मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां!

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां!

नागदा। मप्र मे नवंबर माह में विधानसभा चुनाव है। जिसको सियासती पारा चढा हुआ है।  मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने मालवा अंचल के उज्जैन जिले में स्थित नागदा को जिला बनाने की घोषणा की है। जिसकी प्रक्रिया भी शुरू हो गई। नागदा विधानसभा सीट पर वर्तमान में कांग्रेस के दिलीपसिंह गुर्जर एमएलए है।  आगामी विधानसभा चुनाव में इस सीट पर  कांग्रेस से  चार बार के विधायक श्री गुर्जर की टिकट लगभग तय है।  भाजपा में टिकट को लेकर स्वयंबर मचा हुआ है। यह भाजपा के दो कदृदावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ थावरचंद गेहलोत, जो वर्तमान में कर्नाटक के राज्यपाल है, तथा  मप्र शासन में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त असंगठित कामगार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सुल्तानसिंह शेखावत के  गृहनगर की सीट है।

भाजपा ने प्रदेश की  39 सीटों पर प्रत्याशियों के नामों की पहली सूची जारी की है, जिसमें में मालवा अंचल के उज्जैन जिले की दो  तराना एवं घटिया सीट के  उम्मीदवारों के नाम शुमार है। ये दोनों अजा वर्ग की सुरक्षित है। पिछले वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों सीटों पर भाजपा को शिकस्त मिली है। जैसा बताया जा रहा है भाजपा ने कमजोर सीटों पर  पहली सूची में नाम तय किए  हैं। नागदा सीट पर अधिकांश बार  मुकाबला रहा या कांग्रेस का कब्जा रहा है।  बावजूद पहली सूची में  इस सीट पर उम्मीदवार की घोषणा को रोकना प्रत्याशियों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा माना जा रहा है। हालांकि इस सीट पर अब भाजपा की कड़ी नजर है।  इस कारण सीएम ने 15 बरसों से झूल रही जिला बनाने की मांग चुनाव के एन वक्त पर पूरी करने की घोषणा की है। नागदा सीट पर पिछली बार भाजपा उम्मीदवार दिलीपसिंह शेखावत की  हार के बाद कई नए चेहरों में टिकट को लेकर उत्सुकता है।

अब यह चेहरा बदला जाएगा या पुनरावृति होगी अभी तस्वीर धुंधली भाजपा ने इस सीट से  दिलीपसिंह शेखावत  पिछले चुनावों में लगातार तीन बार कांग्रेस के दिलीपसिंह गुर्जर के खिलाफ मैंदान में उतारा है। जिसमें से शेखावत को  2 बार पराजय और एक मर्तबा सफलता मिली है।  2018 में भाजपा प्रत्याशी शेखावत  कांग्रेस के श्री गुर्जर से 5117 मतो से हार गए थे। दोनों के बीच पहली बार 2008 में टक्कर हुई जिसमें कांग्रेस के गुर्जर 9500 से भी अधिक मतो पिछली से जीत गए।  दूसरी बार 2013 में भाजपा के दिलीपसिंह शेखावत ने 16,115 मतो से बाजी मारी। गत चुनाव में शेखावत की 5112 वोटो की पराजय  के बाद अबकि बार  कई दावेदारों के नाम इस दलील के साथ  सामने आ रहे हैंकि  तीन में से 2 बार प्रत्याशी शेखावत की हार से चेहरा बदला जा सकता है। हालांकि शेखावत का नाम भी दौड़ में शुमार है। भाजपा से लगभग एक दर्जन प्रत्याशियों के नाम एक अनार सौ बीमार कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। इस सीट के इतिहास की खासियत हैकि कांग्रेस ने पिछडा वर्ग के उम्म्मीदवार पर दांव खेला है, तो भाजपा ने ठाकुर प्रत्याशियों को ही टिकट से नवाजा है

अबकि बार ये दावेदार- अबकि बार भाजपा में राजपूत  उम्मीदवारों की बात की जाए तो मप्र शेखावत, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक लालसिह शासन में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मप्र शासन असंगठित कामगार कल्याण बोर्ड अध्यक्ष सुल्तानसिंह राणावत, पूर्व विधायक दिलीपसिंह शेखावत, भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य डॉ तेजबहादुरसिंह चौहान एवं मोतीसिंह शेखावत के  नामों की चर्चा है।  मोतीसिंह  बोर्ड अध्यक्ष सुल्तानसिंह के बेटे हैं। गैर ठाकुर प्रत्याशियों में पूर्व नपा अध्यक्ष शोभायादव  पूर्व नपा उपाध्यक्ष राजेश धाकड़, भाजपा जिला महामंत्री धर्मेश जायसवाल , किसान नेता दयाराम धाकड़ एवं विहिप नेता भेरूलाल टांक के नामों की सुगबुगाहट है। उंट किस करवट बैठेगा  कहा नहीं जा सकता। भाजपा यहां देने में फूंक -फूंक कर कदम रख रही है। पिछले चुनाव की टिकट की पुनरावृति होगी या परिवर्तन इसमें अभी संशय है।

8 बार ठाकुरों ने मैंदान संभाला

जातिगत समीकरण देखा जाए तो नागदा ठाकुर पिछडा वर्ग बाहुल्य सीट है। भाजपा के अस्तित्व में आने के बाद 1985 से लगातार इस सीट से पार्टी ने ठाकुरों को 8 बार मैदान में उतारा है। जिस में से ठाकुर प्रत्याशी 3 बार चुनाव जीते और 5 बार हारे हैं। भाजपा के राजपूत उम्मीदवार 1990, 1998 एवं 2013 में  कामयाब हुए। जबकि 1985, 1993, 2003, 2008 एवं 2018 में पराजय का सामना करना पड़ा। दो बार लालंिसंह राणावत 1990 एवं 1998 में  विधायक बने। जबकि  2013 में दिलीपसिंह शेखावत विधानसभा पहुंचे।

भाजपा के अस्तित्व में आने के पहले की बात की जाए तो इसी दल की विचारधारा के वीरेंद्रसिंह कंचनखेड़ी 1957 में हिंद महासभा से तथा 1967 एवं 1972 में भारतीय जनसंघ की टिकट से विधायक बने। 1967 में संविद सरकार में मंत्री भी बने। इधर, कांग्रेस ने पिछडा वर्ग पर भरोसा किया और अधिकांश बार  गुर्जर समाज के उम्मीदवार पर दाव खेला। वर्ष 1985 के चुनाव में पिछड़ा  वर्ग के रणछोड़लाल आंजना ने भाजपा के ठाकुर प्रत्याशी लालसिंह राणावत को 3828 मतों से पटकनी दी । वर्ष 1990 में भाजपा के राणावत चुने गए। वर्ष 1993 में  दिलीपसिंह गुर्जर पहली बार कांग्रेेस की टिकट पर विधायक बने। वर्ष 1998 में इस सीट को भाजपा ने कांग्रेस से छिन ली और भाजपा के राणावत विधायक चुने गए । इस बार कांग्रेस के बाबूलाल गुर्जर 4731 मतों से पराजित हुए। उधर, कांग्रेस खेमे की बात की जाए तो गुर्जर समाज के दिलीपसिंह गुर्जर चार बार क्रमशः 1993, 2003, 2008 एवं 2018 में विधायक बने । वर्ष 2003 में कांग्रेस से  टिकट कटने पर श्री गुर्जर ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और 14, 429 वोटों से विजयी हुए। उस दौरान कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जप्त हुई और भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा।

जैन एवं ब्राह्मण उम्मीदवार जीते

इस सीट पर भाजपा के अस्तित्व में आने के पहले गैर समाज के उम्मीदवार भी जीते हैं। पहला चुनाव  1952 में स्वाधीनता सैनानी स्व रामचंद्र नवाल ने कांग्रेस की टिकट पर जीता। उस समय महिदपुर का हिस्सा भी शामिल था।   1962 में जैन समाज के स्व भैरव भारतीय ने निर्दलीय बाजी मारी। 1977 में हलधर चिन्ह से जनता पार्टी की टिकट पर तथा 1980 में कमल फूल चिन्ह पर स्व पुरूषोत्म विपट ने जीत दर्ज की । वे बाहाण समाज के थे। उन्हें दो बार जीत नसीब हुई।

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