मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाने की एक और नाकाम कोशिश!

मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाने की एक और नाकाम कोशिश!

कई समाचार रिपोर्टों के अनुसार, भारत के आयकर विभाग के अधिकारियों ने 7 सितंबर 2022 की दोपहर इंडीपेंडेंट एंड पबलिक स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (आईपीएसएमएफ) के कार्यालय का एक “सर्वेक्षण” किया। यह एक लोकोपकारी संगठन है और इसका कार्यालय दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के बैंगलोर में है। फाउंडेशन देश में स्वतंत्र डिजिटल समाचार आउटलेट को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाने की एक और नाकाम कोशिश!

इस तरह के सर्वेक्षण में अनियमितताओं की तलाश करने के नाम पर किसी भी समूह की बैलेंस शीट की जांच की जाती है। वैसे तो यह बैंलेंस शीट आयकर रिटर्न के साथ मांगी और ली जा सकती है। नहीं मिले तो मांगी जा सकती है लेकिन सर्वेक्षण के नाम पर छापे जैसी कार्रवाई मुख्य रूप से डराने औऱ बदनाम करने का काम करती है – गड़बड़ी मिले या नहीं। मीडिया रपटों में कहा गया है कि अधिकारियों ने कार्रवाई के लिए किसी कारण का खुलासा नहीं किया। टैक्स अफसरों ने उसी दिन थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च और एक चैरिटी संगठन ऑक्सफैम इंडिया के कार्यालयों का भी सर्वेक्षण किया।

मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाने की एक और नाकाम कोशिश!

भारतीय डिजिटल मीडिया संगठनों के एक व्यापार संगठन, डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन ने एक बयान में कहा कि कर सर्वेक्षण विदेशी वित्तीय योगदान से संबंधित नियमों के कथित उल्लंघन की जांच का हिस्सा था। संगठन ने आईपीएसएमएफ पर इस छापे की निंदा की और इसे “स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमला” करार दिया। कहने की जरूरत नहीं है कि यह खबर भारत में भले न छपे दुनिया भर में छपेगी और भारत की बदनामी होगी। बेशक यह सत्तारूढ़ दल और उसकी सरकार की बदनामी है। लेकिन आए दिन दूसरों पर देश विरोध का आरोप लगाने वाले लोग ऐसा काम कर रहे हैं जिससे भारत की दुनिया भर में बदनामी हो रही है।

मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाने की एक और नाकाम कोशिश!

कहने की जरूरत नहीं है कि मीडिया संस्थान को आर्थिक सहायता देने वाला संगठन अगर निश्चित रूप से गड़बड़ करे और पक्की सूचना भी हो तो मीडिया की आजादी और बदनामी का ख्याल रखते हुए छापे जैसी कार्रवाई के बिना भी कार्रवाई की जा सकती है पर यहां छापे जैसी कार्रवाई से सबूत ढूंढ़े जाते हैं और वह भी विदेशी सहायता लेने के कथित नियमों का उल्लंघन करने जैसे मामले में। आप जानते हैं कि मीडिया को स्वतंत्रता पूर्वक काम करने के लिए धन चाहिए। इस सरकार ने खिलाफ काम करने वालों को विज्ञापन देना लगभग बंद कर रखा है।

दूसरी तरफ सेवा में बिछ गए अखबारों की कमर विज्ञापनों से झुक गई है। पर चिन्ता ना सरकार को है ना मीडिया को और न पाठकों को। ऐसी हालत में स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाली सस्थाओं को आर्थिक सहायता देने वाली लोकोपकारी संस्था का सर्वेक्षण और कर नियमों के उल्लंघन के मामले तलाशना अपने आप में शर्मनाक और अनैतिक है। बात इतनी ही नहीं है, पिछले दिनों अल्ट न्यूज के संस्थापकों में एक को गिरफ्तार किया गया तो मीडिया में गलत खबर छपी कि विदेशी सहायता में गड़बड़ी की जांच चल रही है जबकि ऐसा कोई मामला नहीं था। बाद में संस्थापक को जमानत भी मिल गई।

INDEPENDENT AND PUBLIC-SPIRITED MEDIA FOUNDATION की वेबसाइट पर मोजूद जानकारी के अनुसार यह अभी 27 संस्थानों को अनुदान दे रहा है।

  1. Main Bhi Bharat
  2. YouTurn
  3. Main Media
  4. MediaNama
  5. Democratic Charkha
  6. TheProbe
  7. TrueCopy
  8. Article14
  9. HW News
  10. TheCitizen
  11. Mojo Story
  12. The Supreme Court Observer
  13. The India Forum
  14. Imphal Free Press
  15. Kashmir Observer
  16. Feminism In India
  17. Janwar
  18. Live History India
  19. India Development Review
  20. Suno India
  21. Sikkim Chronicle
  22. Saptahik Sadhana
  23. Max Maharashtra
  24. The Caravan
  25. ThePrint
  26. Swarajya
  27. The Economic and Political Weekly

आईपीएसएमएफ ने निजी स्वामित्व वाले ऑनलाइन समाचार संस्थानों को ग्रांट मुहैया कराए हैं। इनमें अल्ट न्यूज के अलावा आर्टिकल14, द कारवां, स्वराज्य और द वायर प्रमुख हैं। 2018 के बाद से, कर अधिकारियों ने न्यूज़लॉन्ड्री, द क्विंट और न्यूज़क्लिक सहित न्यूज़ आउटलेट्स पर भी छापा मारा है। सीपीजे ने यह सब पहले भी दर्ज किया है। इस बार, सरकारी टिप्पणी प्राप्त करने के लिए कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्टस (सीपीजे) ने भारतीय आयकर विभाग को मेल किया पर तुरंत कोई जवाब नहीं आया। आप समझ सकते हैं कि सरकारी विज्ञापन न मिले, विदेश से चंदा या दान लेने की मुश्किल शर्तें हों और इस कारण दान वैसे न मिले और इसके बावजूद जांच के नाम पर छापेमारी करके आर्थिक सहायता करने वालों को डराया जाए तो मीडिया कितना सवतंत्र रह सकती है। पर सरकार में किसी से बात करके देखिए अव्वल को सिर्फ मन की बात होती है या फिर  ठीक करार दिया जाएगा। प्रधानमंत्री ने तमाम पत्रकारों को छोड़कर फिल्म ऐक्टर और गीत लेखक को इंटरव्यू दिए हैं जो आम काटकर खाते हैं या चूसकर, बटुआ रखते हैं कि नहीं और आप थकते कैसे नहीं हैं जैसे जवाल पूछने के लिए जाने जाते हैं। अगर इतना ही होता तो एक बात थी। यही व्यवस्था हर किसी को पाकिस्तान चले जाने, देश विरोधी और देश को बदनाम करने जैसे आरोप लगाने का कोई मौका नहीं चूकती जबकि सीपीजे जैसी संस्था के मेल का जवाब जायज समय में नहीं दिया जाता है जबकि छापे नहीं सर्वेक्षण से पहले ऐसी जानकारी सार्वजनिक हो सकती है।

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द हरिश्चंद्र स्टाफ
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