सुसंस्कृति परिहार : किसान आंदोलन में उमड़े जनसैलाब के मद्देनजर कई सवाल उठने शुरू हो गए हैं जो स्वाभाविक हैं अमूमन लोग इसे उ०प्र०में काबिज़ सरकार उखाड़ फेंकने वालों का हुजूम बता रहे हैं तो कुछ लोग करनाल में लाठियों से सिर फोड़ने वालों का जवाब बता रहे हैं।ये दोनों बातें काफ़ी हद तक सही भी है लेकिन वास्तव में इसमें किसानों की नौ माह की पीड़ा भी प्रकट हो रही है जिसकी परवाह सरकार को नहीं। एक शांतिपूर्ण आंदोलन को भारत सरकार का यह व्यवहार दुनिया के सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी नागवार गुज़र रहा है । हालांकि किसान मोर्चे पर डटे रहेंगे हटेंगे नहीं क्योंकि उन्हें जमीन से ही संघर्ष की प्रेरणा बचपन से मिलती है कितनी मुश्किलात में वे अन्न का उत्पादन करते हैं जो हमारे पेट की ज़रुरी मांग है।
बहरहाल 10 सितम्बर से तमाम किसान संगठनों की बैठक लखनऊ में यह तय करेगी कि आंदोलन की दिशा क्या होगी ? 27सितम्बर को भारत बंद पहले से घोषित है ही।एक महत्वपूर्ण काम किया है किसान संगठनों ने उनकी एक मुहिम जो कृषि बिलों की वापसी को लेकर शुरू हुई उसने जनमानस को जगाया है और जिससे तमाम क्षेत्रों के उत्पीड़न भी उभरकर कर सामने आए हैं।देश को बेचने और लूटने वालों की पहचान हो गई है झूठे ख्वाब दिखाने वालों का पर्दा फाश हुआ है।आज जन जन परेशान हैं। निजीकरण ने नौकरियों पर डाका डाला तो है ही साथ ही साथ बड़ी तादाद में रेलवे, बैंक , बीएसएनएल, पोस्ट आफिस ,बीमा जैसे संस्थानों में भी सेंध लगाकर इन्हें भी कारपोरेट के हवाले करने का निर्णय ले रखा है।शिक्षा और स्वास्थ्य की हालत बदतर है जहां कर्मचारियों का अभाव है जो हैं ,उनमें संविदा कर्मी ही हैं।
सरकारी ज़मीन जहां भी खाली है वह अधिग्रहीत हो रही है।पेंशन तो ख़त्म हो ही चुकी , जीवन भर सेवा देने वाला कर्मचारी अब बैंक में रखी मेहनत की कमाई को खोने की स्थिति में है। सरकार बड़े उत्साह से कह रही है कि बैंक डूबने की स्थिति में पांच लाख तो पक्का मिलेगा यानि शेष राशि डकार ली जायेगी।ब्याज दरें वैसे ही कमतर हो रही हैं। मंहगाई की मार , पेट्रोल,डीजल,गैस के साथ खाद्य तेलों और तमाम प्रोडक्ट इतने मंहगे कि महिलाओं का दम निकला जा रहा है। बुजुर्ग दवाओं और निजी अस्पतालों के या तो बोझ से दबे हैं या भगवान भरोसे मृत्यु शैय्या पर है। विद्यार्थियों की परेशानियों का कहना ही क्या?बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ योजना अंधेरे में है।उनकी सुरक्षा ख़तरे में है। छोटे मोटे काम करने वालों पर पुलिसिया मार पड़ती ही रहती है। आजकल फिर हिंदू मुस्लिम ज़ोर पकड़ने लगा है जो सामाजिक ताना-बाना छिन्न भिन्न करने की कोशिश है और ये सिर्फ़ बहुसंख्यकों को खुश कर चुनाव जीतने की है।ये कुछ देश की ज्वलंत चुनौतियां हैं। कारपोरेट की मंशा स्पष्ट है वह पूरा देश खरीदकर लोगों को गुलाम बनाने में लगा है।उसे सरकार का वरदहस्त मिला हुआ है।वे बैंक लूट कर भाग जाते हैं।जो घाटे में होते हैं उन्हें अरबों की राशि दान में मिल जाती है । वहीं किसान और बेरोजगार नवजवान दस हजार के कर्ज चुकाने में परिवार सहित मौत का दामन थाम लेता है।
इन तमाम समस्याओं से जूझ रही जनता को भी किसान आंदोलन में शामिल करना हमारा फ़र्ज़ है।सभी पीड़ितों की आवाज़ एक साथ बुलंद करने इन बिखरे तमाम संगठनों के साथियों को साथ लाना आज देश की ज़रूरत है। किसान अपने आंदोलन में इन्हें शामिल करें क्योंकि आम जनता के दाना-पानी की लड़ाई हेतु ही आखिरकार वह तीनों काले कृषि कानूनों के खिलाफ हैऔर उनकी वापसी हेतु अडिग ।यह संगठन उ० प्र०,उत्तराखंड मिशन के साथ साथ सभी प्रदेशों में सरकार से पीड़ित लोगों ख़ासकर कर्मचारियों, मज़दूरों, बेरोजगार युवाओं ,पेंशनरों, महिलाओं को साथ लेकर उनकी लड़ाई भी लड़े ।उसके लिए जिला स्तर पर अभी से काम करने की ज़रूरत है। जहां लोग इन परेशानियों की वजह नहीं जानते उनको समझाने की पहल भी हो।
यह काम कठिन नहीं होगा क्योंकि पीड़ित समाज का बड़ा हिस्सा कृषक या खेतिहर मजदूर से कहीं ना कहीं गहरे रुप से जुड़ा होता है।भारत बंद जैसे आयोजन से लोग परेशान होते हैं ये सांकेतिक होना चाहिए। हालांकि सरकार मदहोश है उस पर बंद का असर नामुमकिन है।अतएव मुजफ्फरनगर का संदेश यही है कि आगे 22-23और फिर 2024में ऐसी सरकार को हटाने की तैयारी अभी से हो।सब होंगे साथ, तभी भाजपा होगी साफ़। जुड़ेंगे –जीतेंगे ।