
सुसंस्कृति परिहार : दक्षिण पूर्व एशिया के सबसे बड़ा धर्म निरपेक्ष राष्ट्र भारत में आज संघ के इशारे पर अल्पसंख्यकों के साथ जिस तरह का अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है लगता है ,उसकी प्रतिछाया में पड़ोसी बांग्लादेश भी शामिल होता नज़र आ रहा है ।जिसकी स्थापना का श्रेय भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को है जिन्होंने पाकिस्तान की जुल्म ज़्यादतियों से छुटकारा दिलाने बंग बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की मुक्ति वाहिनी साथ दिया था और फौजी शासकों के चंगुल से इसे निकालकर एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में सबसे आगे बढ़कर बांग्लादेश को मान्यता दी थी।
आज वही राष्ट्र धर्मान्धता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है- आपको यह भाषण याद होगा –“मैंने बंगलादेश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था”,यह उस देश के प्रधानमंत्री का भाषण है जिसके देश में उस समय कोविड की दूसरी लहर का मातम पसरा हुआ था लेकिन बंगाल का चुनाव जीतने की ललक में वहां के बहुसंख्यक मतुवा समुदाय को रिझाने हमारे प्रधानसेवक मतुवा समुदाय के बांग्लादेश स्थित मंदिर पहुंच गए थे। हालांकि उस दौरान भी मोदी के खिलाफ की जगह प्रर्दशन हुए थे ।जिसकी एक वजह तो यहां से विस्थापित लोगों पर CAAकानून की दहशत और दूसरे असम के विस्थापित मुस्लिम समुदाय के साथ हुई ज्यादतियां । तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण था प्रधानमंत्री हसीना बेगम का भारत के प्रति नरम रवैया।ज्ञातव्य हो पचास साल बांग्लादेश के निर्माण के दिसंबर में होने वाले हैं यदि कुछ वर्षों के कट्टरपंथी शासन को छोड़ दिया जाए तो यहां भी भारत की तरह कमोवेश सिर्फ बाप बेटी की अवामी लीग ही शासन करती रही है अब यहां भी कट्टर पंथियों के प्रचार से लोगों के दिल दिमाग में भी बदलाव का बीज बोया जा रहा है। ठीक भारत की तर्ज पर यहां बहुसंख्यक मुसलमानों को बरगलाया जा रहा है तथा अल्पसंख्यक हिंदू निशाने पर हैं । पिछले दिनों बांग्लादेश के कुमिल्ला शहर में एक दुर्गा पूजा पंडाल में कथित तौर पर क़ुरान रखे जाने के बाद लगभग 70दुर्गा पूजा पंडालों और हिंदू मंदिरों पर सिलसिलेवार हमले हुए इन हमलों के बाद शुक्रवार को कई रैलियों के दौरान देश के कई हिस्सों में हिंसा हुई। इन हमलों में हिन्दू घरों को निशाने पर लिया गया और सात लोगों की मौत की खबर है।इसी बीच यहां अफवाहों का बाज़ार गर्म है।जिसे लेकर प्रधानमंमंत्री शेख़ हसीना पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। हिंसा को जल्द से जल्द न रोक पाने पर प्रधानमंत्री हसीना की आलोचना भी हो रही है।ढाका ट्रिब्यून ट््टि से प्रकाशित संपादकीय टिप्पणी में सत्ता से सवाल पूछा गया है कि क्या हम सेक्युलर सोसाइटी अब नहीं रहे और क्या अब इस देश में अल्पसंख्यकों के लिए जगह नहीं है?जिस तरह से हिंदू समुदायों के साथ उनके सबसे बड़े त्योहार के दौरान बर्बरता, यातना, संघर्ष और हत्या हुई है, उसने साबित किया है कि बांग्लादेश एक राष्ट्र होने के नाते नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकार पूरा करने में नाकाम रहा।
इधर भारत सरकार मौन है। संयुक्त राष्ट्र संघ तक का बयान आ गया है।भाजपा से जुड़े हिंदुवादी संगठन बंगाल में प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन दिल्ली चुपचाप है ।वोट के सौदागर अब वहां की हिंसा से अब उत्तर प्रदेश में लाभ ढूंढने में लग गए हैं ।देश के पड़ोस की भड़की सांप्रदायिकता बहुत उचित समय पर हो रही है कश्मीर में अप्रवासी मारे जा रहे हैं और पड़ोस में मंदिर तोड़े जा रहें हैं यही मसाला तो चाहिए उत्तर प्रदेश में, मतुवा मंदिर में पूजा से तो कुछ मिला नहीं लेकिन उसी बांग्लादेश में मंदिर तोड़े जाने का लाभ तो मिल ही सकता है, इसलिए न कड़ी निन्दा, न सर्जिकल स्ट्राइक की धमकी, न द्विपक्षीय संबंधों का हवाला क्योंकि यह सांप्रदायिकता अच्छी है। चुनावी परिदृश्य बदलने यही तो जरूरी है।
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक ख़बर के अनुसार, नई दिल्ली ने एक नोट के ज़रिए ढाका के समक्ष चिंता जताई है कि इससे चरमपंथी तत्व बांग्लादेश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा न दें।वहीं, गुरुवार को दुर्गा पूजा के मौक़े पर अपने भाषण में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने उम्मीद जताई कि अगर भारत में कोई प्रतिक्रिया होती है तो वहाँ की सरकार इसके ख़िलाफ़ क़दम उठाएगी ।क्योंकि बांग्लादेश में इसका असर हो सकता है।शेख हसीना से उम्मीदें की जा सकती हैं। उन्होंने अब तक बेहतरीन से देश संभाला है।
इस बीच घटना के संबंध में अचिंत्य दास ने बताया कि सप्तमी के दिन लगभग आधी रात तक लोगों का पंडाल में आना लगा रहा। जब लोगों का आना बंद हुआ तो आयोजकों ने पंडाल के मुख्य अहाते को पर्दे से घेर दिया था।स्टेज से बाहर कुछ ही दूर पर गणेश जी की मूर्ति थी जो खुली हुई थी, वहाँ किसी का क़ुरान छूट गया था।उन्होंने बताया कि आयोजन स्थल पर एक निजी कंपनी के गार्ड को भी लगाया गया था, जो सुबह से वहाँ मौजूद था लेकिन जब वो क़ुरान रखी गई तब वह गार्ड वहाँ नहीं था। बाद में जिन दो मुस्लिम युवकों ने कुरान रखें जाने की सूचना पुलिस को दी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है साथ ही सी सी टी वी फुटेज के आधार पर कुरान रखने वाले की भी पहचान कर ली गई है। पुलिस उसे शीघ्र पकड़ने का दावा भी कर रही है।अब तक हिंसा में शामिल करीबन पचास लोगों की गिरफ्तारी भी की जा चुकी है।
ज्ञातव्य हो पिछले दो वर्षों से चरमपंथी यहां माहौल बिगाड़ने में लगे ।बताते हैं उपद्रव की आशंका के मद्देनजर इस बार पंडाल लगाने हिंदुओं में हिचक थी लेकिन प्रधानमंत्री के सुरक्षा आश्वासन पर पंडाल सजाए गए थे।।इस बात से हसीना बेगम बहुत दुखी हैं।उनकी बांग्लादेश विकास की छवि को गहरा धक्का लगा है। भारत की पुरानी स्थिति पर गौर करें तो लगभग-लगभग हालात एक जैसे नज़र आते हैं।अगले चुनाव में बहुसंख्यक वोट पाकर चरमपंथी यहां भी सत्ता पर काबिज हो सकते हैं। भारत के बाद बांग्लादेश जैसे विकासशील एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष राष्ट को बरबादी के रास्ते पर ले जाने वाले गिरोह की पहचान ज़रुरी है क्योंकि इंडोनेशिया,सऊदी अरब जैसे मुल्कों में भी हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन वहां ऐसी स्थितियां नहीं बनती आखिर क्यों ?
यह भी विचारणीय है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में यहां के अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार की जानकारी भी सबको है कहीं यह पलटवार तो नहीं। भारत सरकार को चुप रहने के बजाय अपने अंदरूनी हालात को सुधारने की जरूरत है ताकि बाहर अच्छा संदेश पहुंचे। सिर्फ चुनाव जीतना ही यदि मकसद रहा तो हम अपने देश की प्रतिष्ठा तो खो देंगे साथ ही बाहर के देशों में रह रहे हिंदुओं को असहनीय स्थिति में पहुंचा देंगे।
