पन्ना टाइगर रिजर्व में अब करंट लगने से होने लगी बाघों की मौत !

पन्ना टाइगर रिजर्व में अब करंट लगने से होने लगी बाघों की मौत !

पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में जिस तरह से बाघों की अकाल मौतें हो रही हैं, उससे वर्ष 2009 की आहट साफ सुनाई देने लगी है। बीती 3-4 जनवरी की रात पन्ना टाइगर रिजर्व के किशनगढ़ क्षेत्र अंतर्गत बीट बसुधा के कक्ष क्रमांक521 में एक नर बाघ एवं एक मादा हायना की करंट लगने से मौत हुई है। मृत नर बाघ की उम्र लगभग दो वर्ष बताई गई है। पन्ना जिले में एक माह के भीतर युवा नर बाघ की अकाल मौत का यह दूसरा मामला है। इससे पूर्व उत्तर वन मंडल अंतर्गत पन्ना रेंज के तिलगवां बीट में एक युवा नर बाघ का शव तेंदू के पेड़ से लटकते मिला था। शिकारियों के फंदे में फंसकर युवा बाघ की हुई दर्दनाक मौत से वन महकमे ने शायद कोई सबक नहीं लिया और फिर एक बाघ शिकारियों की भेंट चढ़ गया।  

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व कार्यालय से मिली अधिकृत जानकारी के अनुसार बाघ व हायना की मौत करंट लगने से हुई है। जारी प्रेस नोट के मुताबिक संभवतः करंट के तार जंगली सुअर को मारने हेतु लगाए गए थे, जिसकी चपेट में बाघ एवं हायना आ गए और उनकी मृत्यु हो गई। मृत बाघ एवं हायना के सभी अंग सुरक्षित पाए गए हैं। नियमानुसार वन अपराध प्रकरण दर्ज कर तार फैलाने वाले व्यक्तियों की सर्चिंग की जा रही है। सर्चिंग कार्य में पन्ना टाइगर रिजर्व के डॉग स्क्वायड से आवश्यक सहयोग लिया जा रहा है।

मृत बाघ की सूचना प्राप्त होते ही क्षेत्र संचालक ब्रजेन्द्र झा, उपसंचालक रिपुदमन सिंह भदौरिया, वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता एवं डाग स्क्वाड मौका स्थल पर पहुंचकर आवश्यक जांच कार्यवाही संपन्न की गई। मृत बाघ एवं हायना का पोस्टमार्टम डॉ. संजीव कुमार गुप्ता वन्य प्राणी चिकित्सक पन्ना टाइगर रिजर्व द्वारा 4 जनवरी बुधवार को प्रातः किया गया तथा सैंपल एकत्रित किए गए। मौके पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रतिनिधि के रूप में इंद्रभान सिंह बुंदेला उपस्थित रहे। मृत बाघ एवं हायना का पोस्टमार्टम उपरांत क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व, उपसंचालक पन्ना टाइगर रिजर्व, वन्य प्राणी चिकित्सक, इंद्रभान सिंह बुंदेला प्रतिनिधि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एवं अन्य अधिकारियों व स्टाफ की उपस्थिति में दाह संस्कार किया गया।

अब शिकारी देने लगे खुली चुनौती 

टेरिटोरियल के जंगलों में शिकार की घटनाएं जहाँ आम हो चुकी हैं वहीं अब वन्य जीवों के लिए सुरक्षित कहे जाने वाले रिज़र्व वन क्षेत्र में भी शातिर शिकारी सक्रिय हो गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वन विभाग के लोग घरों से बाहर निकलना ही नहीं चाहते, जंगल व वन्य प्राणियों की सुरक्षा पूरी तरह भगवान भरोसे है। एक के बाद एक जिस तरह से पन्ना टाइगर रिज़र्व के युवा बाघों की अकाल मौतें हो रही हैं उसे देखकर तो यही जाहिर होता है कि शिकारी वन महकमे को खुली चुनौती देने लगे हैं। शिकारियों में वन विभाग का खौफ अब बिलकुल नहीं है। वे जहाँ चाहते हैं वहां फंदा लगाकर शिकार करते हैं और जहाँ बिजली की लाइन है वहां करंट से शिकार की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। वन विभाग की भूमिका महज कागजी खानापूर्ति और बजट को निपटाने तक रह गई है।

जब यही होना था तो फिर बसाया क्यों ?

वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिज़र्व जब बाघ विहीन हो गया था तो यहाँ के जंगल को फिर से आबाद करने के लिए अथक मेहनत की गई। तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति व उप संचालक विक्रम सिंह परिहार जैसे अधिकारियों ने महीनों जंगल में गुजारे, घर का रास्ता ही भूल गए। मैदानी अमले ने भी इन समर्पित अधिकारियों का ईमानदारी से साथ दिया, इसी टीम वर्क की भावना और श्रम का नतीजा था बाघ पुनर्स्थापना योजना की शानदार कामयाबी। लेकिन मेहनत से मिली इस कामयाबी को हम आखिर कायम क्यों नहीं रख पा रहे हैं ? जाहिर है जब यही सब होना था तो फिर बाघों को यहाँ बसाया ही क्यों गया ? पन्नावासियों को अपनी धरोहर और पहचान को बचाने तथा गहरी नींद में सोये वन महकमे को झकझोर कर जगाने के लिए क्या फिर से आगे आना होगा ? अन्यथा पन्ना टाइगर रिज़र्व यदि पुनः 2009 की दशा को प्राप्त हो जाय तो कोई आश्चर्य नहीं है। शासन स्तर पर भी पन्ना के बाघों की हुई अकाल मौतों की गहन समीक्षा और कार्यवाई आवश्यक है नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पन्ना टाइगर रिज़र्व फिर बाघ विहीन हो जायेगा।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। ये जरूरी नहीं कि द हरिश्चंद्र इससे सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।

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