एक्सक्लूसिव- आपदा के दौरान राशन वितरण से अधिक विज्ञापनों में खर्च कर गये आईएएस विनीत कुमार

उत्तराखंड। एक आरटीआई के जवाब में बागेश्वर जिला अधिकारी कार्यालय ने स्पष्ट रूप से बताया कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में जिला अधिकारी पद पर तैनात आईएएस विनीत कुमार ने मानसून अवधि 2019-20 के दौरान तहसील बागेश्वर, गरुड़ एवं काण्डा अन्तर्गत प्रभावित परिवारों को वितरित खाद्यान्न सामग्री के पैकेट पर हुए व्यय धनराशि के देयक का प्रस्तावित भुगतान 11820.00 रु के सापेक्ष 11320.00 रु किया गया।

एक्सक्लूसिव- आपदा के दौरान राशन वितरण से अधिक विज्ञापनों में खर्च कर गये आईएएस विनीत कुमार

जबकि प्राप्त सूचना में यह भी स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 2019-20 में मानसून अवधि के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रभावित परिवारों को तत्काल खाद्यान्न एवं राहत सामग्री वितरित करने को स्थानीय स्तर से खाद्यान्न एवं राहत सामग्री क्रय करने हेतु दैनिक समाचार पत्र, दैनिक जागरण में एक 3583.00 रु व दूसरा 2986.00 रु तथा राष्ट्रीय सहारा में एक 3493.00 रु व दूसरा 3493.00 रु के कुल 13555.00 रुपए के दो-दो विज्ञापन प्रकाशित किये गये हैं। 

नेताओं पर तो भ्रष्टाचार के आरोप लगाना बेहद आसान व आम बात है परन्तु इन अधिकारियों के इस काम के रवैये को क्या कहा जाए। आम जन मानस इन अधिकारियों के सामने आने से ही बचता है। 

आईएएस विनीत कुमार वो अधिकारी हैं जो हाल ही में स्थानांतरित होकर शासन में भेजे गये हैं। जिन्होंने बागेश्वर जनपद में 17वें ज़िलाधिकारी के तौर पर अपनी सेवाएँ दीं, जो बागेश्वर में अपनी  कार्यप्रणाली के चलते चर्चाओं का विषय बने रहे।

उक्त आधार पर आप अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस तरह से माननीय द्वारा जनता के टैक्स का पैसा बिना सोचे उड़ाया गया। जिस पर बागेश्वर के प्रभारी मंत्री, विधायक व जनप्रतिनिधि आंखे बंद किये सब देखते रहे। आंखिर जनता के पैसों को कब तक ऐसे ही उड़ाया जाता रहेगा, यह अपने आप में बड़ा गम्भीर विषय है। इस पर जनता को स्वयं ही जागरूक होकर आवाज़ उठानी होगी।  

आपकी जानकारी के लिए बताते चलें, वरिष्ठ शिक्षाविद माधव मेनन की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चौबीस अप्रैल 2014 में सरकार और उसके अधिकारियों द्वारा समाचारपत्रों और टेलीविजन पर विज्ञापन देने में जनता के धन का दुरुपयोग रोकने के इरादे से एक समिति का गठन किया था। जिसे माधव मेनन समिति कहा गया। 

माधव मेनन समिति सुझाव देते हुए कहती है, यह अत्यंत विचारणीय है कि क्यों न सरकारी विज्ञापनों में दी जाने वाली सूचनाएं और संदेश आम खबर के रूप में जनता तक पहुंचाए जाएं? इससे मीडिया जगत को समाज के प्रति उनकी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने का अवसर भी प्राप्त होगा और सरकारी विज्ञापनों पर होने वाला अनावश्यक सरकारी खर्च भी बचेगा। प्रत्येक सरकार का जन संपर्क विभाग अपनी मासिक पत्रिका छापता है। यह समझ से परे है कि उस पत्रिका के माध्यम से सरकारी सूचनाएं जनता तक क्यों नहीं पहुंचाई जातीं?

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