पांच राज्यों का चुनाव, क्या महिलाओं पर ही फोकस होगा?

पांच राज्यों का चुनाव, क्या महिलाओं पर ही फोकस होगा?

सुसंस्कृति परिहार : कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में लड़की हूं लड़ सकती हूं का जो शंखनाद किया उससे यू पी की युवतियों में जो जोश आया है उससे कांग्रेस को यकीनन बढ़त मिलती नज़र आ रही है। पीड़ित दुखहारी महिलाओं के घर जाने की जद्दोजहद ने भी उन्हें पर्याप्त समर्थन दिया है। चुनाव में पहली बार महिलाओं पर गंभीरता पूर्वक कांग्रेस ने जो दूरदृष्टि प्रियंका के ज़रिए सामने लाई है वह सराहनीय है।  कांग्रेस ने महिलाओं के उत्तर प्रदेश की राजनीति में 40% आने के दरवाज़े खोले हैं बल्कि अन्य दलों को भी मज़बूर किया है वे भी अब ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को टिकिट देने पर विचार विमर्श कर रहे हैं। इसके अलावा संसद में लंबित महिलाओं के 33% आरक्षण बिल का बंद रास्ता भी अगली संसद में खुलने के आसार बनते दिख रहे हैं।

प्रियंका गांधी की इस पहल का आम आदमी पार्टी के नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी असर साफ दिखाई दे रहा है आज उन्होंने यह आश्वासन भी पंजाब में दिया है कि यदि वहां उनकी सरकार बनती है तो वे 18 से लेकर तमाम उम्र की महिलाओं को प्रतिमाह 1000₹ देंगे। उनका कहना है कि घर में यदि तीन महिलाएं हैं तो उन्हें 3000₹ हर माह मिलेगा। हालांकि यह एक शिगूफा ही नज़र आता है कि प्रत्येक महिला को यह लाभ मिलेगा। जबकि 18 साल तक की लड़कियों के लिए सरकार छात्रवृत्ति, नि:शुल्क शिक्षा देती ही है। नवजात कन्या जिसे लाड़ली लक्ष्मी कहा जाता उसे 18 वर्ष होने करीबन एक लाख उच्च शिक्षा या रोजगार हेतु मिलता है। सामूहिक विवाह का आयोजन भी युवतियों के लिए तमाम सुविधाओं के साथ दिया जाता है। कहने का आशय यह है कि केजरीवाल का जो ख्याल महिलाओं को भत्ता देने का है यदि वह दिया भी जाता है तो वह जी का जंजाल होगा। क्योंकि उन्हें कुछ रुपए देकर वोट तो पार्टी को मिल सकती है लेकिन उन्हें इससे घर में सम्मान और बराबरी का हक हासिल नहीं हो सकता। अब तक जिस जिस काम में नकद राशि दी गई उसका दुरुपयोग ही हुआ। इससे बेहतर परिणाम लड़कियों को साईकिल देने के देखे गए हैं। इससे लड़कियां आत्मनिर्भर होने के साथ बड़ी संख्या में उच्च अध्ययन की ओर प्रवृत्त हुई हैं। इस लिहाज से लड़कियों को मोबाइल और स्कूटी देने की प्रियंका की घोषणा मायने रखती है।

तो क्या तमाम चुनाव में इस बार महिला केंद्रित ही होने वाले हैं ? यह सच है महिलाओं के मुद्दे आज सबसे महत्वपूर्ण हैं जो उनकी अपनी निजी एवं राजनैतिक ताकत से ही हल हो सकते हैं लेकिन इससे बड़ी समस्या है बड़ी तादाद में बेरोजगार युवाओं की जिसमें युवतियां भी है उनके रोजगार की बात भी होनी चाहिए। कोरोना पीड़ित लाखों परिवारों की आवाज़ कौन उठायेगा? सभी राजनैतिक दलों से अपेक्षा की जाती है कि जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं वे राज्यों की प्रमुख समस्याओं और उनके समाधान का बिंदुबार ब्यौरा अपने घोषणापत्र में रखे जिसे लोग देख और समझ सकें। इससे उनका विश्वास पक्का होगा। क्योंकि जनता पिछले सात आठ साल से लगातार झूठे वायदों का दंश झेल रही है।जो दल अपना इरादा स्पष्ट ना करें, उनसे जनता परहेज़ करेगी। इसके अलावा एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जनता के बीच अपने घोषणापत्र और वायदे करने वाले जब जीत जाते हैं तो वह जनादेश के तहत आता है। उसका उल्लंघन जो भी दल करे, उस पर कानूनी कार्रवाई का कठोर प्रावधान होना चाहिए। तभी घोषणाओं और वायदों की सार्थकता रहेगी तथा अनर्गल प्रलापों से जनता बच सकेगी।

कुल मिलाकर इन दो घोषणाओं से यह बात स्वत: सिद्ध होती है कि प्रियंका का “लड़की हूं – लड़ सकती हूं” नारे ने अन्य दलों की नींद उड़ा दी है। उनके मुद्दों से मंहगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा के सवाल सिरे से गायब हैं। आजकल महिलाएं वोट डालने के प्रति सजग भी है यह अच्छी बात है किन्तु अन्य मुद्दों पर भी चुनाव में स्पष्ट बात होनी चाहिए। तभी चुनावों की सार्थकता है।तभी चयनित जनप्रतिनिधि चुनौतियों से भी जूझ सकेंगे तथा जनता उनसे सवाल जवाब कर सकेगी।

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सुसंस्कृति परिहार
लेखिका स्वतंत्र लेखक एवं टिप्पणीकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।