अपरिहार्य रूप से मध्यमवर्ग आय पिरामिड के शीर्ष पर रहने वाले लोगों और निचले पायदान पर मुफ्त चाहने वालों के बीच फंसा हुआ पाता है जब तक वह बोलेंगे नहीं उनकी स्थिति ऐसी ही बनी रहने वाली है हर कुछ महीनों में भारत का मध्यम वर्ग किसी ऐसे नीतिगत फैसले को लेकर खुद को तेज विमर्श में फंसा पाता है जिससे उनके उचित और समृद्धि की भावना आहत होती है समकालीन राजनीतिक में यह कहानी काफी हद तक दोतरफा है! नीतिगत निर्णय को संबद्धता के नजरिए से इस तरह तौला जाता है जैसे प्रत्येक निर्णय अच्छा है या फिर सारे निर्णय बेकार है और ऐसे में अक्सर तर्क और मध्यमवर्ग की आवाज को खामोश कर दिया जाता है!
पिछले दिनों विदेश यात्रा के दौरान इंटरनेशनल डेबिट या क्रेडिट कार्ड से लेन-देन पर लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस)की ढाई लाख रुपए की सीमा के तहत उच्च कर थोकने के लिए आक्रोश था पहले इस पर 5% कर लगाने का प्रावधान था लेकिन जुलाई, 2023 से प्रभावी नई योजना के तहत 20 % कर लगाया जाएगा। सरकार ने विदेशी मुद्रा लेनदेन के लिए ₹700000 की सीमा को भी समाप्त कर दिया है इस कर को स्रोत पर एकत्रित कर (टीसीएस) के रूप में वर्गीकृत किया जाता था, इसके लिए अनिवार्य रूप से करदाता को जिम्मेदार माना जाता है, जब तक कि कुछ और सिद्ध न हो।
यह सच है कि वार्षिक कर देनदारी के वार्षिक वर्ष के अंत में क्षतिपूर्ति के नियम हटा दिए गए हैं!। यह भी उतना ही सच है कि इसका अनुपालन कठिन होगा, जिसमें कई चरण और दस्तावेज शामिल होंगे एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिक की मुश्किल की कल्पना कीजिए जिसे रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है और यदि वह पोते-पोतियो से मिलने के लिए विदेश यात्रा करें या उस असहाय नागरिक के बारे में विचार करें जो रिटर्न भरने तथा रिफंड का दावा करने के लिए बैंक, कार्ड कंपनी और आईटी विभाग के चक्कर लगा रहा होता है।
सच यह है कि लोग अपनी वह बचत खर्च करते हैं जिस पर भी कर चुका होते हैं।इसलिए प्रभावी रूप से नया नियम मेहनत से अर्जित की गई बचत पर 20% का उपभोग कर लगाएगा। चार्टर्ड अकाउंटेंट और स्टार्टअप निवेशक *मोहनदास पई ने कहा* लोगों को केवल रिफंड का दावा करने के लिए भुगतान क्यों करना चाहिए? व्यापार सुगमता और ईमानदार करदाता के हित में 20 फ़ीसदी टीसीएस को वापस लेना चाहिए यदि जरूरी हो तो 2% कर लगाना चाहिए। हम बेईमान नहीं हैं।
इसमें बदलाव को लेकर जो आक्रोश था, उस पर सरकार ने एक स्पष्टीकरण जारी किया 1 जुलाई 2023, से एल आर एस के तहत छोटे लेन-देन के लिए टीसीएस के औचित्य को लेकर चिंता जताई गई है।किसी भी अस्पष्टता से बचने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि किसी व्यक्ति द्वारा अपने अंतरराष्ट्रीय डेविड या क्रेडिट कार्ड का उपयोग करके प्रति वर्ष ₹700000 रूपये तक के भुगतान को एल आर एस सीमा से बाहर रखा जाएगा और इसके लिए कोई टीसीएस नहीं लगेगा।
जीवन सुगमता और व्यवसाय सुगमता के घोषित उद्देश्य और निश्चित परिणाम के लिए अपनाए जाने वाले तरीके के बीच का विरोधाभास हैरान करने वाला है। मौजूदा शासन स्वरोजगार को बढ़ावा दे रहा है और यह घोषणा करने में गर्व महसूस करता है कि भारत रोजगार सृजको॔ की अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है,फिर भी यह उन पेशेवरों पर 18% जीएसटी लगाने पर कायम है जिनके पास खर्चों पर भुगतान किए गए जीएसटी की भरपाई करने का अवसर नहीं है। वास्तव में भुगतान किए गए सभी करो॔ काय के योग जीएसटी को आयकर के साथ जोड़ देने से आय पर करके सही स्तर का पता चलता है। नीत के मनसा को लेकर स्पष्टता और सूचना की कमी के कारण मध्यमवर्ग की परेशानियां अक्सर बदतर हो जाती हैं जरा तथ्यों पर विचार कीजिए भारत 37 खरब डॉलर से अधिक की जीडीपी के साथ सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है ।ऐसा नहीं हो सकता कि मजबूत राजस्व संग्रह को देखते हुए इसका उद्देश्य अपने खजाने के लिए ब्याज मुक्त नकदी प्रवाह एकत्र करना होगा,यह विदेशी मुद्रा की कमी के कारण भी नहीं हो सकता है। कुछ दिनों पहले रिजर्व बैंक ने बताया कि विदेशी मुद्रा भंडार में 599.53 अरब डॉलर है और चालू खाता बचत में भी सुधार हुआ है।
विगत मई माह में जब रिजर्व बैंक ने 2000 के नोट की चरणबद्ध तरीके से वापसी की घोषणा की तो सोशल मीडिया और व्हाट्सएप समूह में भी लोगों ने इसका जश्न मनाया।यह कोई रहस्य नहीं है कि आपात स्थिति के लिए हर परिवार घर पर एक-दो लाख नगदी रखता है घरों में महिलाओं भी विवाह या बच्चों के लिए बचत करती हैं इस मामले में सबसे बुरी बात है कि कुछ बैंकों ने घोषणा पत्र और पहचान सत्यापन के लिए प्रपत्र मुद्रित किये।शुक्र है कि बेहतर समझ बनी और उम्मीद है कि नोटबंदी के दौरान देखे गये दिनो॔ की पुनरावृति नहीं होगी।लोकप्रिय धारणाएं बताती हैं कि इससे चुनाव पूर्व नगदी की जमाखोरी करने वाले राजनेता फंस जाएंगे। जबकि इतिहास बताता है कि नोटबंदी के बाद 15.41 लाख करोड़ रुपए में से 99.3% से अधिक सफलतापूर्वक परिवर्तित कर दिया गया था। दरअसल भ्रष्टाचार राजनीतिक फंडिंग की अपारदर्शी व्यवस्था में शरण लिए हुए है।
मध्यमवर्ग राहत की सांस ले सकता है,लेकिन यह अल्पकालिक होगा रिपोर्टों से पता चलता है कि सरकार अपने कर आधार को बढ़ाने के लिए विदेश यात्रा करने वाले, ज्यादा बिजली बिल भरने वाले,फर्टिलिटी क्लीनिक की सेवा लेने वाले जैसे बड़े खर्च करने वालों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्रों में मतदाताओं की ताकत का पता चलता है जिनसे सबसे निचले आय वर्ग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है और यह मध्यमवर्ग ही है जो कम से कम सरकार के खर्च का कुछ हिस्सा चुका रहा है। उदाहरण के लिए कांग्रेश द्वारा जारी 2 करोड़ गारंटी कार्डों की पूर्ति के लिए कर्नाटक पर 50,000 करोड़ रुपए से अधिक लागत आने का अनुमान है।ऐसी ही योजनाओं की घोषणा अन्य राज्यों द्वारा की जा रही है स्वास्थ्य एवं शिक्षा के बदले मुफ्त दिए जा रही है मध्यमवर्ग को यह सवाल पूछना चाहिए कि किसकी कीमत पर किसको फायदा हो रहा है।
जॉर्ज बर्नार्ड शाॅ ने अपने नाटक पैरग्मेलियन में मध्यम वर्ग के भाग्य का स्पष्ट वर्णन किया था ‘मुझे दूसरों के लिए’ जीना है, अपने लिए नहीं: यह मध्यम वर्ग की नैतिकता है।
लेखक : रामाश्रय यादव जिला अध्यक्ष राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद, जनपद मऊ।