राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार- डाटा प्रोटक्शन बिल के खिलाफ उठी आवाज।

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नागदा। भारत सरकार के प्रस्तावित डेटा प्रोटेक्शन बिल 2022-23 के वर्तमान मसौदे में सूचना के अधिकार कानून को दुष्प्रभावी ढंग से संशोधित किए जाने के मुद्दे को लेकर देश के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों एवं वरिष्ठ सामाजिक संगठनों ने एक बार पुनः मोर्चा खोल दिया है।

रविवार सुबह 11:00 से दोपहर 1:00 के बीच में आयोजित  राष्ट्रीय स्तर के वेबीनार में भारत सरकार के प्रस्तावित डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2022-23 के वर्तमान मसौदे में आरटीआई कानून को संशोधित किए जाने के डेटा बिल के धारा 29(2) और 30(2) पर आपत्ति जाहिर करते हुए देश के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन के सह संस्थापक निखिल डे, गुजरात महिती गुजरात पहल की संस्थापक पंक्ति जोग, वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह एवं पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने प्रस्तावित डेटा बिल से संशोधनों को वापस लिए जाने की मांग की है जिसके पारित होने के बाद आरटीआई कानून लगभग समाप्त हो जाएगा।

कार्यक्रम का आयोजन आरटीआई रिवॉल्यूशनरी ग्रुप से सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के संचालन में किया गया जिसमें सहयोगियों के तौर पर अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, आर टी आई कार्यकर्ता देवेंद्र अग्रवाल, पत्रिका समूह के वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह सहित आरटीआई ग्रुप के आईटी सेल के प्रभारी पवन दुबे सम्मिलित रहे।

संसद में बिल पारित कर आरटीआई कानून को बनाया जाए मौलिक अधिकार – निखिल डे

प्रस्तावित डेटा बिल के माध्यम से दुष्प्रभावी ढंग से आरटीआई कानून में किए जाने वाले गलत संशोधनों को लेकर इस विषय पर पहली बार राष्ट्रीय आर टी आई वेबीनार में सम्मिलित हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन और एनसीपीआरआई के सह-संस्थापक निखिल डे ने कहा की आरटीआई कानून लाने के लिए राजस्थान से एमकेएसएस और उससे जुड़े हुए मजदूरों और किसानों के कई संगठन ने आंदोलन किया था और तब हमें आरटीआई कानून के विषय में ज्यादा जानकारी भी नहीं थी। लेकिन कानून को पारित करवाने के लिए आम नागरिकों और मजदूरों के प्रयास महत्वपूर्ण रहे हैं। मस्टर रोल की जानकारी से लेकर खाद्यान्न और राशन कार्ड से संबंधित छोटी-छोटी जानकारियों को लेकर यह आंदोलन प्रारंभ हुआ और हमें आरटीआई कानून मिला। लेकिन सरकार ने वर्ष 2005 में कानून लाने के बाद ही विभिन्न स्तरों पर दुष्प्रभावी संशोधन करने के प्रयास किए जिससे कुछ हद तक आरटीआई कानून कमजोर भी हुआ है। लेकिन प्रस्तावित डेटा प्रोटक्शन बिल के मसौदे के माध्यम से किए जाने वाले आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) में संशोधन और साथ में ओवरराइडिंग इफेक्ट खत्म किए जाने से आरटीआई कानून लगभग खत्म हो जाएगा और वह सब जानकारियां नागरिकों को नहीं मिलेंगी जो अब तक पब्लिक पोर्टल पर उपलब्ध होती है। उन्होंने बताया कि सामाजिक कार्यकर्ता और मजदूर किसान शक्ति संगठन की वरिष्ठ कार्यकर्ता अरुणा राय ने मनरेगा कार्यकर्ताओं के अधिकारों के लड़ने की बजाय पहले आरटीआई कानून में हो रहे संशोधनो के विरोध में गांव गांव जाकर मुहिम छेड़ दी है। श्रीमती अरुणा राय का कहना है कि यदि आरटीआई कानून ही नहीं रहेगा तो मनरेगा की कोई जानकारी हमें मिल ही नहीं पाएगी इसलिए सबसे पहले आरटीआई कानून को बचाओ इसके बाद मनरेगा की बात करो।

आरटीआई कानून के महत्व को एक बार पुनः रेखांकित करते हुए निखिल डे ने बताया कि आज आरटीआई कानून को सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों में मूलभूत मौलिक अधिकार के तौर पर बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट का पुत्तास्वामी जजमेंट सहित कई ऐसे जजमेंट है जहां सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों में आरटीआई कानून को फंडामेंटल राइट्स बताया है।  जहां तक सुप्रीम कोर्ट का सवाल है तो ठीक है लेकिन अब समय आ गया है कि सूचना के अधिकार कानून को संसद में विधिवत अधिनियम बनाकर पारित करते हुए फंडामेंटल राइट्स बनाया जाए। श्री डे ने बताया की वह तीन सुझाव विशेष तौर पर रखते हैं जिसमें आरटीआई कानून को संसद में अधिनियम पारित करते हुए फंडामेंटल राइट बनाया जाना, विभिन्न सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित डेटा प्रोटेक्शन बिल से आरटीआई कानून में कौन-कौन सी जानकारी नहीं प्राप्त हो पाएगी उसकी सूची तैयार कर प्रतिदिन लोगों के बीच में जाकर उन्हें जागरूक किया जाना और तीसरी सबसे बड़ी बात अब ऑनलाइन और डिजिटल माध्यमों को साथ में रखते हुए गांव-गांव शहर-शहर और हर कस्बे में जाकर लोगों को जागरूक किया जाना और इसे आंदोलन का रूप दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक ने बताया कि एक बार पुनः आरटीआई कानून को बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है जिसे बचाना हमारे देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी है। अन्यथा वह समय दूर नहीं जब निजी और प्राइवेट जानकारी के नाम पर हमें छोटी से छोटी जानकारी भी नहीं मिलेगी। हमें अपने राशन पेंशन भ्रष्टाचार से संबंधित जांच और अधिकारियों पर होने वाली कार्यवाही, मनरेगा के मस्टरोल, किसी भी प्रोजेक्ट के लिए आने वाली राशि और उसके द्वारा कराए जाने वाले कार्य जैसे सैकड़ों ऐसी जानकारियां हैं जो यदि डेटा प्रोटक्शन बिल अपने प्रस्तावित मसौदे में पारित हो जाता है तो निजता और प्राइवेसी और निजी जानकारी के नाम पर लोक सूचना अधिकारियों के द्वारा मना कर दी जाएगी। इसलिए अब समय आ गया है कि हमें डेटा बिल से ऐसे समस्त प्रावधानों को हटाने की मांग करनी चाहिए जिससे आरटीआई कानून पर दुष्प्रभाव पड़ेगा और आरटीआई कानून कमजोर होकर मात्र कागजों तक ही सीमित रह जाएगा।

गुजरात में आंदोलन करना मुश्किल, सरकार आंदोलनकारियों के ऊपर दर्ज कर रही फर्जी मुकदमे – पंक्ति जोग

माहिती गुजरात पहल और आरटीआई हेल्पलाइन गुजरात की संयोजक आरटीआई एक्टिविस्ट पंक्ति जोग ने बताया कि गुजरात में उनके और उनकी टीम द्वारा डेटा प्रोटक्शन बिल के माध्यम से सूचना के अधिकार कानून में किए जा रहे दुष्प्रभावी बदलाव को लेकर जन जागरूकता फैलाई जा रही है। लेकिन जन जागरूकता के माध्यम, पत्रों के माध्यम से लेख किया जाना, सोशल मीडिया और ईमेल के माध्यम से संदेश भेजा जाना जैसी सीमित प्रक्रियाओं का ही उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गुजरात में सरकार दमनकारी नीतियां अपना रही है और सरकार की गलत नीतियों के विरोध में यदि आवाज उठाई जाती है तो उसे दबाने का प्रयास किया जाता है। पंक्ति जोग ने कहा की गुजरात में आज सभा करना और शांतिपूर्ण आंदोलन पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है जिसकी वजह से हम यदि समूह में इकट्ठा होकर यदि आंदोलन करते हैं अथवा ज्ञापन सौंपने जाते हैं उन स्थितियों में सरकार हमारे ऊपर फर्जी मुकदमे लाद रही है। पंक्ति जोग ने बताया कि आरटीआई कानून पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है और उसके लिए पूरे देश में सभी कार्यकर्ताओं को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है तभी हमें सफलता प्राप्त हो पाएगी।

आरटीआई कानून को बचाने जन जागरूकता आवश्यक – आत्मदीप

कार्यक्रम में एक बार पुनः अपने विचार रखते हुए पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि कार्यक्रम में जुड़े हुए सभी कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक जानकारी डेटा प्रोटक्शन बिल के दुष्प्रभावों को लेकर आरटीआई कानून पर किए जाने वाले दुष्प्रभावी संशोधन वाली बात जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। साथ में जिन आरटीआई कार्यकर्ताओं ने अब तक ज्ञापन सौंपे हैं अथवा जो भी अब तक प्रयास किए हैं वह बात वेबीनार में और अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से रखे जिससे सरकार के साथ आम नागरिको को भी जागरूक किया जा सके। आत्मदिप ने बताया कि हमारी जिम्मेदारी है कि हम अधिक से अधिक देश की जनता को डेटा प्रोटक्शन बिल द्वारा आरटीआई कानून के दुष्प्रभावी संशोधनों को लेकर किए जा रहे प्रयास जिसमें आरटीआई कानून पर बुरा प्रभाव पड़ेगा यह बात अधिक से अधिक आमजन के समक्ष पहुचाई जानी चाहिए जिससे आमजन को भी आंदोलन में सम्मिलित किया जा सके। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार को इस बात का पता नहीं चलता की जनता आरटीआई कानून में गलत संशोधनों के खिलाफ है तब तक सरकार के कान में जूं नहीं रेंगने वाली। इसलिए हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस दिशा में सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए।

आरटीआई कानून में संशोधन करने से कानून कमजोर पड़ेगा, डेटा बिल के नाम पर आरटीआई कानून कमजोर न किया जाए – राहुल सिंह

वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि आरटीआई कानून पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने वाला कानून है जिसकी वजह से आज हमें काफी महत्वपूर्ण जानकारियां आसानी से प्राप्त हो रही है। उन्होंने बताया कि कैसे अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के परिपेक्ष में डॉक्यूमेंट रूल को लेकर उन्होंने एक आदेश पारित किया है जिसमें मध्य प्रदेश सरकार को सरकारी दस्तावेजों के रखरखाव और उनके विनष्टीकरण को लेकर विधिवत अधिनियम बनाए जाने तक केंद्र सरकार के द्वारा जिस प्रकार कागजात के संरक्षण और उन को नष्ट करने पर दंड विधान है वह सभी पालन करने के निर्देश दिए गए हैं। राहुल सिंह ने बताया की हम सभी सूचना आयुक्त के तौर पर प्रयास कर रहे हैं जब तक आरटीआई कानून मजबूत है लेकिन जब आरटीआई कानून को कमजोर कर दिया जाएगा उन स्थितियों में सूचना आयुक्तों के पास भी शक्तियां नहीं रहेंगी कि वह आज जैसे कई महत्वपूर्ण निर्णय दे सकें। दुष्प्रभावी संशोधनों के बाद हम सबके हांथ बांध दिए जायेंगे। उन्होंने कहा की आज यदि डेटा प्रोटक्शन बिल की आवश्यकता है तो निश्चित तौर पर उससे कहीं अधिक आरटीआई कानून की आवश्यकता है इसलिए ऐसा कोई भी बिल न तो वर्तमान में और न ही भविष्य में पारित किया जाना चाहिए जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही पर बुरा प्रभाव पड़े।

कार्यक्रम में उत्तराखंड से आरटीआई रिसोर्स पर्सन और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार ठक्कर, छत्तीसगढ़ से आरटीआई कार्यकर्ता देवेंद्र अग्रवाल, जोधपुर राजस्थान से नरेंद्र सिंह राजपुरोहित सहित अन्य कार्यकर्ताओं ने भी अपने विचार रखे और बताया कि आरटीआई कानून को कमजोर किया जाना लोकतंत्र को कमजोर किया जाना है इसलिए सभी को मिलकर डेटा प्रोटक्शन बिल की ऐसी धाराओं को हटाए जाने की मांग करनी चाहिए जिससे सूचना के अधिकार कानून पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

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