उमड़ती भीड़ से रायता तो फैलेगा, लेकिन सरकार की तारीफ करना पायलट की विवशता है

उमड़ती भीड़ से रायता तो फैलेगा, लेकिन सरकार की तारीफ करना पायलट की विवशता है

असंतुष्ट नेता सचिन पायलट को भले ही सीएम की कुर्सी नही मिल, लेकिन उनकी ताबड़तोड़ यात्राओं ने गहलोत खेमे में भारी बेचैनी पैदा करदी है । लगता है प्रदेश के विभिन्न इलाकों के जरिये पायलट रायता बिखेरने में सक्रिय है । इनकी सभाओं में उमड़ती भीड़ भविष्य का नजारा पेश कर रही है ।

सचिन पायलट की सभाओं में उम्मीद से ज्यादा भीड़ आ रही है । लेकिन वे सरकार पर हमला करने से बच रहे है । उनकी विवशता है कि उन्हें प्रदेश के भ्रस्टाचार पर भी बोलना है तो साथ मे सरकार की तारीफ़ करना भी उनकी मजबूरी है । पेपर लीक मामले में उन्होंने मुख्य आरोपियों को पकड़ने की मांग की तो दूसरी ओर सरकार की इस बात के लिए जमकर तारीफ की कि उसने नकल करने वालो गिरोह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की ।। यहां तक माफियाओं के परिसरों को भी ध्वस्त किया ।

निश्चय ही गहलोत की छाती पर मूंग दलने के लिए वे तेजी से सक्रिय होगये है । सूत्रों से खबर मिली है कि आलाकमान राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन के पक्ष में नही है । गहलोत भी इससे वाकिफ है और पायलट भी । इसलिए बेखौफ होकर गहलोत बजट पेश करने में तेजी से सक्रिय है । पायलट के पास अपनी ताकत का इजहार करने के लिए जगह जगह सभा करने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नही था । इसलिए वे प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में सभा आयोजित कर जनता के समक्ष अपनी जबरदस्त उपस्थ्ति दर्ज कराते रहेंगे ।

सवाल यह उत्पन्न होता है कि इन सभाओं से आखिर होगा क्या ? प्रदेश की जनता गहलोत और पायलट दोनो के जादू से बखूबी वाकिफ है । यह निर्विवाद सही है कि पायलट भीड़ जुटाने के बहुत बड़े जादूगर है । लोगो मे उनका जबरदस्त आकर्षण है । लेकिन इसका फायदा क्या । पिछले तीन साल से आलाकमान उनको केवल लॉलीपॉप ही चूसने को दे रहा है । समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर वे तीन साल से आलाकमान के बहकावे आकर अपनी दिशा तय नही कर पा रहे है ।

पायलट को अब मुख्यमंत्री पद की आस छोड़ देनी चाहिए । उन्हें यात्राओं के साथ साथ अपना राजनीतिक भविष्य तय करना होगा । बकौल राहुल गांधी के गहलोत और पायलट दोनो पार्टी की असेट है । लेकिन केवल असेट कह देने से थोड़े ही कुछ होने वाला नही है । पायलट की मजबूरी यह है कि वे कांग्रेस में रहते है तो उन्हें गहलोत की अधीनता स्वीकार करनी होगी । अगर वे ऐसा नही भी करते है तो अपनी सभाओं में गहलोत सरकार की झूठी मूठी प्रशंसा करना विवशता होगी ।

अगर पायलट सीएम नही बन पाते है तो उन्हें संगठन की कुर्सी पर बैठ जाना चाहिए । सीएम और पीसीसी चीफ के अलावा उनके पास कोई विकल्प नही है । अगर वे पीसीसी चीफ बन जाते है तो उनकी और उनके समर्थकों की इज्जत बच सकती है । अगर ऐसा नही हुआ तो उनके पास बीजेपी में जाने के अलावा कोई अन्य यात्रा सुझाई दे रहा है । सम्भवतया पायलट भी इन बातों को बखूबी समझते है । इसलिए बुझे मन से सरकार की तारीफ करते हुए दूसरे गलियारे से सरकार के कामकाज पर प्रश्नचिन्ह लगाते है ।

सूत्रों से पता चला है कि आलाकमान के रवैये से पायलट बेहद खफा है । आलाकमान के नकारात्मक रवैये को देखकर ही पायलट ने सभाओं का आयोजन किया है । पायलट की यह आखिरी कोशिश है कि सभाओं को देखकर आलाकमान उनके पक्ष में कोई निर्णय ले ले । उधर गहलोत ने बजट पेश करने की तारीख भी घोषित कर दी है । यद्यपि मुझे लगता नही है, लेकिन चर्चा है कि बजट अधिवेशन के गहलोत खुद ही सीएम की कुर्सी पायलट को सौप सकते है । एक चर्चा यह भी है कि 28 जनवरी को प्रधानमंत्री की मौजूदगी में आसींद में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर सकते है ।

सूत्रों का कहना है कि गहलोत के रहते पायलट का कांग्रेस में कोई भविष्य नही है । अगर 2023 का चुनाव कांग्रेस जीत जाती है तो अशोक गहलोत का पुनः मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है । अगर कांग्रेस चुनाव नही जीतती है तो भी पायलट के हाथ कुछ लगने वाला नही है । तस्वीर साफ है -कांग्रेस हारती है या जीतती है, लाभ पायलट को नही, अशोक गहलोत को मिलेगा ।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। ये जरूरी नहीं कि द हरिश्चंद्र इससे सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।

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महेश झालानी
स्वतंत्र पत्रकार है। पिछले 45 वर्ष से पत्रकारिता में सक्रिय । उत्कृष्ट और खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए सम्मानित। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।