खड़गे के गले मे फंस गया है मरा हुआ सांप, कुर्सी कभी नही छोड़ेगा दीना का लाल!

मरे सांप को गले मे लटकाकर मल्लिकार्जुन खड़गे बुरी तरह से मुसीबत में फंस गए है । तय नही कर पा रहे है कि इस मरे सांप से छुटकारा कैसे पाया जाए । अध्यक्ष बने दो सप्ताह होने को आए । लेकिन उनकी हालत बिना स्टेयरिंग की गाड़ी जैसी होगई है । उन्हें कुछ सूझ रहा है और न ही कोई नेता उनकी परवाह कर रहे है । बिना गांधी परिवार की राय और अनुमति के कोई भी कदम उठाने से रूह कांपती है । हालत यही रहे तो वे कभी भी मरे सांप को गले से फेंककर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे सकते है ।

कांग्रेसजनों को उम्मीद थी कि खड़गे के आने के बाद पार्टी की सेहत में सुधार आएगा । लेकिन स्थिति पहले से ज्यादा बिगड़ती जा रही है । राजस्थान में जिस तरह के हालत है, उसको रोका नही गया तो कांग्रेसी आपस मे सर फोड़ने में जुट जाएंगे । ऐसी बात नही है कि खड़गे इससे वाकिफ नही है । वे सबकुछ जानते हुए भी कुछ भी करने में असहाय है । न उनके पास पार्टी को चलाने व चुनाव संचालन के लिए पैसा है और नही वह अपनी दिशा तय कर पा रहे है ।

गुजरात के लिए मोटी रकम की जरूरत है । इसका इंतजाम कैसे हो, यह खड़गे को समझ नही आ रहा है । एकमात्र अशोक गहलोत ही ऐसे व्यक्ति है जो पार्टी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है । अगर खड़गे उनसे पैसे मांगते है तो गहलोत को उनके साथ समझौता करना पड़ेगा । समझौते का मतलब होगा गहलोत के सामने नतमस्तक । गुजरात के चुनावो की घोषणा हो चुकी है । लेकिन गहलोत पैसे देने से कतरा रहे है । बिना पैसे के खड़गे पार्टी को चलाए कैसे, यह उनकी समझ से परे है । 

उधर राजस्थान में सर फुटव्वल जारी है । केसी वेणुगोपाल ने दो दिनों में राजस्थान का मसला हल करने की बात कही थी । समस्या तो दूर हुई नही, पार्टी में जबरदस्त मारधाड़ मची हुई है । अब तो मंत्रिमंडल के सदस्य ही मुख्यमंत्री सरेआम पगड़ी उछालने का अभियान चला रहे है । खड़गे की तरह पीसीसी चीफ गोविंदसिंह डोटासरा की हालत भी बड़ी दयनीय है । उनकी चेतावनी का कोई असर किसी भी विधायक पर नही हो रहा है । एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी का दौर जारी है । 

खड़गे के सामने सबसे बडी मुसीबत यह है कि उनके सोनिया, राहुल और प्रियंका तीन बॉस है । इनकी बगैर मर्जी के खड़गे अपने पसंद की ड्रेस तक पहनने के लिए सक्षम नही है । 25 सितम्बर को उनको और अजय माकन को जिस तरह जलील करके बैरंग दिल्ली भागने के लिए विवश किया गया था, उससे घटिया हरकत आज तक कांग्रेस के इतिहास में नही हुई । शुक्र रहा कि दोनों पर्यवेक्षको के कपड़े नही फाड़े गए । वरना इरादा तो दोनों को नंगा करके भेजने का था । 

स्वयं खड़गे ने माना कि 25 सितम्बर को घोर अनुशासनहीनता हुई थी । इसकी ऐवज में तीन जनों को नोटिस भी जारी किए गए थे । सचिन पायलट द्वारा अनुशासनहीनता करने वाले तीनो व्यक्तियों के खिलाफ यथोचित कार्रवाई की मांग की गई । लेकिन बेचारे खड़गे कोई भी कदम उठाने से आतंकित है । उनकी इतनी हिम्मत नही कि वह अशोक गहलोत या उनके समर्थकों के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सके । कार्रवाई से पूर्व वे माताजी, युवराज और राजकुमारी का अनुमोदन चाहते है । उधर गांधी परिवार यह जाहिर नही करना चाहता है कि पार्टी के भीतर उनका दखल है । 

दो सप्ताह के दौरान खड़गे पूरी तरह से फ्लॉप साबित होते दिखाई दे रहे है । राजस्थान में गहलोत और पायलट का मसला अटका हुआ है । उम्मीद थी कि 30 अक्टूबर से पहले यह मामला निपट जाएगा । अब तो नही लगता है कि यह मामला कभी सुलझेगा भी । गहलोत आजीवन सीएम का पद छोड़ने के मूड में है नही । खड़गे में इतनी हिम्मत है नही कि वे गहलोत को सीएम की कुर्सी से बेदखल करदे । यदि उन्होंने ऐसा किया तो वे खुद ही बेदखल हो जाएंगे । 

यह सौ फीसदी सच बात है कि जिसके पास पैसा होता है उसके यहां सभी शीश नवाते है । जैसे मौत के सौदागर मदन पालीवाल के यहां नाथद्वारा जाकर सीएम, उप राष्ट्रपति, राजनेता, साधु-संत, मोरारी बापू और बाबा रामदेव जैसे लोग शीश नवा रहे है । ऐसे ही गहलोत के समक्ष खड़गे तो क्या सोनिया तक नतमस्तक है । तभी तो गहलोत आलाकमान को अपनी जेब मे रखते है । संविधान और कानून की बात करने वाले गहलोत ने एकबार भी विधायको के इस्तीफे वापिस लेने की बात नही कही है । इसे जादूगरी नही, धूर्तता कहा जाता है । 

एक सवैधानिक प्रश्न यह भी है कि क्या एंटोनी की अध्यक्षता वाली अनुशासन समिति का कोई वजूद है ? कायदे से नए चुनाव होने के बाद पुरानी सभी समितियां भंग मानी जाती है जब तक उनका कार्यकाल नही बढ़ाया जाता है । खड़गे की ओर से अनुशासन समिति के बारे में कोई निर्देश जारी नही किये गए है । यदि एंटोनी की अध्यक्षता वाली समिति शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ के खिलाफ कोई कार्रवाई करती है तो वे उस कार्रवाई पर भी प्रश्नचिन्ह लगा सकते है । 

यह तय हो चुका है मरते दम तक अशोक गहलोत सीएम की कुर्सी नही छोड़ने वाले है । जैसे किसी व्यक्ति की जान तोते में अटकी रहती है, उसी प्रकार की गहलोत की जान सीएम की कुर्सी में अटकी हुई है । किसी ने भी इस कुर्सी को छीनने की कोशिश की, लहू बहना सुनिश्चित है । इसलिए सचिन पायलट को उम्मीदों को कुचलते हुए कुछ समय और भजन-कीर्तन करना होगा । क्योंकि आलाकमान नामक की इतनी हैसियत नही कि वह गहलोत से पंगा ले सके । अगर तथाकथित आलाकमान ने गहलोत से टकराने की कोशिश की तो उसका नेस्तनाबूद होना सुनिश्चित है । जिस व्यक्ति ने सोनिया, राहुल और प्रियंका तो उल्लू बना दिया हो, उसके सामने खड़गे की औकात ही क्या है ? टुकड़ा चाहिए ? मिल जाएगा । लेकिन बेकार की फफूंदबाजी नही ।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। यह लेख मूल रूप से महेश झालानी की वॉल पर प्रकाशित हुआ है। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।

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Mahesh Jhalani Profile Photo
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