सुसंस्कृति परिहार : पिछले कुछ महीनों से जम्मू कश्मीर फिर चर्चाओं में शुमार है।कहते हैं अच्छा खासा पर्यटन चालू था लोग बड़ी तादाद में कोरोना से मुक्ति के बाद तफरी करने जा रहू थे कि बीच इस कुछ गैर कश्मीरियों को जिस तरह अकारण मारने का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसने वालिए कश्मीर के बारे में फिर सोचने विचारने बाध्य किया है। लेकिन यह जानना जरूरी है कि अब तक कुल 28 लोग मारे गए हैं । इनमें से तीन कश्मीरी पंडित, एक सिख और दो प्रवासी मज़दूर हैं। बाक़ी 21 कश्मीरी मुस्लिम नागरिक हैं। इसलिए यह कहना कि गैर कश्मीरी या गैर मुस्लिम मारे गए गलत होगा।यह कहना तो सरासर झूठ है कि पंडितों का पलायन करने के लिए यह किया जा रहा है।जबकि वहां पंडित ,सिख, मुस्लिम भाई चारा पूर्ववत जारी है यहां तक कि बड़ी संख्या प्रवासी लोग भी अपनी रोज़ी रोटी कमा रहे हैं।इन घटनाओं से दहशत तो फैलती है पर यह शादी दशकों को इस दर्द को अपने दामन में सहेजें हुए है।
प्रश्न तो इस बात का है कि धारा 370हटाने के वक्त जो बातें कहीं गई थीं उसे तीन साल से ज्यादा होने के बावजूद पूरा नहीं किया गया ।इतनी अधिक सुरक्षा घेरे के बावजूद कश्मीर के लोग आज भी वही दंश झेल रहे हैं जो पहले झेलते रहे हैं।ये ज़रूर हुआ है कि वहां के लोगों से एक तो पूर्ण राज्य का दर्जा छीन लिया और उसके टुकड़े कर दिए। केन्द्र शासित राज्य होने के बावजूद विधानसभा चुनाव नहीं कराए जा सके हैं।बाहर से आतंकी आकर वारदात करते जा रहे हैं। अमन-चैन और मौलिक अधिकारों का हनन बराबर जारी है। अडानी ने कश्मीर के बागों में पैदा होने वाले बादाम,अखरोट ,जाफ़रान और सेब फलों के साथ ही गुलज़ार न चमनों की रंगत छीन ली है।
कश्मीर के ख़ूबसूरत पर्यटन पर भी इनकी नज़र है।जन्नत को व्यापार केन्द्र में बनाने केंद्रीय सरकार लगी हुई है।जबकि यहां के अवाम के दिलों में आज भी अपने कश्मीर वतन की आरज़ू है क्योंकि वे ना तो भारत में शामिल होना चाहते हैं और ना ही पाकिस्तान में। भारत के प्रति वे उदार है और उसे उसी रुप में देखना चाहते हैं जो उन्हें 370धारा के तहत छूट मिली थीं। आपको याद होगा जब कश्मीर महाराजा हरिसिंह ने भारत से करार किया था तब कश्मीर में उनका झंडा तिरंगे के साथ फहराता था और शेख अब्दुल्ला तक वे प्रधानमंत्री कहलाते रहे।बाद के वर्षों में हुए कांग्रेस काल में समझौते के बाद मुख्यमंत्री कहलाने लगे । कुछ शर्तों के साथ भारत का एक पूर्ण राज्य बना। लेकिन उसी अवाम के साथ पांच अगस्त 2019 को जिस तरह छल और बल से वहां से 370 को हटाया उससे अवाम को गहरा आघात लगा है।यह काम प्रेम और सद्भाव से चुनी हुई सरकार के ज़रिए होता तो बात दूसरी होती।
बहरहाल,अब यह बात तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी महसूस कर ली है कि इस धारा को हटाने का सुफल नहीं मिला है।जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खात्मे पर कहा कि अनुच्छेद 370 जा चुकी है, लेकिन क्या यह दिमाग से निकल गया है? अब हमें मानसिकता बदलने की जरुरत है।उधर समीपवर्ती अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन के आगमन से आतंकवाद को कश्मीर में घुसपैठ का एक मौका मिला है। पाकिस्तान भी मौके की तलाश में उनका सहयोग करेगा ही ।यह हम भली-भांति जानते हैं।इस सबसे भी बड़ा ख़तरा चीन और अमेरिका से है क्योंकि वे केंद्र की कमज़ोर सरकार के मददगार बनकर ईराक, अफगानिस्तान की तरह भारत के इस महत्वपूर्ण भाग पर नज़र रखें हुए हैं।
संभवतः चुनाव करीब हैं इसीलिए मोहन भागवत ने भी गिरगिट की तरह बदलाव लाते हुए यह कहा है कि हमें अब मानसिकता बदलने की ज़रूरत है। इसलिए ही वे मुस्लिमों को अपना पूर्वज और एक डी एन ए का बताने बाध्य हुए हैं। लिंचिंग करने वाले हिंदुत्व के खिलाफ हैं।अब वे ऐसी संस्कृति नहीं चाहते जो विभाजन को बढ़ाए, लेकिन वो संस्कृति चाहते हैं, जो राष्ट्र को एक साथ बांधे और प्रेम को बढ़ावा दे। हिंदू मुस्लिम के साथ के बिना भारत नहीं की बात जैसी लोक लुभावन बात कह रहे हैं ।
इन तमाम बातों के आईने में उभरते इस डरावने आकर्षक को मिटाने भारत सरकार को शीघ्र दो कदम उठाने की ज़रूरत है कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दें और विधानसभा चुनाव शीध्र कराएं ताकि राज्य की अवाम का भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास कायम हो और वे भारत के साथ मिलकर अपनी चुनी हुई सरकार की इच्छानुसार अपने राज्य का विकास कर सकें।जन्नत में लूट और व्यापार की जगह खूबसूरत घाटी को और हसीन रंगों में बदल सकें।ज़ोर ज़बरदस्ती से किए काम ज्यादा दिन नहीं टिकते।जनमत और उनका अभिमत मायने रखता है ।