लापरवाही पर लगाम कसे, त्योहारों को दूर से सलाम करें

जयपुर। कोरोना महामारी के संक्रमण का भय त्योहारों पर एडवाइजरी जारी कर सलाह दी है कि राज्य सरकारें अपे स्तर पर सार्वजनिक रूप से होली, शब-ए-बारात, बीहू, ईस्टर और ईद-उल-फितर जैसे त्योहारों को सार्वजनिक रूप से मनाये जाने वाले त्योहारों में ऐतिहात के तौर पर रोक लगाएं, जिससे सार्वजनिक स्थानों पर जमावडे से बचने के उपाय करें। अब राज्य सरकारों पर निर्भर है कि वह राजी और गैर राजी अपने प्रदेशवासियों को कैसे मना पाते हैं।

त्योहार कोई भी हो। किसी धर्म, जाति का हो हर्ष और उल्लास का संचार आदमी में बनाये रखने के लिए उसकी आत्म संतुष्टि के लिए उसकी संस्सकृति के संस्कारों की परिणित के रस में मनाये जाते हैं त्योहार। ये अप्रत्याशित है, जब आदमी को उसकी संस्कृति के संस्कारों में संयम बरतने के लिए आगाह किया जा रहा है।

ये बात अलग है सभी प्रशासनिक अम्ला सरकार हो या और। कोई भी बे-वजह इंसान को अपनी जान गंवाते देखना नहीं चाहते। वजह कोई भी हो। लेकिन सरकारें जानती भी है कि वह कितना भी लोगों को सावचेत कर दें। लेकिन आदमी है कि मानता ही नहीं। कोई भी वजह बनाकर बाज नहीं आने की गली निकाल ही लेता है। ये आदमी की गलती नहीं है क्योंकि ये उसकी फिदरत में समाया है।

हर्ष और उल्लास का पर्व होली को ही लें। क्या हम बिना स्वस्थ रहे हर्ष उल्ला से कैसे रह सकते हैं। ये सारस्वत सत्य है, जीवन का पहला सुख निरोगी काया है, इसी अभिलाषा से हम कामना करते है सभी स्वस्थ रहकर समृद्धि के शिखर छूए, इसी के लिए इंसान और सभी सरकार सहित यही अभिलाषा और कामना के सतत प्रयासरत रहते है। फिर सरकार ने जो सलाह भरी एडवाईजरी जारी कर आगाह यिा है क्योंकि सरकार सहित कोई भी जानते-बूझते काल के गाल में समाने को आतुर होकर कोरोना सावचेती के नियमों को ताक पर रखकर और उसके आदेशों को धत्ता बताकर अपनी जीत पर खुद में ही हर्षित जरूर हो सकते हैं लेकिन कोरोना महामारी वो बीमारी है ध्यान बंटा और दुर्घटना घटी, की तर्ज पर ही पूरे प्रदेश, देश और विश्व में देखने को भी मिल रहा है।

आज समय है, यातायात के नियमों के अनुसार सुरक्षित रहने के लिए सबसे पहले कीप लेफ्ट (बायें चलिये) जैसे नियम की पालना जैसे सोशल डिस्टेसिंग और घर से निकलने से मुंह पर मास्क, नाम के लिए या चालान से बचने के लिए ही नहीं बल्कि अपने साथ दूसरों को भी सुरक्षित रखने की भावना से खुद को ही भीड़ से दूर रखेंगे तो। संभवत: भला ही होगा। लेकिन यहां उल्लेखनीय है कि मैं खरी-खरी सुना किसको रहा हूं। हम लोकतंत्र का हिस्सा है, जिसका आज पर्याय बनकर सामने आया है लोकतंत्र बनाम भीड तंत्र में आप राजनीति के किसी क्षेत्र में भी देख ही सकते है। क्योंकि आज इससे कोई अछूता नहीं है। इसलिए नाम किसका लें। हम खुद ही असमंजस में है इसलिए दूसरों से पहले अपने आपको ही शिक्षित एवं संयमित बना लेंगे तो संभवत: कोरोना को हराने में तो सफल हो ही जायेंगे। स्वस्थ रहेंगे तो जिन्दा भी रहेंगे। होली और त्योहार फिर अगले साल भी आयेंगे।

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