सिर में बस्ता हाथ में जूते, इस तरह दलदल पार कर स्कूल जाते हैं नौनिहाल

पन्ना। देश में जब आजादी का अमृत महोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है, उस समय देश में ही ऐसे इलाके भी हैं जहाँ के लोगों को अभी तक न तो आजादी का मतलब पता है और न ही अमृत महोत्सव से उनका कोई वास्ता है। उनकी जिंदगी तो दो जून की रोटी की जुगाढ़ में ही खप रही है। बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं से वंचित इन लोगों को चिकनी चमचमाती सड़कें तो दूर की बात पैदल चलने लायक सुगम रास्ता तक नसीब नहीं है। बारिश के मौसम में इनकी मुसीबतें और बढ़ जाती हैं क्योंकि तब उन्हें कीचड भरे रास्ते से होकर जाना पड़ता है।

हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के उस जिले की जहाँ की धरती में बेशकीमती हीरे निकलते हैं। प्रचुर मात्रा में वन व खनिज संपदा के बावजूद इस जिले की एक बड़ी आबादी दयनीय और लाचारी वाली जिंदगी जीने को मजबूर है। आजादी के 75 सालों बाद अमृतकाल में भी पन्ना जिले के सैकड़ा भर से अधिक गांव सड़क विहीन हैं। बारिश के दिनों में यहां के मार्ग दलदल में तब्दील हो जाते हैं, जिससे ग्रामीणों का आवागमन कठिन हो जाता है।  प्रमुख मार्गों से इन ग्रामों का संपर्क पूरी तरह से टूट जाता है। कुछ ग्रामों में स्कूल नहीं होने से बच्चे कई किलोमीटर दलदल पार कर स्कूल जाने को मजबूर होते हैं। ऐसा ही मामला पन्ना विधानसभा के अजयगढ़ विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत बरियारपुर के मजरा मंझपुरवा का है। लगभग 400 की आबादी और 100 घरों वाले इस गांव के बच्चे बरसात के 4 माह तक सिर में बस्ता हाथों में जूते लेकर 2 किलोमीटर कीचड़ पार करते हुए जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं।

ग्रामवासियों के मुताबिक विगत 2 वर्ष पूर्व एक बच्ची की इसी दलदली रास्ते में फिसल कर गिरने की वजह से नाक और मुंह में कीचड़ चले जाने से मौत हो गई थी। उस समय जब यह हादसा घटित हुआ था तब कुछ दिनों तक यह मामला सुर्खियों में बना रहा। लेकिन जैसा हर हादसे और घटना के बाद होता है वही इस गांव के साथ भी हुआ। जल्दी ही मामले को जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी व जनप्रतिनिधि भूल गये फलस्वरूप गांव की हालत जस की तस है। जिले का यह अकेला गांव नहीं है ऐसे ग्रामों की लम्बी फेहरिस्त है जहाँ के रहवासी इक्कीसवीं सदी में आदिम जिंदगी जी रहे हैं। गांव के नौनिहाल जिन्हे देश का भविष्य कहा जाता है वे कीचड़भरे रास्ते से सिर में किताब और कापियों का बस्ता व हाँथ में जूते लटकाये निकलते हैं। ग्रामीण भारत के इन स्कूली बच्चों की तकलीफों और समस्याओं की सुध लेने की किसी को फुर्सत नहीं है।

इनका क्या कहना है-

यह बहुत बड़ी समस्या है छोटे-छोटे बच्चों को घुटनों तक कीचड़ में चलकर स्कूल जाना पड़ रहा है। दो वर्ष पूर्व एक बच्ची की मौत हो चुकी है मैं जनप्रतिनिधि होने के नाते शासन प्रशासन का इस ओर ध्यान आकर्षित करवा कर शीघ्र सड़क निर्माण की मांग करूंगी। – रचना वृंदावन पटेल जिला पंचायत सदस्य

Disclaimer : उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। ये जरूरी नहीं कि द हरिशचंद्र इससे सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।

We are a non-profit organization, please Support us to keep our journalism pressure free. With your financial support, we can work more effectively and independently.
₹20
₹200
₹2400
अरुण सिंह
स्वतंत्र पत्रकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।