अपनों की अवहेलना और कांग्रेसी नेताओं पर फिदा : भाजपा

पांच अगस्त के बहाने चंद गंभीर सवालात ! एक तरफ़ ग़मगीन कश्मीरी अवाम और दूसरी ओर जश्न मनाती सरकार है।

अगर खेलों की तरह नेताओं को भी खरीदने बेचने या खरीदना बेचना नेताओं के लिए अशोभनीय हो जाएगा, तो लेने या देने की सुविधा होती तो भाजपा सरदार पटेल, सुभाषचन्द्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री को अपनी टीम में ले लेती। और इनके बदले वाजपेयी, दीन दयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी को रिलीव कर देती ( छोड़ देती)। या हो सकता है एक के बदले दो देने पर विचार करती। और कई और को भी अपने खेमे से निकाल देती।

आश्चर्यजनक बात है कि आज देश के पहले प्रधानमंत्री की नियुक्ति को 75 साल हो गए। मगर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री अभी भी यही कह रहे हैं कि अगर नेहरू के बदले पटेल बने होते तो यह होता और वह होता। वे अपने उस समय के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सावरकर या किसी और का नाम नहीं लेते। कांग्रेस के उन सरदार पटेल के नाम लेते हैं जो नेहरू को अपना नेता और अपना भाई कहते थे। और जिन्होंने गांधी की ह्त्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। और कहा था कि उनके द्वारा निर्मित माहौल की वजह से गांधी की हत्या हुई।

अपनों की अवहेलना और कांग्रेसी नेताओं पर फिदा : भाजपा

भाजपा का यह पटेल, सुभाष, शास्त्री के प्रति प्रेम बुरी बात नहीं है। अच्छा है। मगर बस वे यह नहीं समझ पाते कि ये तीनों नेता और इन जैसे और कई नेता कांग्रेस में ही क्यों पैदा हुए और उनके यहां क्यों नहीं? नेता माहौल से बनते हैं। विचारों से उन्हें मजबूती मिलती है। कांग्रेस की आजादी के आंदोलन के दौरान जो नेतृत्वकारी भूमिका रही उसने ही वहां हजारों नेता पैदा किए। वह विचार जो गांधी की त्याग की भावना, सत्य, अहिंसा और सांप्रदायिक सदभाव से बना था उसने ही पटेल, सुभाषचन्द्र बोस और शास्त्री को बनाया।

सेल्फ कन्ट्राडिक्शन (अन्तरविरोधों) से भरी कोई भी पार्टी बड़े नेता पैदा नहीं कर सकती। और अगर वहां सफल नेता हो भी जाते हैं तो नया नेतृत्व उन्हें किनारे कर देता है। उनके लिए अस्विकृति का भाव पैदा कर देता है। भाजपा के पहले प्रधानमंत्री वाजपेयी से लेकर आडवानी, मुरली मनोहर जोशी को इन आठ सालों में भूला दिया गया। और पटेल की उंची प्रतिमा गुजरात में, सुभाष चन्द्र बोस की इंडिया गेट दिल्ली पर लगा दी गई। इन आठ सालों में भाजपा का कोई नेता नहीं निकला। जो थे वे भी नेपथ्य में धकेल दिए गए। बड़े नेताओं में जो वाजपेयी और आडवानी की छत्रछाया में बढ़े थे सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह गडकरी मंत्री तो रहे, हैं मगर धमक उतनी भी नहीं है जितनी विपक्ष में होती थी।

अपनों की अवहेलना और कांग्रेसी नेताओं पर फिदा : भाजपा

अपनों की अवहेलना और कांग्रेसी नेताओं पर फिदा : भाजपा

नए नेताओं में जिनके सामने अभी पूरा कैरियर पड़ा था रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, विजय गोयल, डा हर्षवर्द्धन और कई नेताओं को क्यों किनारे डाल दिया यह कोई नहीं पूछ सकता। और न ही किसी को मालूम है। हर्षवर्धन स्वास्थय मंत्री थे उनका नाम सब जानते थे। आज सामान्य लोगों को तो छोड़िए पत्रकारों, ब्यूरोक्रेट या भाजपा के कार्यकर्ताओं, डाक्टरों से भी पूछ लो कि स्वास्थ्य मंत्री कौन है तो नहीं बता पाएगा। यहां इस लेख में भी हम नाम नहीं लिखकर इसे ऐसा ही छोड़ रहे हैं कि देखें कितने पाठकों को केन्द्रीय स्वास्थय मंत्री का नाम याद आ पाता है!

गुजरात में इतना बड़ा पुल टूटने का कांड हो गया। वहां के मुख्यमंत्री का नाम कितने लोग जानते हैं? दरअसल नाम मीडिया के जरिए ताजा रहते हैं। लेकिन अब सिवाय प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा कोई और नाम मीडिया में आ ही नहीं सकता।

कोई सर्वे कर ले। पिछले आठ सालों में राष्ट्रपति का नाम कितनी बार अखबारों में छपा होगा या टीवी में दिखा होगा। और उससे पहले के आठ सालों में कितना आया होगा? आज की तारीख में तो कोई नहीं कर सकता। मगर बाद में तो होगा। तो आंकड़े बहुत गजब का फर्क बताएंगे। एक और दस का। या बीस का भी हो सकता है! इसी तरह मंत्रियों का। पहले के आठ साल या पांच साल कोई भी पैमाना बना लीजिए और देखिए कि केन्द्रीय मंत्रियों के नाम कितने अखबारों में छपते थे और समीक्ष्य वर्ष आठ साल में कितनों के फोटो छपे, कितनों को अपने मंत्रालयों की खबर बताने का मौका मिला, कितनों को प्रेस कान्फ्रेंस का?

अब ऐसी हालत में नेता कैसे पैदा होंगे? जो थे उन्हें ही अपना अस्तित्व बचाए रखना मुश्किल हो गया है। उमा भारती कैसी नेता हैं! यह अलग विषय है। मगर भाजपा के विचारों के अनुरूप तो वे हमेशा से उपयोगी नेता रहीं। मध्य प्रदेश में 2003 के तख्ता पलट का पूरा श्रेय अकेले उनको जाता है। और आज उनकी मानसिक हालत क्या है यह चिंता की बात है। केन्द्र में उन्हें कोई नहीं पूछ रहा और इस वजह से मध्य प्रदेश में उनको बुरी तरह इगनोर कर दिया गया है। वे शराब की दुकानों पर पत्थर और गोबर फैंकने लगी हैं। अभी दीवाली के बाद ओरछा में उन्होंने एक शराब की दुकान देखकर फिर धमकी दी की कुछ बड़ा करेंगी। ऐसा कि देश देखे। उस भाजपा सरकार को उनकी किसी धमकी की चिन्ता नहीं है जिसे वही सत्ता में ऐसी लाईं कि 19 साल से वह सत्ता में बनी हुई है ( बीच में एक साल कांग्रेस की रही)।

अपनों की अवहेलना और कांग्रेसी नेताओं पर फिदा : भाजपा

कांग्रेस में दस साल की सरकार में कई नेता बने, बढ़े। अच्छे, धोखेबाज यह अलग बात है। मगर मनीष तिवारी, आनंद शर्मा, अश्विनी कुमार, जितिन प्रसाद ने मंत्री बनकर नाम बनाया। ज्योतिरादित्य सिंधिया. आरपीएन सिंह का अपना पहले से नाम था उसे उन्होंने और चमकाया। वहां आगे बढ़ने पर कोई रोक नहीं थी। खुला माहौल था अपने मंत्रालय में काम करने से लेकर मीडिया में अपना प्रचार करने तक कोई रोक नहीं थी।

अभी भारत जोड़ो यात्रा में कई नेता निकलेंगे। यह मौके होते ही इसी लिए है कि नया नेतृत्व विकसित हो। जनता से लोग पार्टी के सिम्फेथाइजर ( हमदर्द) बनें। सिम्फेथाइजर से कार्यकर्ता। और कार्यकर्ता से नेता बनें।

आजादी के आंदोलन में गांधी जी ने सबसे ज्यादा नेता बनाए। नेहरू, सरदार पटेल को अपने हाथों से गढ़ा। उसके बाद नेहरू ने और फिर सबसे ज्यादा कांग्रेस में इन्दिरा गांधी ने नेतृत्व को विकसित करने का काम किया। अगर राहुल के पास टीम अच्छी रही तो राहुल का जो मिज़ाज है नए लोगों को आगे बढ़ाने का तो वे जरूर कांग्रेस में एक नई टीम नेतृत्व की खड़ी कर देंगे। मगर उसके लिए राहुल के पास एक ऐसी निरपेक्ष और साहसी टीम होना जरूरी है जो प्रतिभाओं को पहचानकर उन्हें विकसित करने का काम करे। साहसी इस लिए कि राहुल से कह सके यह आदमी ऐसा है और यह ऐसा। कोई राहुल का प्रिय भी हो जाए तो बताना पड़े तो बताया जाए कि यह ठीक नहीं है।

भाजपा में सबसे ज्यादा एक ही नेता ने नेतृत्व विकसित किया। लालकृष्ण आडवानी ने। वाजपेयी अलग तरह के नेता थे। उन्हें देखकर, उनके भाषण सुनकर कोई अपने आप नेता बन जाए तो बात अलग है। वे उंगली पकड़कर किसी को नहीं चलाते थे। मगर आडवानी कार्यकर्ता से नेता बनाते थे।

नेतृत्व हर जगह ऐसे ही विकसित होता है। प्रतिभा को संवारना, सहेजना पड़ता है। यह लेखन से लेकर, कला, खेल सब जगह होता है। नामवर सिंह ने जाने कितने लेखक, कवि, आलोचक बनाए। एक प्रेरणादायी माहौल देकर। फिल्मों में राजकपूर ने। क्रिकेट में टाइगर पटौदी, बेदी, कपिल देव, सौरव गांगुली, धोनी, कोहली ने।

नेतृत्व विकसित करना पड़ता है। दूसरों के नेताओं को अपना बनाने से कुछ नहीं होता। भाजपा को सोचना आज यह चाहिए कि सावरकर उनके सबसे बड़े आइडोलाग ( वैचारिक पुरुष) थे। मगर वे निर्वसन में क्यों मरे। कोई उन्हें पूछने वाला क्यों नहीं रहा?

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Shakeel Akhtar Profile Photo
स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।