आजकल भाजपा की देश विदेश में गिरती साख खासतौर से अल्पसंख्यक समुदाय के साथ होने वाली दुर्दांत घटनाओं ने बुरी तरह बदनाम कर रखा है। यह सब उनके आका मोहन भागवत काफी दिनों से महसूस कर रहे हैं। इसलिए उनके बयान संघ की मूल भावनाओं खासकर गोलवलकर की विचारधारा से अलहदा नज़र आते हैं। सबसे पहला उनका संघ की सोच से बदला हुआ दरअसल, विवाद की जड़ में संघ प्रमुख डॉ. भागवत का गाज़ियाबाद में दिया वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘यदि कोई हिंदू कहता है कि मुसलमान यहां नहीं रह सकता है, तो वह हिंदू नहीं है। गाय एक पवित्र जानवर है, लेकिन जो इसके नाम पर दूसरों को मार रहे हैं, वो हिंदुत्व के खिलाफ हैं। ऐसे मामलों में कानून को अपना काम करना चाहिए।’ उन्होंने यह भी कहा कि सभी भारतीयों का DNA एक है, चाहे वो किसी भी धर्म का हो। शायद ऐसे हालात फिर से बनते दिख रहे हैं जब संघ प्रमुख के विचार को लेकर संघ के भीतर ही आवाजें उठने लगी हैं। सूत्रों के मुताबिक विरोध के स्वर खास तौर से नागपुर, असम और पश्चिम बंगाल से आए हैं। असम और पश्चिम बंगाल के चुनावों में संघ ने बहुत काम किया था। असम में तो मुस्लिम बहुल इलाकों में हर बूथ पर 20-20 लोगों की कमेटी बनाई गई, लेकिन वहां हर बूथ पर 5 से ज्यादा वोट नहीं मिले। बंगाल में भी तमाम कोशिशों के बावजूद ममता बनर्जी की ही जीत हुई। तीन साल पहले सितंबर 2018 में दिल्ली में 3 दिनों की व्याख्यान माला में डॉ. भागवत ने कमोबेश यही कहा था कि बिना मुसलमानों के हिंदुत्व अधूरा है और हिंदुस्तान में रहने वाला हर शख्स हिंदुस्तानी है। यदि किसी को हिंदुस्तानी शब्द से आपत्ति हो तो वो भारतीय कहे, उसमें भी कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन संघ में इस बयान के बाद आगे बढ़ने का कोई काम नहीं हुआ। यानी नाराजगी जाहिर भले ही नहीं की गई हो, लेकिन संघ प्रमुख के विचार को स्वीकार नहीं किया गया।
मुसलमानों पर RSS में हमेशा मतभेद रहे संघ विचारक दिलीप देवधर कहते हैं, ‘संघ प्रमख डॉ. भागवत का बयान डॉ. हेडगेवार और देवरस के विचार को आगे बढ़ाने वाला है। विश्वास है कि उन्हें इसमें कामयाबी मिलेगी। गुरुजी गोलवलकर की सोच कुछ अलग रही थी। संघ का इतिहास देखें तो हिंदुत्व को लेकर RSS में हमेशा से ही मतभेद बने रहे हैं। डॉ. हेडगेवार कहते थे कि हिंदुस्तान में रहने वाला हिंदू है। जैसे अमेरिका में अमेरिकन, जर्मनी में जर्मन होता है। वे हिंदू शब्द से आसक्ति तो नहीं रखते थे, लेकिन दस हजार साल पुरानी हिंदू परंपरा और विचार के साथ चलते थे।’
संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी गोलवलकर ने लिखा था कि भारत का पिछले 1200 साल का इतिहास धार्मिक युद्ध का इतिहास रहा है, जिसमें हिंदुओं को खत्म करने की कोशिश की गई। गोलवलकर मानते थे कि 1200 साल पहले जब से मुस्लिमों ने इस धरती पर कदम रखा है, उनका एकमात्र मकसद पूरे देश का धर्मांतरण करना और उसे अपना गुलाम बनाना रहा है। संघ ने बाद में बंच ऑफ थॉट्स में गुरुजी के इन विचारों को खारिज कर दिया। मुसलमानों को लेकर सबसे अहम चर्चा तीसरे संघ प्रमुख बालासाहब देवरस के वक्त हुई। मुसलमानों और संघ के सवाल पर 1977 में RSS की प्रतिनिधि सभा में बड़ी बहस हुई थी। प्रतिनिधि सभा में बाला साहब देवरस का रुख था कि RSS को मुसलमानों के लिए खोलना चाहिए, लेकिन यादवराव जोशी, मोरोपंत पिंगले, दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसे बहुत से नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया। एक लेख में यह कहा गया है वीर सावरकर मुसलमानों को ताकीद करते हैं कि वे अपने खून में हिंदुओं का खून मिलाएं और अपना हिंदूकरण करें, तब ही वे सुपात्र हैं हिन्दुस्तान में रहने के लिए।
इसके उलट दीनदयाल उपाध्याय हिंदुओं को सलाह देते हैं कि वे मुसलमानों को स्नेह पूर्वक आत्मसात करें। डॉ. भागवत के साथ प्रचारक बने रमेश सिलेदार कहते हैं कि हिंदुत्व का मतलब ही सेक्युलर होना है, तो इसके लिए अलग से बार-बार जोर देने की आवश्यकता नहीं है, इससे कार्यकर्ता में कन्फ्यूजन पैदा होता है।
आज देश में मंदिर-मस्जिद को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है। ऐतिहासिक इमारतों के हिंदू अतीत को लेकर भी याचिकाएं न्यायालय में लंबित हैं। चाहें कुतुब मीनार हो, जामा मस्जिद हो या ताज महल, इनको लेकर नए-नए दावे सामने आए हैं। ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान सुर्खियों में है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत के संदर्भ में अहम बात कही है। उन्होंने कहा कि भारत को विश्वविजेता नहीं बनना है। उसका तो मकसद सभी को जोड़ने का होना चाहिए। भारत किसी को जीतने के लिए नहीं बल्कि सभी को जोड़ने के लिए अस्तित्व में है। नागपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने ये बातें कहीं। हर मस्जिद में शिवलिंग तलाशने की जरूरत नहीं’।मोहन भागवत ने कहा, ”ज्ञानवापी का मुद्दा चल रहा है. इतिहास तो है, जिसे हम बदल नहीं सकते. इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया और न ही आज के मुसलमानों ने, ये उस समय घटा, जब हमलावरों के जरिए इस्लाम बाहर से आया था. उन हमलों में भारत की आजादी चाहने वालों का मनोबल गिराने के लिए देवस्थानों को तोड़ा गया.”
आरएसएस चीफ मोहन भागवत के इस बयान पर कांग्रेस ने तंज कसा है. कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने कहा कि ये नसीहत आम लोगों को नहीं बीजेपी और संघ कार्यकर्ताओं के लिए है। कांग्रेस नेता ने कहा कि मोहन भागवत बीजेपी कार्यकर्ताओं को ये भी समझाएं कि भारत की एकता और अखंडता से बढ़कर कुछ नहीं है। विवेक तन्खा ने तंज कसते हुए कहा कि संघ प्रमुख को जानते हैं कि असली समस्या बीजेपी कार्यकर्ता हैं न कि देश के लोग। तन्खा ने कहा कि आज महंगाई, तेल की कीमतें, बेरोजगारी, महिला सशक्तिकरण, युवाओं के विकास, पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के कल्याण जैसे मुद्दे अहम हैं न कि ऐसे विवादों को बढ़ावा देना जिससे लोगों का ध्यान हटे।
संघ प्रमुख के इस बयान पर देवबंद के उलेमा मुफ्ती असद कासमी का बयान भी आया है. उन्होंने कहा कि वह भागवत के बयान से पूरी तरह सहमत हैं. मुफ्ती असद कासमी बोले कि मैं भी यह चाहता हूं और देश के सभी देशवासी और तमाम सेकुलर सोच वाले लोग यही चाहते हैं कि देश के अंदर कैसे अमन शांति रहे, भाईचारा रहे और हमारा देश तरक्की करे.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चीफ मोहन भागवत ने वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर बड़ा बयान दिया है.
उपरोक्त तमाम बयानों और वक्तव्यों से यह बात तो स्पष्ट होती ही है कि आजकल संघ में भी बदलाव की सोच प्रबल हो रही है किंतु कुछ खांटी गुरु गोलवलकर के अनुयाई अपने ढर्रे में बदलाव के विरोधी हैं। मोहन भागवत में बात बहुत अच्छे से भाजपा के आठ सालाना कार्यकाल में इस बात को समझ चुके हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ तालमेल कायम रखें बिना ज्यादा दिन शासन करना कठिन है। झूठ की बुनियाद भी अब कमज़ोर हो चली है इसलिए हिंदुत्व तब तक अधूरा है जब तक उसमें अल्पसंख्यक समुदाय की उपस्थिति, धर्म उनके विकास से ऐतराज ना हो। भागवत के अनुसार जब सब का डी एन ए एक है तो विवाद किस चीज़ का।
हालांकि लोग संघ प्रमुख के बयानों को अविश्वास पूर्वक ले रहे हैं वे अपनी बात पर यदि कायम रह मंदिर मस्जिद विवादों पर सरकार से रोक लगवाने में सफल होते हैं। उसे यथास्थिति रखवाते हैं तभी वे लोकप्रिय होंगे वरना लफ्फाजी से जनता बोर हो चुकी है।सदेच्छा से संघ की सोच में बदलाव का सभी स्वागत करेंगे।लग तो यह रहा है कि भाजपा के कथित हिंदुत्ववादी और गुजरात माडल से संघ का मोह भंग हो रहा है। नितिन गडकरी का संसदीय बोर्ड से हटना गुजरात के उद्यमियों को प्रमुखता देना नागपुर को अब अखरने लगा है। मोदी संघ के प्रति लापरवाह हो चुके हैं। ये तमाम कारण संघ को परेशानी में डाल रहे हैं। खजाना गुजरात खिसक गया है संघ में बेचैनी है इसलिए संघ अपने आचरण में तब्दीली के संकेत दे रहा है। के राजनैतिक तो यह मान रहे हैं कि संघ अपनी बी टीम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठा चुका है। गडकरी भी भाजपा के 150 सांसदों के समर्थन की बात कह चुके हैं। दाल में काला सांप नज़र आ रहा है इससे यह तो तय है कि 2024में मोदी की विदाई सुनिश्चित है।
Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए द हरिशचंद्र उत्तरदायी नहीं होगा।