भारतीय जनता पार्टी को इस बार के विधानसभा चुनाव में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यह पार्टी लंबे समय से सरकार में है इसलिए एंटी कंबेंसी तो स्वाभाविक है। इतने लंबे समय तक चलने वाली सरकार से लोग उम्मीद भी करते हैं और नाउम्मीद भी जल्दी होते हैं। इसके अलावा और जो चुनौतियां है, उनमें सिंधिया गुट के लोगों और मूल भाजपा के लोगों में आंतरिक खींचतान भी एक है। निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में ये चुनौती के रूप में सामने आएगा। जहां से सिंधिया गुट के लोग चुनाव लड़ेंगे, वहां सेबोटेज से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन, इससे भी बड़ी चुनौती वो है, जिसका अंदाजा नहीं लगा जा रहा और न भाजपा उसे गंभीरता से ले रही है। वह चुनौती है उमा भारती का बदलता नजरिया! अब वे खुलकर मैदान में आने की तैयारी में हैं और शराबबंदी की मांग को लेकर उन्होंने 17 जनवरी से आर-पार की लड़ाई की चेतावनी भी दे दी।
पार्टी के अंदर सुलग रही उमा भारती लंबे समय से अलग-अलग तरीकों से भाजपा को परेशान करने में लगी है। न सिर्फ संगठन को, बल्कि सरकार को भी वे अपने शराबबंदी अभियान से परेशान कर रही हैं। कई बार उन्हें शराब की दुकानों पर पत्थर चलाते देखा जाता हैं। इसके अलावा भी वे जो कर सकती हैं, उसमें पीछे नहीं हट रही। बात यहीं तक सीमित नहीं है। वे रायसेन के किले में पहुंचकर वहां पुरातत्व विभाग को पुरातन शंकर मंदिर खोलने के लिए मजबूर करती है। उन्होंने पिछले दिनों ओंकारेश्वर के ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में आकर वहां लगी रेलिंग उखाड़ दी। यहां भी पुरातत्व विभाग को बहुत सारा ज्ञान दिया, कहा कि शिवलिंग और नंदी के बीच यह रैलिंग क्यों लगाई गई! पुरातन मंदिरों के संरक्षण का आशय यह नहीं कि पुरातत्व विभाग पुजारियों की बात की अनदेखी करे।
उनका विरोध सिर्फ यही तक सीमित नहीं है। अब उन्होंने आगे कदम बढ़ाते हुए सामाजिक रुप से भी भारतीय जनता पार्टी को कमजोर करने की कोशिशें शुरू कर दी। स्वाभाविक है कि यह उनकी सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। पिछले दिनों उमा भारती ने अपने समाज के एक कार्यक्रम में संदर्भ से अलग हटकर वहां मौजूद लोगों से कहा कि वे उनके कहने से भाजपा को वोट न दें! उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे पार्टी से बंधी हैं, इसलिए वे तो भाजपा को वोट देने के लिए कहेंगी, लेकिन उन्हें जिस भी पार्टी को देना है, उनको वोट दें। इसका सीधा सा मतलब समझा जा सकता है कि वे मध्यप्रदेश के 9% लोधी वोटरों को भाजपा से काटना चाहती हैं, जो अभी तक भाजपा के साथ रहे हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता इसके पीछे उमा भारती रही हैं। 2003 से जो लोधी वोटर भाजपा से जुड़े हैं, वे अब टूटेंगे! चुनावी साल में उनका ये मुद्दा अंडर करंट बन सकता है। कारण कि उमा भारती के इस अभियान को महिलाओं का समर्थन मिल रहा है। भाजपा का मजबूत माना जाने वाला महिला वोट बैंक यदि उससे छिटका तो उसे बड़ा नुकसान हो सकता है।
उमा भारती साध्वी हैं, पर उससे ज्यादा राजनीतिक हैं। वे जिस लोधी समाज से आती हैं, उसका मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के अलावा उत्तरप्रदेश के बड़े इलाके में दबदबा है। इस समाज के वोटर विधानसभा की कई सीटों पर खेल बिगाड़ सकते हैं। लोधी वोटरों की 9% ताकत का भाजपा से टूटना पार्टी के लिए बड़ा खतरा है। 230 सीटों वाली विधानसभा में 50 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां लोधी वोटर सारे समीकरण प्रभावित कर सकते हैं। उमा भारती के तेवर जिस तरह बदल रहे हैं, उसके पीछे कोई बड़ी रणनीति का संकेत मिलने लगा है। वे अपनी राजनीतिक ताकत से पार्टी नेतृत्व को ये संदेश भी दे रही हैं कि लोधी समाज को हाशिए पर रखकर भाजपा प्रदेश में फिर से सरकार नहीं बना सकती।
उमा भारती की राजनीति का अपना एक अलग तरीका है। वे भाजपा का सामने खड़े होकर विरोध न करके भी भाजपा के लिए गड्ढे खोद रही हैं। उन्हें जहां भी मौका मिलता है, वे कमजोर जगह पर चोट करने से नहीं चूकती! वे भाजपा के उस ‘राम अभियान’ को भी चोट पहुंचा रही है, जो पार्टी की सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने यहां तक कहा कि राम और हनुमान भाजपा के कॉपीराइट नहीं है। यह दोनों भगवान पुरातन काल से हिंदुओं की आस्था के प्रतीक रहे हैं और इन्हें भाजपा ने नहीं बनाया। इनके नाम पर भाजपा की राजनीति से यह नहीं कहा जाना चाहिए कि कोई और पार्टी में राम के हनुमान के भक्त नहीं हो सकते। उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए कई तर्क दिए। जहां तक तर्कों की बात है, उमा भारती के सामने कोई खड़ा नहीं हो सकता। क्योंकि, वे बचपन से धार्मिक प्रवचनकार रही हैं। इसलिए उन्हें वे सारे धार्मिक ग्रंथ कंठस्थ हैं, जिनके आधार पर वे कभी भी किसी से भी बहस कर सकती हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि उन्होंने भाजपा की राम ताकत को कमजोर करने की कोशिश भी की। उन्होंने यह भी कहा कि जब कांग्रेस के लोगों ने राम मंदिर के लिए चंदा दिया और भाजपा के लोगों ने उसका विरोध किया था, तब सबसे पहले मैंने ही कहा था कि राम सबके हैं राम के भक्त कहीं भी हो सकते हैं।
जिस तरह से उमा भारती अपना विरोध जमीन से ऊपर लाती जा रही हैं, भाजपा ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की। पार्टी या सरकार किसी ने भी अभी तक उनके शराबबंदी अभियान को लेकर कुछ नहीं कहा। किसी अन्य मामले में भी पार्टी और सरकार दोनों चुप हैं। जबकि, उमा भारती ने कई बार कानून भी हाथ में लिया, पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यदि यही गुनाह कोई आम आदमी करता, तो अभी तक उसे जेल में डाल दिया जाता। जो शराब की दुकानें सरकार को राजस्व देती है और सरकार उन्हें खोलने की इजाजत देती है, उस पर पत्थर बरसाना कानूनन गलत है। जिस पुरातत्व विभाग को पुरातन मंदिरों की देखरेख करने की जिम्मेदारी मिली है, उनके काम में हस्तक्षेप भी इसी तरह का एक मामला है। लेकिन, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई तो दूर कोई टिप्पणी तक नहीं की गई।
कहा जा रहा है भाजपा के नेता रहे प्रीतम लोधी जो कि उमा भारती के रिश्तेदार हैं, भाजपा ने जब उनके खिलाफ कार्रवाई की, तो वे खफा हो गई। उनके भतीजे राहुल लोधी के चुनाव को जब कोर्ट ने खारिज कर दिया, तो भी उमा की पार्टी से नाराजी उग्र हो उठी। लेकिन, पार्टी ने उनको मनाने या समझाने की कभी कोशिश शायद नहीं की। उनके सड़क पर आकर खुला विरोध करने को लेकर भी प्रतिक्रिया नहीं की। इस बात का खुलासा अभी तक नहीं हुआ कि ऐसा क्यों? लेकिन, यदि उनकी गतिविधियों पर नकेल नहीं डाली गई, तो उमा भारती भाजपा का बड़ा नुकसान कर सकती हैं।
इसका संकेत उन्होंने अपने समाज के कार्यक्रम में दिया भी है कि मेरे कहने से वोट मत देना। इसी बात से समझा जा सकता है कि वे अब खुलकर विरोध की स्थिति में आ गई! लेकिन, वे ऐसा क्यों कर हैं, इस बात का खुलासा होना अभी बाकी है। देखना है कि भाजपा की दूसरी चुनौतियों के अलावा अंदर से उभर रही इस चुनौती का मुकाबला कैसे करती है! क्योंकि, शिवराज सिंह चौहान के अलावा भाजपा का कोई और नेता तो सामने आकर तो उमा भारती से बात करने का साहस नहीं रखता! लेकिन, जो भी बात करेगा, वो कब करेगा! ऐसा नहीं हो कि जब पार्टी संगठन उनसे बात करने का सोचे, तब तक हालात ज्यादा बिगड़ जाएं!
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