नीतीश कुमार के पाला बदलने से- बीजेपी के लोग जिसे ‘मास्टर स्ट्रोक’ कहते हैं- बीजेपी के लोगों को भारी झटका लगा है। जिस तरह से पालतू मीडिया में निराशा है और जिस तरह से भाजपा के नेता और भक्त मीडिया में चीख चिल्ला रहे हैं, उससे साफ संकेत मिलता है कि ‘2024 में भी यशस्वी नरेंद्र भाई मोदी ही प्रधानमंत्री’ नाम के बीजेपी के प्लान में पलीता लग गया है।
पैसों और ईडी के दम पर बीजेपी ने विरोधियों की सरकारों के विधायकों को अपने खेमे में लाने और गैर बीजेपी सरकारों को गिराकर अपनी सरकार बनाने का जो ‘विजय अभियान’ शुरू किया था, नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव यानी चाचा-भतीजा की जोड़ी ने उसे रोक देने का दुस्साहस किया है। बीजेपी के अश्वमेध का घोड़ा पकड़ लिया गया है। भय और निराशा में जी रहे विपक्ष को हौसला मिला है कि बीजेपी के विजय अभियान को रोका जा सकता है।
चुनावों से पहले विरोधी पार्टियों के नेताओं के खिलाफ ईडी का भय दिखा, पैसों का लालच देकर और पालतू मीडिया के प्रोपेगण्डा के माध्यम से ‘नरेंद्र मोदी अजेय हैं’ का नरेटिव गढ़कर बीजेपी ने विरोधियों को चुनाव में हराने और तमाम बाधाओं को पारकर जीत कर आई विरोधी पार्टियों की सरकारों को गिराने का जो सिलसिला शुरू किया था, उससे देश का विपक्ष भयभीत था कि पता नहीं अब किसकी बारी है। और इसका असर राष्ट्रपति चुनाव में देखने को मिला भी कि कई विपक्षी दलों ने नहीं चाहते हुए भी बीजेपी के राष्ट्रपति के उम्मीदवार को अपना समर्थन दिया। ममता बनर्जी और हेमंत सोरेन की पार्टी इसका बड़ा उदाहरण है। और ऐसा लगने लगा कि बीजेपी अब जो चाहे कर सकती है। महाराष्ट्र में ठीक ढंग से चल रही महाविकास आघाडी सरकार को ईडी के दम पर गिरा दिया। शिवसेना की बुरी गत कर दी, बहुसंख्य विधायक और सांसद शिवसेना प्रमुख उद्धव के खिलाफ चले गए। नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ईडी घंटों-दिनों पूछताछ करती रही और पालतू मीडिया के माध्यम से बीजेपी यह नरेटिव गढ़ने में कामयाब होती दिखने लगी कि पूरा विपक्ष भ्रष्टाचारी नेताओं से भरा है। यानी पूरा विपक्ष देश के लिए कोढ़ है। पटना में बीजेपी के अध्यक्ष ने यहाँ तक कह दिया कि एक दिन सारी रीजनल पार्टियां खत्म हो जाएंगी और सिर्फ एक पार्टी बचेगी-बीजेपी।
यह घोर अलोकतांत्रिक बयान था लेकिन कांग्रेस को छोड़ विपक्ष की किसी भी पार्टी के नेता ने इसके खिलाफ मुखर होकर बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई। बीजेपी के धुर विरोधियों को भी लगने लगा कि बीजेपी देश से लोकतंत्र को मिटाने के षडयंत्र में कामयाब हो जायेगी। बीजेपी नेता और पालतू मीडिया उत्साह से उफ़न रहा था, जबकि विपक्ष मिमिया रहा था। ऐसे में साफ दिखने लगा था कि 2024 में भी नरेंद्र मोदी का रास्ता साफ है। बीजेपी और पालतू मीडिया ने जोरशोर से प्रचार भी शुरू कर दिया था कि 2024 में भी नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। जनता की सारी समस्याएं- महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दे मोदी जी के जयकारे में गौण कर दिए जा रहे थे। कांग्रेस ने महंगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बनाया भी, लेकिन बीजेपी और पालतू मीडिया ने ‘घर घर तिरंगा; से उसे दबा देने का सफल प्रयास किया और नरेटिव चलाया कि कांग्रेस सोनिया और राहुल के भ्रष्टाचार के पाप को छुपाने के लिए ये सब कर रहे है, जबकि वास्तव में जनता के सामने महंगाई और बेरोजगारी कोई मुद्दा ही नहीं है, क्योंकि 80 करोड़ जनता को मोदी जी फ्री फंड का राशन दे रही है और इस बात के लिए आदरणीय मोदी जी बधाई के पात्र हैं। गृहमंत्री ने तो यहाँ तक झूठ बोल दिया कि नरेंद्र मोदी के बिना हस्तक्षेप के कोई अंतर्राष्ट्रीय समस्या का समाधान नहीं होता।
कुल मिलाकर बीजेपी 2024 के अश्वमेध के लिए घोड़ा छोड़ चुकी थी। और लगा था कि कोई रोकने से रहा, लेकिन नीतीश कुमार ने घोड़े को रोकने की हिम्मत दिखा दी। अब बीजेपी का घोड़ा पकड़ा जा चुका है। नीतीश कुमार के न तो विधायक टूटे न ही तेजस्वी डरे। दोनों ने मिलकर ऐलानिया सरकार बना ली। आज उसका ओथ सेरेमनी है। बीजेपी बिलबिला रही है। ईडी और पैसों से भरी अटैची, दोनों हतप्रभ हैं- क्या उनका असर समाप्त हो गया ! इस घटना से न सिर्फ रीजनल पार्टियों में बल्कि कांग्रेस में भी आत्मबल लौट आया है। विरोधी पार्टियां नीतीश कुमार में विपक्षी एकता का सूत्र ढूंढ रही हैं। कल देर रात कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नीतीश कुमार से ये भी कह दिया कि आप यूपीए के ‘संयोजक’ की भूमिका निभाएं।
दूसरी तरफ भाजपा, उसके भक्त और पालतू मीडिया नीतीश कुमार को कुर्सी कुमार या पलटू राम कह विधवा विलाप कर रहे हैं। बीजेपी नेता और पालतू मीडिया के बेगैरत पत्रकार बता रहे हैं कि नीतीश कुमार ने बिहार के मैंडेट के साथ धोखा किया-2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता ने बीजेपी और जदयू को मैडेट दिया था न कि राजद-जदयू को। ऐसा कहते हुए बीजेपी 2015 के विधानसभा चुनाव के समय के मैंडेट की चर्चा नहीं करना चाहती- जब जीत राजद-जदयू गठबंधन को मिली थी, लेकिन 2017 में सरकार बीजेपी-जदयू की बना ली गई थी।
बीजेपी के नेता अभी नैतिकता की दुहाई दे रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र में जिस तरह से शिवसेना को तोड़कर शिंदे सरकार बनाई गई, क्या वो नैतिकता है? बीजेपी करे तो ठीक, कोई और करे तो गलत, ये कैसे हो सकता है? लेकिन तमाम नैतिकताओं को ठेंगा दिखाकर बीजेपी विजेता बन नाचती है तो इसलिए कि उसके पास हिन्दू राष्ट्र नाम का कार्ड है। पिछले 8 सालों से बीजेपी इसी कार्ड के दम पर बार बार अपनी कुर्सी बचा ले रही है। जनता का परसेप्शन गढ़ने में पालतू मीडिया का अद्भुत रोल रहा है, इसलिए महंगाई का मुद्दा हो या रोजगार का, नोटबंदी का मुद्दा हो या लॉक डाउन का, टैक्स (जीएसटी) का मुद्दा हो या बैंकों के बढ़ते एनपीए का, उद्योगपतियों के लाखों करोड़ के कर्जे माफ करने का मुद्दा हो या देश की अर्थव्यवस्था के चौपट होने का, सब पर हिन्दू राष्ट्र का मुलम्मा चढ़ाकर प्रचारित किया जाता रहा कि मोदी जैसा कोई नेता आ नहीं सकता और देश प्रगति के हाइवे पर दौड़ रहा है। देश को भ्रष्टाचारियों से मुक्ति मिलके रहेगी और देश हमेशा के लिए इस्लामिक आक्रमण से दूर हो जाएगा।
अब सवाल है बीजेपी क्या नीतीश कुमार-तेजस्वी के इस दुस्साहस को चुपचाप बर्दाश्त कर लेगी? क्या ईडी का पटना में ऑफिस नहीं खुलेगा? बीजेपी नीतीश और तेजस्वी के विधायकों को डराने में कामयाब हो जायेगी? दूसरी तरफ सवाल ये भी है क्या नीतीश कुमार बिखरे विपक्ष को एक सूत्र में बांध पाएंगे? क्या जिस तरह से बिहार के सारे विपक्षी दल नीतीश के पीछे मुट्ठी बांधकर खड़े हो गए हैं, वैसा उत्तर प्रदेश में भी दोहराया जाएगा? महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में भी वैसा ही होगा? अगर ऐसा होता है तो बीजेपी के लिए 2024 से पहले गुजरात में टेंशन है।
Disclaimer: यह लेख मूल रूप से धनंजय कुमार के फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है। इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए द हरिशचंद्र उत्तरदायी नहीं होगा।