गुजरात प्रयोगशाला के नये प्रयोग की सफलता संदिग्ध

गुजरात प्रयोगशाला के नये प्रयोग की सफलता संदिग्ध

सुसंस्कृति परिहार : गुजरात 2002 के दंगों के प्रयोग की प्रयोगशाला से मिली देश की सत्ता के दिन अब पूरे होने के करीब है पहले पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और विगत माहों में बंगाल,केरल में मिली अप्रत्याशित हार से भाजपा बुरी तरह हताश हैं। अब सारा दारोमदार उत्तर प्रदेश जीत पर टिका है। जहां पहली बार पूरी तरह संघ मैदान संभाल चुका है लेकिन हालत बराबरी पतली होती जा रही है। एक तो जनता मंहगाई, बेरोजगारी और मंहगाई से त्रस्त है दूसरे भाजपा और संघ के बीच अंदरूनी कलह और तीसरा फैक्टर है किसान मोर्चा ।जिनसे बचाव का कोई कारगर तरीका अब तक नज़र नहीं आ रहा है। 

उत्तर प्रदेश की बदतर हालत से चिंतित भाजपा का अब गुजरात से उजड़ने का डर भी साफ झलक रहा है। रूपानी जो मोदी शाह के खासमखास थे हटाकर एक ऐसे व्यक्ति को जो पहली बार विधायक बना हो , मंत्री भी नहीं रहा उसे सीधे मुख्यमंत्री बनाना एक नया प्रयोग ही कहा जाएगा। नवागत मुख्यमंत्री की एक विशेषता यह है कि वे असंतुष्ट रहे पाटीदार समाज से हैं दूसरे वे विधानसभा चुनाव एक लाख से अधिक सर्वाधिक मतों से जीते हुए हैं। वे 17वें मुख्यमंत्री हैं तथा पाटीदार समाज के पांचवें सी एम भी हैं जबकि वे कड़वा पाटीदार समाज के पहले मुख्यमंत्री हैं। वे आनंदी बेन की विधानसभा सीट से 2017में विधायक बने हैं। बताते हैं वे राज्यपाल महोदया के करीबी हैं । मोदीजी ने  भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री बनाए जाने पर जो ट्वीट किया है– “मैं उन्हें वर्षों से जानता हूं और मैंने उनका अनुकरणीय कार्य देखा है, चाहे वह भाजपा संगठन में हो या नागरिक प्रशासन और सामुदायिक सेवा में। इस बयान की क्या ज़रुरत थी । बधाई देना ही काफी था । आम लोगों की तरह लगता है मोदी भी मानसिक तौर पर परेशान हैं। उपमुख्यमंत्री रहे पाटीदार समाज के अनुभवी नेता ठगे से रह गए लगता है अब पूरा मंत्रीमंडल ही बदल जाएगा ।स्वच्छ छवि बनाने की कवायद है यह। चुनाव भी उत्तरप्रदेश के साथ कराने की ख़बरें सूत्र दे रहे हैं। ताकि बढ़ती आप और कांग्रेस को प्रचार का कम समय मिले।

राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हरि देसाई कहते हैं, “यही तो नरेंद्र मोदी के काम करने की शैली रही है, वे उस आदमी को तलाश लेते हैं जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. इसकी एक वजह यह भी है कि वे राज्य में किसी मज़बूत नेता को बढ़ाना नहीं चाहते हैं.” यह तो सच्चाई है ही कि संघ भी  ऐसे लोगों को ही कमान देने में लगी है जो संघ की भक्ति में तल्लीन हैं। भूपेंद्र संघ के जन्मजात कार्यकर्ताओं में से हैं। गुजरात के नवागत  मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल जी के सोशल मीडिया में आए ट्वीट को आप पढ़ेंगे तो इनके ज्ञान भंडार को देख  आसानी से  कोई समझ लेगा कि उनका करता कैडर है । संघ और भाजपा को  सिर्फ हुक्म बजाने वालों की जरूरत है जो समन्वयवादी संस्कृति के विरुद्ध ज्ञान बांट सकें ।आज इसी तरह की आज्ञाकारिता के परिपालन में हज़ारों नवजवान लगे हुए हैं वे माब लिचिंग जैसे संगीन गुनाहों के साथ आंदोलनों में प्रवेश कर उन्हें राह से भटकाने जैसे कामों को भी अंजान देने में लगे हैं । गणतंत्र दिवस के अवसर पर लालकिले में जो हुआ वह ऐसे ही लोगों का काम था।एन आर सी के आंदोलन के दौरान भी ऐसे लोग पकड़े गए। ऐसे ही लोग कपोल कल्पित ख़बरे बनाने आई की सेल में दाखिला लिए है। जिस देश में राजधानी दिल्ली में दंगा फैलाने प्रोत्साहित करने वाला और गोली मारो —–को की आवाज़ लगाने वाला सूचना प्रसारण मंत्री हो । उससे इनकी पसंद ज़ाहिर होती है।

लगता है इस तरह के अक्षम , अयोग्य और संविधान विरोधी लोगों को सत्ता में बैठाकर ये लोग उन्हें बलि का बकरा बनाने में लगे हैं कल होने वाली तमाम गलतियों के लिए इन्हीं के सिर ठीकरा फोड़ा जाएगा।बेशर्मी से यह भी कहा जाएगा उन्हें विधायक दल के सदस्यों ने चुना था। विधायक जनता ने चुने मतलब जो हुआ उसके लिए जनता ही जिम्मेदार है।यही लोकतंत्र है।

भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद सब ठीक ठाक हो जाएगा ये तो ज़रूरी नहीं है। क्योंकि इससे पाटीदार समाज भी टुकड़ों में बंट गया एक तो वे हैं जो कड़वा पाटीदार हैं जिनका बाहुल्य सौराष्ट्र में है जहां पिछले चुनाव में भाजपा की हालत खराब थी।दूसरे वे हैं जो नितिन पटेल उपमुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे थे।तीसरे पाटीदार समाज के वे लोग हैं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील के समर्थक तो इतनी जल्दबाज़ी में थे कि विजय रुपाणी के इस्तीफ़े से पहले ही विकीपीडिया पर उन्हें राज्य का 17वां मुख्यमंत्री लिख दिया गया. बात सीआर पाटील तक भी पहुंची होगी लिहाज़ा उन्होंने शनिवार की देर शाम वीडियो जारी करके कहा कि वे मुख्यमंत्री बनने की रेस में नहीं हैं. इससे गुजरात भाजपा अध्यक्ष के पक्षधरों का रुख समझा जा सकता है जो मुख्यमंत्री बनने के इंतज़ार के लिए भी तैयार नहीं थे जिन्होंने बराबर उन्हें मुख्यमंत्री मान ही लिया था। मतलब समाज के दो खेमों की नाखुशी भूपेंद्र को आगत चुनाव में भारी पड़ सकती है।इसका फायदा नहीं नुकसान ही हासिल होगा।

इसके अलावा विजय रूपानी की टीम , मनसुख जी के लोग तथा अन्य विधायकों के अंदर भी भूपेंद्र की नियुक्ति को लेकर गहरा असंतोष हैं। मुख्यमंत्री बदलाव का लाभ लेने का जो प्रयोग अन्य राज्यों में हुआ है उससे बिल्कुल ही नया प्रयोग भूपेंद्र जैसे सिर्फ पहली बार बने विधायक को इतने महत्वपूर्ण प्रदेश की कमान देना अनूठा और आश्चर्य जनक प्रयोग तो है ही । देखिए यदि यह सफल हो जाता है जिसकी उम्मीद ना के बराबर है तो यह  भविष्य के प्रधानमंत्री की एक रिहर्सल हो सकती है क्योंकि संघ सीधे चुनाव मैदान में आने की जोखिम नहीं लेना चाहता। गुजरात का यह प्रयोग देश के लिए गंभीर चुनौती की तरह है।बुजुर्आ नेताओं के लिए असंतोषकारी । जनता इसे कैसे लेगी उसमें वक्त है , संभावना है अंदरूनी नाखुशी उत्तराखंड जैसी कोई तब्दीली शीध्र यहां ले आए। क्योंकि उत्तर प्रदेश और गुजरात की हार के बाद कुछ नहीं बचने वाला!

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सुसंस्कृति परिहार
लेखिका स्वतंत्र लेखक एवं टिप्पणीकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।