार के लोगों के मोबाइल फोन पर पोर्नो फिल्में देखा करता था, और मानो उसी के असर से उसने असल जिंदगी में उसी किस्म का जबरिया सेक्स किया, और फिर छोटी बच्ची को मार डाला। पुलिस की दी गई जानकारी में यह भी पता लगा है कि इस बलात्कारी लडक़े का पिता भी अपनी सगी नाबालिग बेटी के साथ रेप के मामले में तीन बरस तक जेल में बंद था, और एक महीना पहले ही जेल से छूटकर आया है। जाहिर है कि इन बरसों में इस लडक़े ने अपने पिता के जुर्म को परिवार के भीतर ही देखा था, सजा को भी देखा था, लेकिन उसे जुर्म तो शायद प्रेरणा मिल गई, पिता को मिली सजा से उसे सबक नहीं मिला। एक मासूम बच्ची की जिंदगी चली गई, और यह नाबालिग लडक़ा अगले कई बरस के लिए सजा काटने चले गया।
हिन्दुस्तान में ऐसे मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं जिनमें मोबाइल फोन पोर्नोग्राफी देखकर बच्चे इस तरह से बलात्कार करें। वैसे तो पूरे देश से इस किस्म की हिंसा और ऐसे जुर्म की खबरें आती ही रहती हैं, लेकिन कल का यह मामला छत्तीसगढ़ में उजागर हुआ है इसलिए यह याद आया कि पिछले पखवाड़े ही छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में दस साल की एक बच्ची फांसी पर टंगी मिली। जब उसकी जांच की गई तो पता लगा कि उसके साथ बलात्कार भी हुआ था, अड़ोस-पड़ोस में जांच हुई तो पास के एक नाबालिग लडक़े को पकड़ा गया जिसने बताया कि वह मोबाइल पर अश्लील वीडियो देखते रहता था, और उसने पड़ोस में इस छोटी लडक़ी को पकडक़र रेप किया, और फिर बात खुल जाने के डर से उसकी हत्या करके उसे चुनरी से फांसी पर टांग दिया था। एक पखवाड़े में सौ किलोमीटर के भीतर ठीक ऐसा ही यह दूसरा मामला तकरीबन उसी उम्र के बच्चे का किया हुआ मिला है। और यह तो ऐसा मामला है जिसमें कत्ल की वजह से बात सामने आ गई, वरना घर-परिवार, पड़ोस-रिश्तेदार के भीतर ऐसे मामले बड़ी संख्या में होते हैं, और उन्हें सामाजिक बदनामी के डर से दबा दिया जाता है। लोगों को याद होगा कि अभी चार दिन पहले ही देश के मुख्य न्यायाधीश चन्द्रचूड़ ने कहा है कि बच्चों से बलात्कार के मामलों में परिवारों को सामने आकर पुलिस में रिपोर्ट लिखानी चाहिए। यह बात पूरी दुनिया पर लागू होती है कि अगर ऐसे अपराधी बच जाते हैं, तो वे दूसरे बच्चों के साथ भी इसी तरह का जुर्म तब तक करते रहते हैं जब तक कि वे पकड़ा नहीं जाते हैं। इसलिए किसी मामले को आसपास के संबंधी होने की वजह से दबा देने का मतलब और बच्चों को वैसे ही खतरे में डालना होता है।
अब मोबाइल फोन तो एक हकीकत हो गई है, और किसी बच्चे की फोन तक पहुंच रोकना मुमकिन नहीं है। यह भी समझ पड़ रहा है कि परिवार के बड़े लोगों के फोन तक बच्चों की पहुंच रहती है, और अगर बड़े लोगों ने पोर्नोग्राफी देखी हुई है, तो उनके फोन में इसकी हिस्ट्री बची रहती है, और उससे खेलते बच्चों के लिए यह एक आसान रास्ता पोर्नोग्राफी तक पहुंचने का बना रहता है। फिर यह भी है कि आज दुनिया का माहौल बदलने की वजह से, बच्चों के मानसिक और शारीरिक बदलाव कमउम्र में आने की वजह से उनका सेक्स से वास्ता पहले के मुकाबले कमउम्र में पडऩे लगता है। मां-बाप को यह समझ ही नहीं आता कि उनके बच्चे अब सेक्स की तरफ देखने लगे हैं, क्योंकि जब वे उस उम्र के थे, तो उन्हें इसकी कोई समझ नहीं थी। पीढिय़ों में यह फर्क आते चल रहा है, और इसके साथ-साथ हिन्दुस्तान में एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि मां-बाप और समाज यह मानकर चलते हैं कि किसी सेक्स शिक्षा की जरूरत नहीं है। इस देश की दकियानूसी और पाखंडी ताकतों ने इसे देश की संस्कृति से जोड़ दिया है, और बात-बात पर वे झंडा-डंडा उठा लेते हैं कि भारतीय संस्कृति को बर्बाद नहीं करने दिया जाएगा। सेक्स शब्द को ही पश्चिमी मान लिया जाता है, जबकि हिन्दुस्तान के इतिहास और पौराणिक कथाओं में कई जगह ऐसा जिक्र भी है कि किसी लडक़ी की माहवारी शुरू होने के बाद उसके मां बनने के मौके को बर्बाद नहीं करना चाहिए। कन्नड़ के ज्ञानपीठ विजेता लेखक भैरप्पा के महाभारत की पृष्ठभूमि पर लिखे एक उपन्यास को देखें तो एक पिता इस बात को लेकर फिक्रमंद रहता है कि बेटी रजस्वला हो गई है, शादी नहीं हुई है, गर्भधारण का मौका बर्बाद होते जा रहा है। उस वक्त के इस चलन का भी इसमें जिक्र है कि शादी के पहले भी लड़कियां गर्भवती हो जाती थीं, और शादी के बाद वे अपने उन बच्चों के साथ पति के घर जाती थीं। इसलिए शादी के पहले, या कमउम्र में सेक्स कोई पश्चिमी बात नहीं है, यह हिन्दुस्तान में भी प्रचलित बात रही है, यह एक अलग बात है कि आज एक बेबुनियाद नवशुद्धतावादी काल्पनिक इतिहास को गढक़र सेक्स को एक अवांछित बात मान लिया गया है। जबकि इन्हीं कन्नड़ लेखक के कर्नाटक में अभी कुछ ही दिन पहले बेंगलुरू के एक निजी स्कूल में अचानक ही लडक़े-लड़कियों के स्कूल बैग जांचे गए तो उनमें कंडोम और खाने वाले गर्भनिरोधक भी निकले हैं। मुम्बई के एक प्रमुख सेक्स परामर्शदाता ने अभी एक इंटरव्यू में यह कहा कि उनके पास दस-बारह उम्र के बच्चों के ऐसे मामले आने लगे हैं जो कि उनके बीच सेक्स से जुड़े हुए हैं।
हिन्दुस्तान को इस बात की पूरी आजादी है कि वह सिर को रेत में छुपाकर हकीकत की तरफ से आंखें मूंदे रहे, और आने वाली पीढ़ी को तरह-तरह के खतरों में डालना जारी रखे। आज जहां सेक्स को जुर्म की तरह दर्ज नहीं भी करवाया जा रहा है, वहां भी कमउम्र के असुरक्षित सेक्स से गर्भ का खतरा भी बना रहता है, और दर्जनों किस्म की यौन-बीमारियों के फैलने का भी। दूसरी तरफ जिन स्कूली बच्चों के पास गर्भनिरोधक मिले हैं, वे दूसरे बच्चों के मुकाबले कुछ अधिक जागरूक हैं क्योंकि वे अपनी शारीरिक-मानसिक जरूरतों को पूरा करते हुए बीमारी और गर्भधारण से बचाव की फिक्र भी कर रहे हैं। यह बात सुनने में चाहे कितनी ही बुरी लगती हो, आज सच तो यह है कि स्कूल पार करते-करते शायद अधिकतर बच्चे किसी न किसी तरह सेक्स का तजुर्बा ले चुके रहते हैं। अब उन्हें परिवार, स्कूल, या समाज बचाव के तरीके सिखाए या नहीं, वे अपनी जरूरतें तो पूरी करते रहते हैं, और भयानक सच तो यह है कि आज अधिकतर बच्चों के पास सेक्स की किसी भी तरह की शिक्षा के नाम पर सिर्फ पोर्नोग्राफी मौजूद है, जो कि सबसे ही खतरनाक किस्म की शिक्षा है। पोर्नोग्राफी प्राकृतिक या स्वाभाविक सेक्स के बजाय बलात्कार और जबरिया सेक्स सिखाती है, और अब तो छोटे-छोटे बच्चे भी उसे सीख रहे हैं।
आज हिन्दुस्तान में जो राजनीतिक दल एक तथाकथित भारतीय संस्कृति के नाम पर वोट दुहने में लगे रहते हैं, वे सेक्स शब्द को ही जेल में डाल देने के हिमायती हैं। और ऐसे कट्टर लोगों के खिलाफ दूसरी बेहतर राजनीतिक पार्टियां भी कुछ बोलने से कतराती हैं, क्योंकि उन्हें बदचलनी बढ़ाने वाला करार दे दिया जाएगा। नतीजा यह है कि देश की शिक्षा नीति को तय करने वाले लोग किशोरावस्था में पहुंचे हुए बच्चों को भी अपने शरीर और स्वास्थ्य की सुरक्षा सीखने देना नहीं चाहते, वे इसे चरित्रहीनता और पश्चिमी संस्कृति करार दे रहे हैं। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए क्योंकि अपनी देह से अनजान पीढ़ी सेक्स तक तो उसी तरह पहुंच जा रही है जिस तरह जानवर भी आपस में पहुंच जाते हैं, लेकिन जानवरों में कुछ भी अवांछित गर्भ नहीं होता, यौन-बीमारियों का खतरा या उससे बचाव नहीं होता, इसलिए उनमें तो काम चल जाता है, इंसानों के बच्चों में इससे खतरनाक जुर्म खड़े हो रहे हैं, और सेहत के लिए खतरे भी।
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