दिल्ली के हर बरस के दमघोंटू मौसम का इलाज दिल्ली के बाहर ही मुमकिन

उत्तर भारत में अभी ठंड ठीक से शुरू हुई भी नहीं है कि राजधानी दिल्ली का पूरा इलाका जहरीली हवा से भर गया है। लगातार तीसरे दिन वायु प्रदूषण का स्तर इतना खराब है कि सुप्रीम कोर्ट को दखल देनी पड़ रही है, दिल्ली सरकार स्कूलें बंद कर रही है, और दिल्ली के बाजारों के अलग-अलग समय पर खुलने की पहल की जा रही है, दिल्ली में अनिवार्य सेवाओं से परे बाकी की गाडिय़ों के घुसने पर रोक लगाई गई है, और दिल्ली सरकार ने आधे कर्मचारियों को घर से काम करने को कहा है। दिल्ली के इस प्रदूषण को बरसों गुजर गए हैं, वहां बसे लोगों के फेंफड़े खराब होते चल रहे हैं, सांस से जुड़ी बीमारियां बढ़ती चल रही हैं, और हर बरस के कई हफ्तों के तरह-तरह के प्रतिबंधों से दिल्ली का कारोबार भी चौपट हो रहा है। राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र, एनसीआर, के तहत हरियाणा और यूपी के भी कुछ हिस्से आते हैं, और हर बरस की तरह पंजाब से इस बार भी फसलों के ठूंठ (पराली) जलाने की वजह से दिल्ली की तरफ आया प्रदूषण इस बार भी जारी है, और कल यह दिल्ली के प्रदूषण में 38 फीसदी का हिस्सेदार गिना गया था। 

जो लोग दिल्ली पर रहम करना चाहते हैं, उन्हें दिल्ली के विकेन्द्रीकरण की जरूरत है जो कि होते नहीं दिख रहा, बल्कि उसका उल्टा हो रहा है। दिल्ली से लगे हुए उत्तरप्रदेश के हिस्से में एक नया अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बन रहा है जिससे दिल्ली के आसपास के हवाई मुसाफिरों की गिनती कितनी भी बढ़ सकती है। यह हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा एयरपोर्ट बनने जा रहा है जो कि दिल्ली के अलावा यूपी और हरियाणा से भी हाईवे से जुड़ा रहेगा। कुल मिलाकर इस एयरपोर्ट से दिल्ली के मौजूदा एयरपोर्ट की भीड़ तो कम होगी, लेकिन दिल्ली शहर की भीड़ कम होने का कोई आसार इससे नहीं रहेगा, वह और अधिक बढ़ सकती है। 

हिन्दुस्तान में शहरी योजनाशास्त्रियों की सोच घूम-फिरकर पहले से बसे हुए शहरों के इर्द-गिर्द ही आकर टिक जाती है। ऐसे किसी एयरपोर्ट को दिल्ली के करीब बनाने के बजाय दिल्ली के विकल्प के रूप में एक किसी नए शहर को काफी दूरी पर बसाया जाना चाहिए था, और वहां सरकार खुद जाने की एक पहल करती। केन्द्र सरकार के सैकड़ों ऐसे संस्थान हैं जिनका दिल्ली में रहना कोई जरूरी नहीं है, इनको ऐसे किसी नए शहर में ले जाया जा सकता है। हमने इसी जगह पहले भी यह सलाह दी है कि तमाम प्रदेशों से यह प्रस्ताव मांगने चाहिए कि वे अपने प्रदेश में केन्द्र सरकार के किन संस्थानों के लिए जमीनें देने को तैयार हैं, और उन जमीनों के आसपास एयरपोर्ट या शहरी ढांचा कितना है। देश भर से ऐसे प्रस्ताव बुलाकर केन्द्र सरकार को दिल्ली के सरकारी हिस्से का विकेन्द्रीकरण करना चाहिए। अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग दफ्तर रहने से देश भर से दिल्ली पहुंचने वाले लोग उन अलग-अलग प्रदेशों में जाएंगे, और ऐसी आवाजाही से राष्ट्रीय एकता भी बढ़ेगी। यह बात दिल्ली की स्थानीय केजरीवाल सरकार को नहीं सुहाएगी, लेकिन स्थानीय सरकार की ताकत और मर्जी से दिल्ली का प्रदूषण कम नहीं हो रहा। जहां सुप्रीम कोर्ट के जज खुद लाठी लेकर बैठे हैं, और बरसों से ठंड के मौसम में दर्जनों सुनवाई इस प्रदूषण पर कर रहे हैं, लेकिन उससे भी समस्या का समाधान नहीं दिख रहा है। देश की सरकार को दिल्ली से परे देखना होगा, उसे एक छत के नीचे केन्द्र सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों के हर दफ्तरों को रखने का तंगनजरिया खत्म करना होगा, इसके बिना आज से 25 बरस बाद भी हो सकता है कि दिल्ली ऐसी ही प्रदूषित रहे, या इससे भी अधिक प्रदूषित हो जाए। 

बाहर के लोग जब दिल्ली जाते हैं तो वहां गाडिय़ों की भीड़ देखकर हक्का-बक्का रह जाते हैं। बम्पर से बम्पर सटी हुई गाडिय़ां घंटों ट्रैफिक जाम में फंसी रहती हैं, गाडिय़ां खड़ी करने को जगह नहीं रहती है, और दिल्ली के लोगों ने मानो इसी तरह की जिंदगी जीना सीख लिया है। लेकिन यह नौबत अच्छी नहीं है। बुरे हालात में चुप रहकर जीना सीख लेना उन हालात को जारी रखने के लिए एक बढ़ावा होता है। केन्द्र सरकार और उससे जुड़े हुए अधिक से अधिक दफ्तर दिल्ली के बाहर ले जाए जा सकें तो दिल्ली में दम घुटना कुछ कम होगा। एक वक्त केन्द्रीय मंत्री रहे माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर को देश की उपराजधानी बनाने का एक अभियान चलाया था। ग्वालियर दिल्ली से न बहुत करीब है, और न ही बहुत दूर। इस किस्म के और भी शहर ढूंढे जा सकते हैं, और दिल्ली के दफ्तरों और वहां की आबादी के एक हिस्से को बाहर ले जाकर उनकी भी जिंदगी बढ़ाई जा सकती है, और दिल्ली में बच गए लोगों की जिंदगी भी बचाई जा सकती है। जहां बरस-दर-बरस प्रदूषण का जहर ऐसा स्थाई हो गया है, वहां पर लंबे समाधान की तरफ देखना जरूरी है। 

प्रदूषण काबू में करने के सारे तरीकों का इस्तेमाल भी जब लोगों की जिंदगी नर्क सरीखी बनाए हुए है, तो फिर आगे और खराब हालत के बारे में सोचकर एक तैयारी करना जरूरी है जिस पर अमल में कुछ दशक भी लग सकते हैं। केन्द्र सरकार दिल्ली में खुलने वाले निजी दफ्तरों पर भी एक बड़ा टैक्स लगा सकती है, ताकि वे इस शहर से परे दूसरी जगह छांटें, और दिल्ली के प्रदूषण में इजाफा न करें। केन्द्र सरकार को दिल्ली में अपने किसी भी निर्माण पर सौ फीसदी रोक लगा देनी चाहिए, क्योंकि वह अगर अपने कुछ दफ्तर बाहर ले जाएगी, तो उसकी इमारतें उसके अपने अमले की जरूरतें लंबे समय तक पूरी कर सकेंगी। केन्द्र सरकार को अलग-अलग राज्यों में जरूरत के सार्वजनिक ढांचे देखकर वहां की राज्य सरकारों से बात करके अपने विकेन्द्रीकरण की तैयारी तुरंत करनी चाहिए, और आज ऐसा आसान इसलिए भी है कि केन्द्र और अधिकतर राज्यों में एनडीए की सरकारें हैं, वैसे तो बाकी राज्यों की सरकारें भी केन्द्र के दफ्तरों के आने का स्वागत ही करेंगी। 

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सुनील कुमार
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