‘मैंने गांधी को क्यों मारा ?’ Film का Mumbai में विरोध!

मैंने गांधी को क्यों मारा ?' Film का Mumbai में विरोध!

सुसंस्कृति परिहार : वे यानि कौन! उन्हें अब तो सब जानने पहचानने लगे हैं। ये वही  लोग हैं जिन्हें आज गोडसे वादी कहा जाता है। बड़ा नाज़ुक सा सवाल यह है कि वे गांधी को मारकर अब भी क्यों डरते हैं? जबकि केन्द्र और बहुतेरे राज्यों में उन्हीं की सरकार है। इस सवाल का उत्तर एक साधारण व्यक्ति देते हुए कहेगा कि –क्योंकि उन्होंने गांधी की हत्या की है और गांधी की आत्मा आज भी हत्यारों को चैन से रहने नहीं देती जब तक उसका वे तर्पण नहीं करेंगे। अमूनन ग्रामीण क्षेत्रों में कहा जाने वाला एक सत्य यह है।वे यह मानते हैं कि हत्यारे हमेशा भयभीत रहते हैं। जब एक सच्चे संत को इस तरह मारते हैं।

बहरहाल यह बात मानसिक अशांति तो देती ही है। आज महात्मा गांधी जी के शहादत दिवस पर बार बार बापू और उनके हत्यारे याद आना स्वाभाविक है। कहने को तो अब गोडसे भी नहीं है किन्तु जिस विचारधारा से प्रेरित होकर गोडसे अपने 12वें प्रयास में सफल होता है उसके लोग आज देश की सत्ता पर काबिज हैं। जो लोग यह कहते हैं कि यह हत्या भारत पाक विभाजन में पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि से सम्बंधित है वह झूठ है क्योंकि गांधी जी को मारने की कोशिश तो बहुत पहले से शुरू थी।

वे गांधी को सिर्फ इसलिए मारना चाहते थे क्योंकि वे सर्वधर्म समभाव को मानते थे। वे जांत पांत के भेद को समाप्त करना चाहते थे। वे महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि भारत-पाकिस्तान बंटवारा ना हो। किंतु मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग जो अंग्रेजों के चाटुकार थे 1925 में सिर्फ इसी मकसद से बने थे कि भारत हिंदू राष्ट्र और पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बनाया जाए। वो तो गांधी, नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद जैसे असंख्य लोग थे जिन्होंने भारत की अपनी सांस्कृतिक पहचान जिसे गंगा जमुनी तहज़ीब कहा जाता है, को बचाने यह फैसला लिया जो जाना चाहे जा सकते हैं जो भारत में रहना चाहते हैं वे बेहिचक यहां रह सकते हैं। गांधी ये भी नहीं चाहते थे कोई मुसलमान भारत छोड़ कर जाए। संकीर्ण विचारधारा से लैस मुस्लिम लीग और संघ को इस बात से गहरा आघात लगा। वे तो ये मान बैठे थे कि एक एक मुसलमान पाकिस्तान खदेड़ दिया जायेगा।

मूलतः यह मुद्दा ही गांधी और कांग्रेस से नफरत का कारण बना। 1950 में जब संविधान आया तब से तिरंगा ह ही नहीं, राष्ट्र गान भी इन्हें खटकता रहा है। याद रखिए नागपुर संघ कार्यालय में पिछले कुछ सालों से भगवा की जगह राष्ट्रवासियों की आपत्ति पर तिरंगा लगाया गया है। राष्ट्र गान के विरोध में बराबर पहलकदमी हुई खैरियत है वह बचा हुआ है। इस संघवादी सरकार की नज़र साबरमती आश्रम पर भी है एक दिन राजघाट पर भी होगी। बापू के बारे में तथाकथित हिंदू धर्म संसद में अपमान जनक बातें की गई। किसी ने खेद भी नहीं जताया। हाल ही में उनके प्रिय भजन अलाईडविद मी को भी हटा दिया गया। भोपाल में भाजपा के लोगों ने गांधी टोपी पहने लोगों को ना केवल मारा बल्कि जलील किया। गुजरात में गांधी की उपेक्षा कर सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा का निर्माण कुछ ऐसी बातें हैं जो साफ इंगित करती है कि वे गांधी के सिर्फ हत्यारे नहीं है बल्कि उनकी विचारधारा से बुरी तरह आहत भी है। ख़बर है कि दिल्ली सरकार के कार्यालयों में सिर्फ़ अम्बेडकर साहब व शहीद भगत सिंह की तस्वीरें लगेंगी। सरकारे किसी भी दल की रही हो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की तस्वीर लगाने का नियम रहा है। क्या केजरीवाल के लिये भी गॉधीजी अब अप्रासंगिक हो गये है।

पहले गोडसे वादी विचार धारा ने उनकी हत्या के बाद हिंदू राष्ट्र का सपना देखा था वह गांधी के अनुयायियों ने पूरा नहीं होने दिया। बावरी ढहाने और गुजरात नरसंहार से मिली कथित ऊर्जा और झूठ के पाखंड से इन्हें बहुसंख्यक समुदाय की मात्र तीस फीसदी वोट के दम पर केन्द्र सरकार में ये पहुंच गए और यहीं से गोडसे विचारधारा हावी होना शुरू हो गई। जे एन यू में जबरिया टुकड़े टुकड़े गैंग की चपेट में पढ़ रहे छात्रों को देशद्रोह के आरोप में फंसाया। मुस्लिमों को डराने सी ए ए कानून लाया गया। दुनियां में गांधी वादी तरीके से मुस्लिम महिलाओं का इतना ज़बरदस्त प्रतिरोध आज तक कहीं नहीं हुआ जिसमें बच्चे और वृद्ध महिलाओं की बड़ी तादाद रही। इस जन आंदोलन को दीगर समाज के सामाजिक कार्यकर्ताओं का देश भर से समर्थन तो मिला ही है। देश के शहर कस्बों में भी शाहीन बाग स्थापित हुए। विदेशों से भी प्रतिरोध के स्वर बराबर आए। कुल मिलाकर जे एन यू और सी ए ए आंदोलन ने गांधी वादी आंदोलन का रवैया अख्तियार कर उन पर भरपूर दबाव बनाया।

उसके बाद एक साल से अधिक चले संयुक्त किसान मोर्चे के गांधीवादी आंदोलन ने तो ना केवल सरकार को  झुकाया बल्कि अपनी तमाम मांगों के लिए राजी भी कर लिया। यह गांधीवादी किसान आंदोलन विदेशी पाठ्यक्रम में शामिल हुआ। गांधी जी की यह महत्वपूर्ण देन आज देश के लिए भी वरदान साबित हो रही है। अफसोसनाक ये रहा कि अंग्रेजों के लिए किए आंदोलन की जरूरत देश को पड़ गई क्योंकि अंग्रेजों के मददगार यूं कहें देश के गद्दारों के इतिहास वाले संघ की भाजपा सत्ता में है।

'मैंने गांधी को क्यों मारा ?' Film का Mumbai में विरोध!

इन गांधीवादी आंदोलनों से भी केंद्र सरकार विचलित है। जिस गांधी विचारधारा को ये समाप्त करने की कोशिश में लगे हैं आज वही गांधीवादी, समाजवादी लोग पांच राज्यों में गोडसे वादियों को गांव शहर में घुसने नहीं दे रहे हैं। गांधी की इस ताकत का एहसास सरकार को हो चुका है। देशवासियों को चाहिए कि गांधी और स्वाधीनता के तमाम नेताओं के संघर्ष और तौर तरीकों से घर घर में अपने बच्चों को परिचित कराएं ताकि कठिन दौर में वे गांधीवादी रास्ते का अनुशीलन कर सकें। गांधी तब तक दुनिया के लोगों को राह दिखाते रहेंगे जब तक असमानता, अंध धार्मिकता, जातिवाद आदि व्याधियां समाप्त नहीं हो जातीं। वे अपनी विचारधारा के साथ ज़िंदा है। ख़बर है कि गोडसे वादी गांधी की हत्या के 74 वर्ष बाद उनकी पुण्यतिथि पर ‘मैंने गांधी को क्यों मारा’ फिल्म रिलीज कर यह बताने की कुचेष्टा कर अपने पाप धोने की कोशिश करने जा रहे हैं। सवाल वहीं बराबर उठता है कि ये बापू से क्यों अब तक डरे हुए हैं। वे ही डरते हैं वे ही सफाई  देते हैं जो हत्या के अपराध में कहीं ना कहीं शामिल होते हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है उम्मीद है इस पर रोक लगेगी।

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सुसंस्कृति परिहार
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