अपने पाठक से बतियाने लगती है मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं

प्रेमचंद का किसान क्या आज भी हाशिए पर है?

हिंदी साहित्य के अद्वितीय , अनूठे और अमर कहानीकार एवं उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित लगभग तीन सौ कहानियों और बारह उपन्यासों का अध्ययन करते समय पाठकों के मन, मस्तिष्क और हृदय में गाॅवो का सहज , सरल,  ठेठ , देशज और देहाती अंदाज तथा गरीब और गांव की व्यथा सजीव होने लगती हैं। आधुनिक हिंदी साहित्य को अत्यंत समृद्धशाली बनाने और बुलंदी प्रदान करने वाली उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानियों और उपन्यासों को पढ़कर पाठक पिढि- दर- पिढि संवाद करता हुआ नजर आता है। उनके उपन्यास हो या कहानियां अपने पाठकों खुलकर स्वछंद भाव से बतियाने लगती है। पाठक और कहानियां एक दूसरे से इस तरह घुल-मिल जाती हैं जैसे एक दूसरे से जान-पहचान बहुत पुरानी हो ।  मुंशी प्रेमचन्द की साहित्यिक प्रतिभा इस दृष्टि से उत्कृष्ट है कि – उनकी कहानियों के चरित्र वर्तमान दौर के पाठकों से सहज संवाद करती हैं । उनकी कहानियों  के चरित्र और उनके दौर से रूबरू होना हमारे समाज की एक स्वाभाविक जरुरत बन जाता है ।  हिन्दी साहित्य परम्परा में मुंशी प्रेमचंद की महानता यह है कि-उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से काल्पनिक, तिलिस्मी, अय्यारी, देव लोक की सुन्दर परियों और स्वर्ग  -नरक की किस्सों कहानियों से भरी लेखन परम्परा को ध्वस्त कर गाँवों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक  जन-जीवन का यथार्थवादी चित्र परोसने का उत्कट और साहसिक प्रयास किया। मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक कुशाग्रता इस दृष्टि से अनूठी है कि -उन्होंने अपनी कहानियों में चुन-चुन कर देशज शब्दों का प्रयोग किया है और भाषा शैली भी देशज है। इसके साथ उनकी कहानियों के किरदार आम जनजीवन की समस्यायों से लड़ता -जूझता आम आदमी है। इसलिए उनकी कहानियां वर्तमान को जागरूक और संघर्ष के लिए उत्प्रेरित करती नजर आती हैं।

दो सौ वर्षों की ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं की प्रतिपूर्ति में भारतीय गाॅवो की आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन, स्वाधीनता और सुख-चैन  का क्रूरता और निर्लज्जता से दमन कर दिया था। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा इन लूटे-पिटे गाॅवो की दुर्दशा तथा दुर्व्यवस्था और इसमें रहने वाले लोगों की व्यथा ,विवशता और जलालत और जहालत भरी जिन्दगी की दुश्वारियों को अपनी रचनाओं के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद ने मार्मिक और यथार्थवादी रूप से प्रस्तुत करने का श्लाघनीय प्रयास किया है। सामंतवाद, पुरोहितवाद और महाजनी व्यवस्था के सम्मिलित शोषण से कराहते आम आदमी की कातर कराहो और चीखो को अपनी रचनाओं में मुंशी प्रेमचंद ने प्रखर आवाज दिया हैं। सामंतवाद के शोषणकारी हंथकंडो, आम आदमी को आर्थिक रूप से निचोडने वाले पुरोहितवाद के कर्म-काण्डो और महाजनी व्यवस्था के लूट-खसोट और सफेदपोश डाकाजनी  पर विविध कहानियों के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद ने करारा प्रहार किया है। मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक प्रतिभा इस दृष्टि से अद्वितीय है कि- उन्होंने आम आदमी से लेकर रसूखदार लोगों के भाव, स्वभाव, मनोभावों, मनोविकारों और मनुष्य के मन,  मस्तिष्क और हृदय में उमडती- घूमड़ती विविध हलचलों की अपनी सर्जनाओं द्वारा सटीक, तार्किक और वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की है। इसके साथ ही समाज में प्रभुत्त्वशाली वर्ग द्वारा स्थापित परम्पराओं, रीति-रिवाजों और कुसंस्कारो के समक्ष नतमस्तक आम आदमी की विवशता को भी मुंशी प्रेमचंद ने तार्किक और न्यायसंगत तरीके प्रस्तुत किया है। मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ” सदगति ” में कर्मकाण्डो के समक्ष आम आदमी की विवशता साफ-साफ दिखाई देती है। दलित समुदाय से आने वाला ” दुखी” महज साइत निकलवाने के लिए पंडित घासीराम की बेगारी करते करते मर जाता हैं।

इस दौर में जब देश के चन्द पूंजीपतियों ,औद्योगिक घरानों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में सरकारें किसानों को उनकी पुश्तैनी जमीन से बेदखल कर रही हैं मुंशी प्रेमचंद की मशहूर कहानी ‘ पूस की रात ‘ के मुख्य पात्र हलकू किसान का संघर्ष वर्तमान दौर के छोटे और मझोले किसानों को प्रेरणा और उर्जा प्रदान करता है। हांड कपा देने वाली ठंड भरी रात में कर्ज में डूबा हलकू बर्बर जंगली जानवरों से फसल की रक्षा करने के लिए खेत अगोरने के लिए निकल पडता है। इस तरह अपने जमीन के एक टुकड़े के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन न्योछावर कर देना देश के अंदर चल रहे अनगिनत किसान आंदोलनों को प्रेरणा दे सकता हैं। कर्जदारी और खेती-किसानी की अन्य समस्याओं से उजडते किसानों की व्यथा तथा बेदखली से किसान से मजदूर के रूप में बदलते किसानों की पीड़ा को पूष की रात की कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है। स्वाधीनता उपरांत औपचारिक रूप से जमींदारी और जागीरदारी को समाप्त कर दिया गया। परन्तु आधुनिक समय में बहुराष्ट्रीय कंपनियों, पूँजीपतियों और औद्योगिक घरानों के रूप में नये जमींदारों और जागीरदारों का उदय हुआ है। इन नये नवेले जमींदारों के पक्ष मे सरकारे कर्ज की जंजीर और जंजाल में डूबे लाखों करोड़ों किसानों को जमीन से बेदखल कर रही हैं , जिससे छोटी जोत के किसान आज तेजी से मजदूर बनते जा रहे हैं।

मुंशी प्रेमचंद की हर कहानी मनुष्यता को स्थापित करने का सार्थक प्रयास है। ईदगाह जैसी कहानी में पुरूखो के प्रति सम्मान और समर्पण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। नन्हा सा बालक हमीद मेले में खेल-खिलौने न खरीद कर अपनी दादी के लिए चिमटा खरीद कर लाता है। इस कहानी में बाल मन की कोमलता, अपनी दादी के प्रति सहज प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाता है। इस कहानी ने भावनाओं के ईमानदार लेखक के रूप में मुंशी प्रेमचंद को अमर कर दिया। अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था खर्चीली, उबाऊ और समयघोटु थी। इसकी प्रतिक्रया में मुंशी प्रेमचंद ने भारतीय जनमानस में प्रचलित पंचायत प्रणाली द्वारा न्याय व्यवस्था का पंच परमेश्वर की कहानी के माध्यम से स्पष्ट करने का प्रयास किया है। इस पंच परमेश्वर की कहानी  में भारतीय न्याय व्यवस्था में व्याप्त  निष्पक्षता और इंसानियत का बेहतर चित्रण किया है। पंच परमेश्वर की कहानी में न्यायाधीश के रूप में अलगू चौधरी दोस्ती और दुश्मनी से ऊपर उठकर न्याय करते हैं। पंच परमेश्वर की कहानी में न्याय के अतिरिक्त हिन्दू और मुस्लिम जीवन पद्धति में बढते साहचर्य, समन्वय और सहकार का तार्किक चित्रण पाया जाता हैं।

वर्तमान दौर में बढती प्रतीकात्मक राजनीति को उस दौर में मुंशी प्रेमचंद ने दूरदर्शिता पूर्वक समझने, परखने और रेखांकित करने का प्रयास किया था। वर्तमान दौर में व्यापक और बुनियादी हितों के बजाय प्रतीकात्मक और भावनात्मक मुद्दों पर राजनीति का चलन-चलन बढता जा रहा हैं। बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और बेहतर चिकित्सा जैसे मुद्दे संसद और विधानसभा के पटल से लेकर टीवी चैनलों पर होने वाली बहसों से गायब है।  ईमानदारी, सच्चाई और सचरित्रता जैसी भावात्मक चीजे भौतिक वस्तुओं की तरह खरीदी-बेची जा सकती हैं। बढते बाजारवाद और उपभोक्तावादी संस्कृति में भौतिक वस्तुओं की तरह भावात्मक चीजे भी खरीदने- बेचने का विषय बनती जा रही है। इसको मुंशी प्रेमचंद ने अपने दौर में समझ लिया था। नमक के दरोगा की कहानी में ईमानदार दरोगा अलोपीदीन को बेहतर वेतन और सुविधाओं द्वारा उसी भ्रष्ट सेठ द्वारा सम्मानित किया जाता हैं जिसके अवैध कारोबार को ईमानदार अलोपीदीन ने पकड़ा था। मुंशी प्रेमचंद मानव मन के सर्वश्रेष्ठ व्याख्याकार के साथ-साथ बेहतर मानव जीवन के लिए संघर्ष के उत्कट प्रेरक हैं। मुंशी प्रेमचंद कार्ल मार्क्स, हीगल, जरमी बेंथम और जान स्टुअर्ट मिल जैसे राजनीतिक और दार्शनिक विचारकों की परम्परा के दार्शनिक और विचारक नहीं थे। परन्तु उनकी कहानियों और उपन्यासों में राजनीतिक व्यवस्था में व्याप्त शोषण के औजारों का बौद्धिक, तार्किक, वैज्ञानिक और सार्थक व्याख्या पाई जाती है और जनता के व्यापक हितों के पक्ष में जनक्रांति की वकालत करते हैं। लम्ही में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि- व्यक्ति की चेतना उसकी सामाजिक परिस्थितियों का निर्माण नहीं करती बल्कि सामाजिक परिस्थितियाॅ चेतना का निर्माण करती हैं। अपने दौर की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों का विश्लेषण करने वाला साहित्यकार युगांतरकारी और कालजयी हो जाती हैं। अपनी उत्कृष्टतम साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद भारतीय सीमाओं को पार कर वैश्विक विभूतियों में शामिल हो गये। वैश्विक स्तर पर मुंशी प्रेमचंद की तुलना महान रसियन उपन्यासकार मैक्सिम गोर्की के साथ की जाती हैं। मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित गोदान का वैश्विक साहित्य में वही स्थान है जो मैक्सिम गोर्की द्वारा रचित प्रसिद्ध उपन्यास माॅ { mother} का हैं। प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अध्यक्ष महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की स्मृतियों को नमन करता हूँ।

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