प्लास्टिक उपयोगी किन्तु उसका कचरा गंभीर समस्या बना

प्लास्टिक उपयोगी किन्तु उसका कचरा गंभीर समस्या बना

प्लास्टिक का लगभग एक सदी पहले आविष्कार हुआ। उसके बाद से, प्लास्टिक हमारे जीवन के हर पहलू में प्रवेश करता चला गया है। इस टिकाऊ, हल्के वजन वाले अत्यंत बहुमुखी पदार्थ के साथ के बिना कुछ मिनट भी चलना हमारे लिये आज मुश्किल है। पश्चिम में विज्ञान के एक विद्यार्थी ने पिछले दिनों एक अनोखा प्रयोग किया। उसने तय किया कि वह 24 घंटे तक पूरी तरह से प्लास्टिक के बिना रहने की कोशिश करेगा और प्लास्टिक की बनी किसी भी चीज को वह नहीं छूएगा। वह विद्यार्थी यह देखने और जानने का प्रयास कर रहा था कि हम प्लास्टिक के किस सामान के बिना बिल्कुल भी नहीं रह सकते हैं, और प्लास्टिक की वे कौन सी चीजें हैं जिन्हें हम छोड़ सकते हैं! सभी सामान्य लोगों की तरह वह भी रोजाना सुबह उठने के तुरंत बाद अपना स्मार्टफोन चेक करता था, संदेशे देखता था। अपने लिये नियत “प्लास्टिक-विहीन दिन” के लिए उसने अपना सेलफोन पहले ही अलमारी में रख दिया क्योंकि सेलफोन हाथ में कैसे ले? उसके व्रत में यह संभव नहीं था क्योंकि एल्यूमीनियम, लोहे, लिथियम, और तांबे के अलावा प्रत्येक स्मार्टफोन में प्लास्टिक भी होता है। उसने अपने आप को बहुत हल्का पाया। हालांकि फोन तक उसकी पहुंच न होने से वह शुरू में थोड़ा अस्त-व्यस्त जरूर हुआ। लेकिन साथ ही उसने अपने आप को खुला हुआ या बंधन मुक्त भी महसूस किया। प्लास्टिक स्पर्श-विहीन दिन की सुबह उठ कर वह बाथरूम की तरफ जाने लगा मगर उसके अंदर जाने से पहले उसे रुकना पड़ा। बाथरूम का दरवाजा ही प्लास्टिक का बना था। वह अपने नियमित टूथपेस्ट, टूथब्रश और तरल साबुन का उपयोग भी नहीं कर सकता था, जो सभी प्लास्टिक के पैक में थे या प्लास्टिक से बने थे। इस प्रकार उसने अगले 24 घंटों में पाया कि प्लास्टिक से पूरी दूरी बनाये रखना आज के इंसान के लिये नामुमकिन है।

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि प्लास्टिक ने हमारे लिये हजारों आधुनिक सुविधाओं को संभव बनाया है और उनके बिना हमारा गुजारा नहीं हो सकता। लेकिन इसके अनेक नुकसान भी हैं, खासकर पर्यावरण के लिए, यह भी सब जानते हैं। प्लास्टिक का उपयोग समस्या नहीं है। हम प्लास्टिक का उपयोग तो जीवन के हर क्षेत्र में करते हैं किन्तु उसके कचरे से निबटना हमारे लिये मुश्किल होता जा रहा है। इसका कारण है प्लास्टिक का प्राकृतिक रूप से नष्ट न होना। जिस प्रकार अन्य चीजें मिट्टी में मिल जाती है उस प्रकार प्लास्टिक नष्ट नहीं होता। प्लास्टिक के परमाणुओं के बीच बंधन इतना मजबूत होता है कि उसे खत्म करना मुश्किल होता है। अगर नष्ट करने के लिए इसे जलाया जाता है तो उससे अत्यंत हानिकारक विषैले रसायनों का उत्सर्जन होता है। उसे ज़मीन में गाड़ दिया जाय तो हजारों साल दबा रह कर भी वह विखंडित नहीं होगा। अधिक से अधिक धरती के ताप से वह छोटे-छोटे कणों में टूट जाएगा किन्तु पूर्ण रूप से नष्ट नहीं होगा। अगर उसके कचरे को समुद्र में डाल दिया जाय तो वह वहां भी समय के साथ छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित होकर उसके पानी को प्रदूषित करता रहेगा और समुद्री जीवों को नुकसान पहुंचाता रहेगा। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में हर साल लगभग 400 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का कचरा पैदा होता है। अंदर फोम वाले टेकआउट कंटेनर, पेन, कप, अमेज़ॅन पैकेज और निश्चित रूप से कैरी-बैग का हम भरपूर उपयोग करते हैं। दुनिया में प्लास्टिक से बनने वाले सामानों में से लगभग आधे सिर्फ एक बार प्रयोग करने के बाद फेंक दिये जाते हैं। इसे हम “यूज़ एण्ड थ्रो” कहते है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, “हम एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक उत्पादों के जबरदस्त आदी हो गए हैं। मगर अब इसके गंभीर पर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी परिणाम सामने आ रहे हैं।” बेशक, प्लास्टिक के बिना जीवन की कल्पना करना पूरी तरह एक बेतुका विचार है। इसके दोषों के बावजूद, चिकित्सा उपकरणों और हेलमेटों में उसका उपयोग नकारा नहीं जा सकता जिसका वह एक महत्वपूर्ण घटक होता है। कई मामलों में प्लास्टिक पर्यावरण की मदद भी कर सकता है। जैसे प्लास्टिक के हवाई जहाज के पुर्जे धातु की तुलना में हल्के होते हैं, जिसका अर्थ है कम ईंधन की खपत और कम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन। इसी प्रकार सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों में प्लास्टिक के पुर्जे होते हैं। देखा जाय तो दुनिया प्लास्टिक के सामान से भरी पड़ी है, विशेष रूप से डिस्पोजेबल – काम में लेकर फैंक देने वाली वस्तुओं से। पृथ्वी नीति संस्थान का अनुमान है कि लोग हर साल एक ट्रिलियन सिंगल-यूज प्लास्टिक बैग का उपयोग करते हैं।

प्लास्टिक उपयोगी किन्तु उसका कचरा गंभीर समस्या बना

पिछली सदी के नौवें दशक में प्लास्टिक उद्योग में एक कैच लाइन चलती थी “प्लास्टिक इसे संभव बनाते हैं” जो आज भी सच लगती है। प्लास्टिक ने हमारी दुनिया में कब प्रवेश किया, इस पर कुछ बहस है। कई लोग इसका आविष्कार 1855 में बताते हैं जब एक ब्रिटिश धातु विज्ञानी अलेक्जेंडर पार्क्स ने कपड़े के लिए जलरोधक कोटिंग के रूप में थर्मोप्लास्टिक सामग्री का पेटेंट कराया था। उसने नये पदार्थ को “पार्केसिन” कहा। अगले दशकों में, दुनिया भर में प्रयोगशालाओं ने उसके अनेक रूप और प्रकार विकसित कर दिये। मगर सभी का रसायन शास्त्र समान था। वे सभी परमाणुओं की बहुलक श्रृंखलाएं हैं, और वे अधिकांश पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस से बने होते हैं। उनमें मिलाये जाने वाले रसायनों के कारण प्लास्टिक अन्यों से बेतहाशा भिन्न होते हैं। वे अपारदर्शी, पारदर्शी, झागदार या कठोर, खिंचाव वाले या भंगुरशील भी हो सकते हैं। उन्हें पॉलिएस्टर और स्टायरोफोम सहित कई नामों से जाना जाता है, और पीवीसी और पीईटी जैसी आशुलिपि से भी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्लास्टिक निर्माण में तेजी आई क्योंकि वह युद्ध के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण था। उसने नायलॉन के पैराशूट, प्लेक्सीग्लास, विमान की खिड़कियां जैसी सुविधाएं दी। युद्ध के बाद प्लास्टिक के उत्पादन में और बड़ा उछाल आया। प्लास्टिक फॉर्मिका काउंटर, रेफ्रिजरेटर लाइनर्स, कार के पुर्जे, कपड़े, जूते आदि। वह उत्पाद जिसे कुछ समय के लिए इस्तेमाल करने के वास्ते डिज़ाइन किया गया था, सभी प्रकार की चीजों में चला गया। हालत ने करवट तब ली जब प्लास्टिक सिंगल-यूज सामान में उपयोग में लिया जाने लगा और प्रीफ़ैब कूड़े के ढेर लगने लगे। यहीं से हम मुश्किल में पड़ने शुरू हुए। स्ट्रॉ, कप, बैग और अन्य उत्पादों के कचरे ने पर्यावरण के लिए विनाशकारी परिणाम पैदा किए हैं। हम अपने शहरों में पाते हैं कि सड़कों पर बिखरा अधिकांश कचरा प्लास्टिक का ही होता। खास कर प्लास्टिक की थैलियां। उधर प्यू चैरिटेबल ट्रस्टों के एक अध्ययन के अनुसार, हर साल 11 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक महासागरों में प्रवेश करता है, पानी में रिसता है, खाद्य श्रृंखला को बाधित करता है और समुद्री जीवन का दम घोंटता है।

ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के अनुसार प्लास्टिक कचरे का लगभग पांचवां हिस्सा जल जाता है और हवा में कार्बनडाईआक्साइड छोड़ता है। यह संगठन यह भी रिपोर्ट करता है कि केवल नौ प्रतिशत प्लास्टिक का पुनर्नवीनीकरण किया जाता है। प्लास्टिक को रिसाइकल करना किफायती नहीं हैं, और जब रिसाइकल किया जाता हैं तो उसकी गुणवत्ता खराब हो जाती है। प्लास्टिक हमारे स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा सकता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल हेल्थ साइंसेज के अनुसार, कुछ प्लास्टिक एडिटिव्स – जैसे कि बीपीए और फाथेलेट्स – मनुष्यों में अंतःस्रावी तंत्र को बाधित कर सकते हैं। मानव शरीर पर इसके चिंताजनक प्रभावों में व्यवहार संबंधी समस्याओं के अलावा पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम हो जानेर और महिलाओं में थायरॉयड हार्मोन का स्तर कम हो जाने तथा समय से पहले बच्चे का जन्म भी शामिल हैं। माइक्रोप्लास्टिक, उपभोक्ता उत्पादों और औद्योगिक कचरे के निपटाने और उसे तोड़ने के परिणामस्वरूप हमारे वातावरण में प्लास्टिक के बेहद छोटे-छोटे टुकड़े या कण हर जगह फैले हुए हैं। हम जो पानी पीते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, और महासागरों में हर कहीं प्लास्टिक के कण विद्यमान हॉएते हैं। वे अन्य चीजों के अलावा, खराब प्लास्टिक कूड़े से आते हैं।

प्लास्टिक की इस समस्या का समाधान पूरी तरह से उपभोक्ताओं के कंधों पर नहीं डाला जा सकता है। हमें इस पर सभी मोर्चों पर काम करने की जरूरत है। समझदार लोगों का कहना है कि इस समस्या पर समग्रता से ध्यान देने की जरूरत है। प्लास्टिक समस्या भी है और उपयोगी भी है। यह प्रगति की समस्या भी है। प्लास्टिक से दुश्मनी की बात नहीं है। दुश्मनी उसके एकल उपयोग से हो तो बेहतर है। किसी चीज को एक बार इस्तेमाल करके फेंक देने की संस्कृति की बात है। इसीलिए दुनिया भर में ऐसे प्लास्टिक के उपयोग को कम से कम करने की कोशिश की जा रही है जो दोबारा इस्तेमाल में न आ सके। केंद्र सरकार ने एकबारीय उपयोग वाले प्लास्टिक पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाया हुआ है। मगर हम अपने चारों तरफ उसका कोई असर नहीं देख रहे हैं। राज्य सरकार को सबसे अधिक आमदनी शराब की बिक्री से मिलने वाले आबकारी वाले कर से होती है। संविधान के निर्देश के अनुरूप तो सरकार को शराब को बंद करना चाहिए मगर ऐसा नहीं होता। अब सरकार शराब को प्लास्टिक की बोतलों व पाउच में पैक करने की भी अनुमति देने लागी है। ऐसा करके वह प्लास्टिक के कचरे में ही इजाफा करती है बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए संविधान के दिशानिर्देशों की भी अनदेखी करती है।

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