निरंतर पीड़ा से प्रभावित सहायक प्राध्यापक कब मुक्त होंगे, सरकार!

निरंतर पीड़ा से प्रभावित सहायक प्राध्यापक कब मुक्त होंगे, सरकार!

सुसंस्कृति परिहार : मध्यप्रदेश सरकार, उच्च शिक्षा विभाग और राज्य लोक सेवा आयोग की मिलीभगत और गलत नीतियों से प्रभावित सहायक प्राध्यापकों की पीड़ा का कोई ओर छोर नज़र नहीं आता। शिक्षा के बजट में कमी करने, शिक्षित, बुद्धिजीवियों, सवाल करने वाले चेतना सम्पन लोगों से नफ़रत रखने वाली केन्द्रीय सरकार की चाटुकार म०प्र० सरकार ने इन सहायक प्राध्यापकों के साथ जो किया है वह अक्षम्य है। इसके तार पूर्ववर्ती सरकार से भी जुड़े हुए हैं। भर्ती की कोई एक नीति है। आती जाती सरकारें अपने मन मुताबिक नियुक्तियां करती रहीं हैं। जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। अभ्यर्थियों को जो सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा 2017 में चयनित हुए थे, उनका चयन निरस्त कर दिया है।

आदेश के अनुसार म.प्र. लोक सेवा आयोग ने चयन सूची जो 2019 में जारी की थी और सहायक प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति/पदस्थापना प्रदान की थी।म.प्र.उच्च न्यायालय जबलपुर में दायर याचिका क्रमांक एम सी सी 1349/2020 में पारित निर्णय दिनांक 01/02/2021 एवं याचिका क्रमांक डब्ल्यू पी 19393/2019 में पारित निर्णय दिनांक 24/4/2020 के अनुपालन में म.प्र.लोक सेवा आयोग द्वारा पुनरीक्षित सूची जारी की गई थी। लोक सेवा आयोग द्वारा जारी पुनरीक्षित चयन सूची अनुसार कुछ अभ्यर्थियों का चयन निरस्त किया गया है।

उच्च शिक्षा विभाग के पोर्टल पर जारी,विषय एवं अभ्यर्थियों की संख्या की सूची,जिनका चयन अब तक निरस्त किया गया है। वे भौतिकशास्त्र 08,रसायन शास्त्र 08, अंग्रेजी 07, वनस्पति शास्त्र 02,गणित 01, अर्थशास्त्र 01,प्राणीशास्त्र 03, वाणिज्य 02और इतिहास से 01है।कुल 33प्रभावित हैं। आदेश के आते ही सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा 2017 का मुद्दा औऱ नियुक्ति प्रक्रिया के चर्चे फिर सामने आ गए है।

निरंतर पीड़ा से प्रभावित सहायक प्राध्यापक कब मुक्त होंगे, सरकार!

अगर प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के संक्षिप्त इतिहास पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि प्रदेश के सरकारी कॉलेज कई वर्षों तक मानदेय औऱ संविदा के आधार पर लोगों से सेवाएं लेते रहे है जिन्हें सन 2000 तक 1800 रुपये मानदेय मिलता था औऱ उन्हें 89 दिनों के लिए आमंत्रित किया जाता था परंतु 1989 औऱ इसके बाद कॉलेज में एडहॉक पर पढ़ा रहे लोगो को भी नियमित किया गया औऱ सुपेन्यूमेरेरी पद भी सृजित किये गए। 90 के दशक में तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री के समय लगभग 630 लोगो का भला हुआ औऱ वे सहायक प्राध्यापक बन गए।कहां जाता है कि मंत्री जी की पत्नी की नियुक्ति के निहितार्थ में इन लोगों का भी भला हो गया। सन् 2000 के बाद इस व्यवस्था को नया नाम दिया गया और मानदेय पर पढ़ाने वाले लोगो को अतिथि विद्वान कहा जाने लगा। जिन्हें प्रतिवर्ष आवेदन करना पड़ता था और इसका संभागवार विज्ञापन उन दिनों अखबार में प्रकाशित होता था। अतिथि विद्वान भी न्यूनतम मानदेय पर काम करता था पहले उसे 75 रुपये दिन मिलते थे फिर 100 इसके बाद 120,150 औऱ बड़ी जद्दोजहद के बाद क्रमशः मानदेय बढ़ाया गया औऱ अभी 1500 रुपये मिल रहे है पर इन वर्षो में अथक परिश्रम कर वह भी टूट चुका है जिसके पास भविष्य नहीं है। वर्तमान में तो कुछ अतिथि विद्वान ऐसे भी है जिनकी उम्र 55 वर्ष से अधिक हो चुकी है और जिन्होंने सारा जीवन यहां बिता दिया पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

बहरहाल सुपेन्यू मेरेरी के दो साल बाद यानि 1992 में सरकार सहा प्राध्यापक संवर्ग हेतु नौकरियां निकालती है। इसके बाद बैकलॉग भर्तियाँ हुई पर प्रदेश के सामान्य वर्ग को मौका 28 साल बाद 2017 में मिला। पर अफसोस यह कि इनके पद कम थे और परीक्षा सम्पूर्ण भारत वर्ष के 44 वर्ष तक के उम्मीदवारों के लिए खुली हुई थी।इसके पहले 2014 और 2016 में नियुक्तियां निकाली जाती हैं लेकिन अपरिहार्य कारणों से वे रद्द हो जाती हैं।2017दिसम्बर माह में फिर नियुक्तियां निकाली जाती हैं आवेदन तिथि 24जनवरी 2018 होती है लेकिन उसमें तीन बार लिंक ओपन की जाती है जो सुनियोजित साज़िश के तहत की जाती है। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि राज्य सेवा आयोग और उच्चशिक्षा विभाग की सांठगांठ से इसमें 32 से ज्यादा संशोधन किए जाते हैं इसके क्या मायने हैं ये तो आसानी से समझा जा सकता है।जबकि संशोधित करने की लिमिट तो होती ही होगी ।इतने संशोधनों के बीच आवेदनकर्ताओं की हालत क्या होगी जो परीक्षा की तैयारियों में जुटे हुए हों।

इतना सब होने के बावजूद जून-जुलाई 2018 के दरम्यान ऑन लाइन परीक्षा आयोजित हुई।दो फुट की दूरी पर बैठे अभ्यर्थियों ने परस्पर पूछकर विकल्प हल किए ।जिनकी शिकायतें हुईं लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।सिर्फ वस्तुनिष्ठ आधारित इस परीक्षा के साथ ही रोस्टर,आरक्षण व अन्य विसंगतियों के कारण प्रकरण न्यायालय तक भी गए। यह भर्ती इसलिये भी चर्चा में रही क्योकि इसमें साक्षात्कार समाप्त हुआ व सम्पूर्ण देश के अभ्यर्थियों के लिए आयु सीमा भी 44 वर्ष की गई थी। आय एवं क्रीमीलेयर औऱ नॉन क्रीमीलेयर के दस्तावेजों की जांच पर भी संशय रहा,इसके साथ ही विज्ञापन के पदों की संख्या में भी बार-बार सुधार हुआ।इस परीक्षा में लगभग 2500 सहा.प्राध्यापक पास हो गए । मज़ेदार बात तो यह हुई कि सेकेंड क्लास आफीसर्स की केटेगरी वाले इन लोगों का साक्षात्कार भी नहीं लिया गया। चलिए इसे ही मान लिया जाता तो खैरियत होती।अब सितम्बर में एक आदेश आता है कि पास अभ्यर्थी अपने दस्तावेजों सहित भोपाल पहुंचे।नवम्बर में 605 मामलों में फिर दस्तावेज मांगे गए, जो नहीं पहुंच सकते उनसे कहा गया वे रजिस्ट्रर्ड डाक से दस्तावेज भेज दें।इसके बाद 89 चयनित लोगों की सूची जारी होती है कि उनके दस्तावेजो में भी कमी है पर बाद में मामला रफादफा हो जाता है।

अब इन चयनित लोगों में ऐसे 26 लोग भी शामिल हैं जिनके दस्तावेजों की छानबीन के बाद पता चला कि जो एम.काम. नहीं हैं फिर भी कॉमर्स के सहायक प्राध्यापक बन गए हैं। 43 दिव्यांग भी बाद में शामिल हुए जो कोर्ट से जीत कर नियुक्ति प्राप्त कर सके हैं। 91महिलाअभ्यर्थी भी है जो हाई कोर्ट के माध्यम से नियुक्ति ले चुकी हैं ।

इस भर्ती का सबसे ज्यादा प्रभाव उन योग्य व अनुभवी अतिथि विद्वानों पर हुआ जो पिछले 20-25 सालों से प्रदेश के विभिन्न सरकारी कॉलेज में न्यूनतम मानदेय पर व्याख्यान के लिए आमंत्रित थे जिन्हें एक झटके में बाहर कर दिया गया जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हुई और कुछ असमय काल के गाल में समा गए। अतिथि विद्वान व्यवस्था से बाहर होने के बाद धरना,आंदोलन पत्राचार,कोर्ट केस भी लगते रहे और प्रदेश के मुख्य दलों के समक्ष भी यह मुद्दा छाया रहा, इसके बाद बमुश्किल पुनः अतिथि विद्वानों को व्यवस्था में लिया गया पर अब भी काफी लोग बाहर ही है जो लगातार उच्च शिक्षा विभाग के पोर्टल को देखते रहते है कि कब चॉइस फिलिंग आये और वे व्यवस्था में फिर से आ सकें।

आश्चर्य यह है कि जब विज्ञापन जारी हुआ तब पदों की संख्या कुछ थी और बार बार संशोधन होने के बाद आज भी सुधार की ओर है हाईकोर्ट ने नई सूची बनाने कहा तो विभाग सुप्रीम कोर्ट चला गया नई सूची तो बनी नहीं पर इस बीच 33 सहायक प्राध्यापकों के बाहर होने की खबर आ गई, यह सब रोस्टर को ठीक करने का प्रयास है। जबकि रोस्टर और आरक्षण को लेकर पहले भी संशोधन हो चुका था। इतना ही नहीं सुनने में तो यह भी आ रहा है कि इस महीने कोर्ट में औऱ भी सुनवाई इस मामले को लेकर हो सकती है। इस परीक्षा को शुरू से अब तक देखने-सुनने के बाद लगता है कि इतनी गड़बड़ियां शायद अन्य परीक्षाओं में तो नहीं हुई होंगी और अगर हुई भी होगी तो वह परीक्षा जरूर निरस्त हुई होगी,इस परीक्षा के समान बचाव के मौके नहीं मिले होंगे।

28 साल बाद हर वर्ग के लिए परीक्षा तो आयोजित की गई पर पदों का विभाजन ही संयोजित नहीं था आश्चर्य तो यह है कि उच्च शिक्षा विभाग अपने विज्ञापन को 3 बार ठीक करने के बाद भी सूची दुरस्त करने में आज भी लगा है।ये कैसी व्यवस्था है और इसका जिम्मेदार कौन है जो शिक्षित युवाओं का मानसिक और शारीरिक दोहन लगाया किए जा रहा है।

ये कैसी क्रूर और उन्मादी व्यवस्था है जो आवेदन के समय तमाम जानकारी मांगती तो है पर उनकी तफ्तीश नहीं करती और परीक्षा में लेट लतीफी के बाद परिणाम घोषणा के बाद तक लगातार परिवर्तनों की बौछार कर बेरोजगार युवा के दिलो-दिमाग पर सख्त मार करती है यदि इस मामले में गहराई से जांच की जाए तो यह बात साफ़ तौर पर सामने आ सकती है कि इन संशोधनों के पीछे का राज क्या है तथा दस्तावेजों की जांच के बाद भी गलत लोग आज भी कैसे नियुक्त हैं।शासन को नियुक्ति की एक व्यवस्था बनानी चाहिए। उसमें कोई परिवर्तन ना हो चाहे सरकार किसी की आए जाए क्योंकि ये सहा प्राध्यापक ही हैं जो देश के लिए भावी समझदार नागरिक तैयार करते हैं उसमें अयोग्य लोगों के आने से देश को बहुत नुक्सान होगा इसलिए जरूरी है इस परीक्षा की सम्जांयक जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से करवाई जाए एवं दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों और नियुक्त हुए गलत अभ्यर्थियों को दंडित किया जाना चाहिए।जिस तरह इस कांड में लीपापोती की जा रही है वह अक्षम्य अपराध है तथा उच्चशिक्षा प्राप्त युवाओं की प्रतिभा का अपमान है।सुनो, सरकार। बहुत हो चुका है इन पीड़ितों की पुकार सुनो ताकि वे गहन अंधकारा से निज़ात पा सकें।

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सुसंस्कृति परिहार
लेखिका स्वतंत्र लेखक एवं टिप्पणीकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।